प्रवीण शुक्ल
दोपहर से अब देर रात तक अभी भी ट्विटर पर दिलीप मंडल छाए हुए है , मण्डल ना तो नेता हैं, ना सेनापति, ना सरकारी बाबू, ना धरनेवाले किसान, वे कभी पत्रकार हुआ करते थे, हिन्दूओ में जाति के प्रश्नों को उठाकर हिंदुत्व की राजनैतिक शक्ति को कमजोर करते थे।
शायद इसी वजह से मध्य प्रदेश में आई कमलनाथ की कांग्रेस सरकार ने उन्हें माखनलाल चतुरवेदी पत्रकारिता विश्विद्यालय में पढ़ाने के लिए भी चुना, मेरी सूचना हैं की वे कभी किसी जमाने में विट्रिओलिक (जहर उगलने वाले) शरद यादव के जातिवादी भाषण लिखते थे। अभी हाल फिलहाल में अपने ओबीसी वर्ग के मुख्यमंत्री स्टालिन के करीब आये।अब लोकसभा चुनावों के दौरान ही कर्नाटक में ओबीसी कोटा में सम्पूर्ण मुस्लिम समाज को घुसाने की वजह से कांग्रेस के खिलाफ मुखर हुए , फिर तो अलीगढ मुलिम यूनिवर्सिटी , जामिया मिलिया ईश यूनिवर्सिटी में सैंवैधानिक आरक्षण प्राप्त एससी, एसटी और ओबीसी कोटे में सेंधमारी करने के लिए पूर्व शिक्षा मंत्री अर्जुन सिंह द्वारा ‘मायनॉरिटी संस्था’ की कांग्रेसी चाल पर हमलावर हुए।
क्यों सुर्खियों में हैं ?
मोदी की भाजपा सरकार ने अपनी पार्टी कार्यकर्ताओं और कुछ 2014 के बाद एकाएक संघ प्रेमी बने फुस्स पत्रकारों को मीडिया कंसल्टेंट जरूर बनाया था पर राहुल गाँधी के “मोदी आरक्षण ख़त्म कर देंगे” जैसे झूठे प्रोपोगैंडा को ना तो वो काउंटर कर पाए ना ही पार्टी को समय रहते बता पाए इसलिए जाति और आरक्षण पर मुखर रहने वाले सोसियल मीडिया वीर दिलीप मंडल को सरकार अपने मंत्रालय में लायी हैं। यह बिलकुल अप्रत्याशित कदम है, हिन्दुओं की फॉल्ट लाइन जाति भेद पर लिख कर हिंदुत्व को कमजोर करने वाला ही अब हिंदुत्व के खेमे में आया हैं।
किन्हे लग रही है मिर्ची :
1) भाजपा दफ्तर में तमाम बेरोजगार पत्रकार दल्लु दलाल बने फिरते थे सबके पेट में मरोड़ उठ रही है पर भैया आपकी कलम और तर्क में वैसा दम नहीं , जलते हो तो जलते रहो भाजपा ने पहली बार किसी गैर संघी आदमी यानी दिलीप मंडल को सूचना प्रसारण मंत्रालय में कंसल्टेंट बना कर अच्छा काम किया है।
2) मियां लोग एएमयू और जामिया में आरक्षण खत्म करने के कांग्रेसी दांव को सामने लाने के बाद खफा खफा हैं, मंडल ने बखूबी है इस बात को हाईलाइट किया किया की कैसे मायनॉरिटी इंस्टीट्यूशन के नाम पर सरकारी पैसों पर चलने वाले यह इंस्टीट्यूट सिर्फ मुसलमानों को आरक्षण दे रहे है ओबीसी , एस सी, एस टी या गरीब को नहीं
3) सारे रिटायर्ड बुजर्ग पत्रकार मंडल पर अपनी कोफ़्त कंसल्टेंट को मिलने वाले डेढ़ से दो लाख रूपये की तनख्वाह हैं की वजह से निकाल रहे हैं। इनके साथ ही 2014 से ही कांग्रेस के चरण चुम्बन कर रहे मिडिल एजेड पत्रकारों को भी बुरा लगा वे 10 साल से मलाई के कतार में थे। एक तो कांग्रेस सरकार आई नही , दूसरे उनके एंटी बीजेपी ग्रुप से सिर्फ मंडल को ही क्यों अपना लिया और उनको छोड़ दिया।
4) कांग्रेसी तो खैर राहुल और गांधी परिवार पर डायरेक्ट किये सवालों से दुखी हैं अपने ट्वीट में वे पूछ रहे है की राजीव गांधी फाउंडेशन में क्यों नहीं कोई ओबीसी , एस सी, एस टी वर्ग का प्रतिनिधि हैं , इस फाउंडेशन में कम से कम तीन लोग गांधी परिवार के है यह कैसे डायवर्सिटी हैं यह कैसे प्रतिनिधित्व हैं ??