नई धारा, कॉमरेड कृष्ण कल्पित और पीड़िता की कहानी में न्याय की जगह दर्जन भर संस्थाओं की तरफ से कल्पित के लिए निंदा प्रस्ताव के आने का अर्थ यही लगाया जा सकता है कि अब इस मामले में पीड़िता के साथ न्याय नहीं होगा।
कुछ दिनों पहले वायर के मुस्लिम पत्रकार और हिन्दू पीड़िता की कहानी में क्या हुआ? पीड़िता कन्विंस हो गई कि उसके न्याय की लड़ाई का जो अंजाम होना है हो लेकिन उसके साथ हुए यौन उत्पीड़न का लाभ कथित साम्प्रदायिक शक्तियों को नहीं मिलना चाहिए। गज्जब की ‘कंडिशनिंग’ है।
कृष्ण कल्पित को बचाने के लिए पटना में अब कोई अफवाह फैला रहा है कि
नई धारा ने राइटर्स रेजिडेंसी प्रोग्राम में एक बढ़ई लेखक (कृष्ण कल्पित) को पहली बार चुन लिया तो पटना में ही कल्पित के ब्राह्मण, कायस्थ वामपंथी मित्रों को यह पसंद नहीं आया।
उन्होंने कॉमरेड कल्पित को फंसा दिया।
कोई किसी दारू गोष्ठी की भी बात कर रहा है कि प्लॉट उसी वक्त बना था, किसी सवर्ण डॉक्टर के घर पर। शायद कायस्थ ही।
कोई कह रहा है कि नागार्जुन के ऊपर पीडीफाइल के आरोप में लोग चुप क्यों थे?
पटना में यह बात सदाकत आश्रम तक पहुंचा दी गई है। राहुल गांधी के कांग्रेस में आजकल अतिपिछड़ा राजनीति केंद्रित कदम उठाये जा रहे हैं। कृष्ण कल्पित का मामला भी उस अति पिछड़ा से जुड़ता है। लालू प्रसाद की राजनीति और अखिलेश की राजनीति भी उन्हें सपोर्ट कर सकती है। मतलब ये सभी मिलकर मानने को तैयार नहीं कि पीड़िता का भी कोई वजूद है।
कल्पित को बचाने के लिए राजनीति सक्रिय है, अतिपिछड़ा समाज से आने वाले लेखक कल्पित को क्यों बिना जांच के भगाया गया, यह सवाल कांग्रेस का अति पिछड़ा प्रकोष्ठ उठाने वाला है।
कायस्थों की संस्था नई धारा को भी नोटिस भेजा जा सकता है। लेकिन मुश्किल है कि वहां संपादक भी ईबीसी हैं।
इस देश के समाजवादी और वामपंथी समाज को किस गढ्ढ़े में ले जा रहे हैं, इस बात का अनुमान आप यह सब जानकर कर सकते हैं।
यदि इस कहानी को विस्तार से समझना हो तो गूगल कीजिए। सोशल मीडिया पर तो ढेर सारा कीचड़ पसरा पड़ा है।