दिल्ली। कांग्रेस पार्टी, जो हमेशा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पैरोकार होने का दावा करती है, अपने कृत्यों से इस दावे की पोल खोल रही है। हाल ही में, पार्टी ने पत्रकार शिव अरूर के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज कराई, क्योंकि उन्होंने राहुल गांधी के ‘वोट चोरी’ के आरोपों पर सवाल उठाए, जो कथित तौर पर फर्जी डेटा पर आधारित थे। यह पहला मौका नहीं है जब कांग्रेस ने पत्रकारों को निशाना बनाया हो। अशोक श्रीवास्तव, प्रखर श्रीवास्तव, अमन चोपड़ा, अजीत भारती जैसे पत्रकारों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई और कई एंकर्स के बहिष्कार का इतिहास इसका प्रमाण है। हैरानी की बात है कि कांग्रेस ने अपनी ‘ब्लैकलिस्ट’ में सुशांत सिन्हा और सुधीर चौधरी जैसे पत्रकारों को भी शामिल किया, जिनके शो में पैनल डिबेट का प्रारूप ही नहीं होता। यह दर्शाता है कि पार्टी का पत्रकारों के खिलाफ अभियान कितना हास्यास्पद और तर्कहीन है।

कांग्रेस का यह रवैया न केवल पत्रकारिता पर हमला है, बल्कि लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों पर प्रहार है। विपक्ष में रहते हुए भी पार्टी तानाशाही रवैये से बाज नहीं आ रही। यदि यह सत्ता में आई, तो पत्रकारिता पर ‘आपातकाल’ जैसी स्थिति लादने से नहीं हिचकेगी। विडंबना यह है कि कांग्रेस ‘गोदी मीडिया’ का राग अलापती है, लेकिन उसने सुप्रिया श्रीनेत जैसी पत्रकार को, जिन्हें भारतीय पत्रकारिता की ‘पहली गोदी एंकर’ कहा जाता है, अपना प्रवक्ता बनाया। वहीं, शिव अरूर जैसे सवाल पूछने वाले पत्रकारों को दबाने के लिए एफआईआर का सहारा लिया जा रहा है। यह दोहरा चरित्र कांग्रेस की कथनी और करनी के अंतर को उजागर करता है।
पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, और इसे दबाना लोकतांत्रिक मूल्यों का अपमान है। कांग्रेस को अपने इस तानाशाही रवैये पर आत्ममंथन करना चाहिए, वरना जनता और इतिहास उसे कभी माफ नहीं करेंगे।
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