बेंगलुरु: कर्नाटक के चित्रदुर्ग से कांग्रेस विधायक केसी वीरेंद्र उर्फ ‘पप्पी’ की प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा गिरफ्तारी ने कांग्रेस पार्टी को एक बार फिर विवादों के घेरे में ला दिया है। ईडी ने ऑनलाइन और ऑफलाइन सट्टेबाजी से जुड़े मनी लॉन्डरिंग मामले में वीरेंद्र को गंगटोक से गिरफ्तार किया। छापेमारी में 12 करोड़ रुपये नकद (जिनमें 1 करोड़ की विदेशी मुद्रा शामिल), 6 करोड़ का सोना, 10 किलो चांदी, चार लग्जरी गाड़ियां, 17 बैंक खाते, और दो लॉकर जब्त किए गए। जांच में पता चला कि वीरेंद्र King567 और Raja567 जैसे ऑनलाइन बेटिंग साइट्स संचालित कर रहे थे, जिसमें उनके भाई केसी थिप्पेस्वामी और केसी नागराज भी शामिल थे।
यह मामला तब और गंभीर हो गया जब पता चला कि 2016 में भी आयकर विभाग ने वीरेंद्र के घर से 5 करोड़ नकद और 30 किलो सोना बरामद किया था। यह सवाल उठता है कि इतने बड़े पैमाने पर अवैध धन का संचय कैसे संभव हुआ, और क्या यह कांग्रेस के भीतर भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों को दर्शाता है?इसी बीच, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ‘वोट चोरी’ का मुद्दा उठाकर चुनाव आयोग पर हमला बोल रहे हैं। उन्होंने कर्नाटक के महादेवपुरा में 1,00,250 वोटों की कथित चोरी का दावा किया, जिसमें डुप्लिकेट वोटर और फर्जी पते शामिल हैं। हालांकि, विपक्षी नेताओं और सोशल मीडिया पर यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह ‘वोट चोरी’ का शोर पार्टी के भीतर ‘नोट चोरी’ जैसे भ्रष्टाचार के मामलों को दबाने की रणनीति है?

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने वोट चोरी की जांच का ऐलान किया है, लेकिन वीरेंद्र जैसे नेताओं के भ्रष्टाचार पर उनकी चुप्पी सवाल उठाती है। सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं, “कांग्रेस पहले नोट चोरी का हिसाब दे, फिर वोट चोरी की बात करे।”
यह घोटाला कांग्रेस की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है। जनता पूछ रही है कि क्या पार्टी भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने के लिए ‘वोट चोरी’ जैसे मुद्दों का सहारा ले रही है?