”प्रधानमंत्री में प्रेस कांफ्रेन्स करने की शक्ति कब आएगी, यह हम उनसे पूछे या उनके अराध्य से। हर समय, हर अखबार, हर चैनल पर उनको देखने वाली जनता को क्या यह सुख कभी नहीं मिलेगा?” यह सवाल वरिष्ठ यू ट्यूबर रवीश कुमार अपने प्राइम टाइम में यू ट्यूब पर अपलोड किए गए वीडियो में पूछते हैं। रवीश अपने यू ट्यूब चैनल पर अक्सर बीजेपी, मोदी, आरएसएस के खिलाफ ही बोलते हुए पाए जाते हैं। उनका विश्लेषण एक पक्षीय होता है। जिसमें दूसरे पक्ष को वह कोई स्थान नहीं देते। अक्सर अपने चैनल पर वे दूसरे पत्रकारों को ज्ञान दे रहे होते हैं कि उन्हें पत्रकारिता के किन मूल्यों का पालन करना चाहिए। यह सारा उपदेश दूसरों के लिए है। उन उपदेशों का दशवां हिस्सा भी उनके यू ट्यूब चैनल पर अपलोड किए गए वीडियो पर लागू नहीं होता।
रवीश कुमार ऑफिसियल यू ट्यूब चैनल पर अपलोड किए गए कुछ वीडियो के थंबनेल साफ साफ प्रधानमंत्री मोदी को केन्द्र में रखकर तैयार किए गए। उन वीडियो को देखकर समझना आसान था कि रवीश कुमार के अधिकांश व्यूअर बीजेपी से नफरत करने वाले हैं। रवीश भी अपने चैनल पर निष्पक्ष होने की कोशिश नहीं करते। वे कभी कांग्रेसी बन जाते हैं और कभी आप वाला कभी तृणमूल के समर्थक। वे जिस भी भूमिका में रहें लेकिन उनका बीजेपी के विपक्ष में रहना कॉमन है, जो उनके सभी वीडियो में दिखाई पड़ता है। बीजेपी सत्ता में रहे या विपक्ष में, रवीश कुमार को हर उसकी आलोचकों के दल में रहना है। उसके बावजूद वे दशक पर से पत्रकारिता पर प्रवचन दे रहे हैं और उसे निष्पक्ष भाव से सुना जा रहा है जबकि रवीश कुमार का पक्ष तय है। दो दिन पहले का एक थंबनेल है— मोदी का इंटरव्यू हो और सवाल न हो। तीन दिन पहले मोदी मेनिफेस्टो, नौकरी चाहिए तो सपने ले लो। इसी तरह मोदी के भाषण में क्या है, मोदी सरकार की जेल फैक्ट्री, नौकरियां कहां हैं मोदीजी, मोदीराज का टेलीकॉम घोटाला जैसे अनगिनत थंबनेल पीएम मोदी दर्जनों सवालों के साथ उनके चैनल पर अपलोड किए गए हैं। दूसरी तरफ वे अपने लोगों के लिए जो थंबनेल डालते हैं, उसे पढ़ा जाना चाहिए। कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी के लिए थंबनेल दिया गया है— सिंघवी ने की धुंआधार बहस। यह बहस न्यायालय में सिंघवी ने अरविन्द केजरीवाल के लिए की। दस साल पहले अरविन्द केजरीवाल सिंघवी और उनकी पार्टी के लिए सार्वजनिक मंचों पर क्य बोलते थे, यह किसी से छुपी हुई बात नहीं है। अब रवीश, सिंघवी और केजरीवाल सब एक टीम हो गए हैं। केजरीवाल के लिए रवीश ने एक वीडियो बनाकर उसका शीर्षक दिया— मुझे गिरफ्तार क्यों किया? इसी तरह कांग्रेस की चुनावी रैली को रवीश ने अपने चैनल से महारैली का महाभाषण कहकर प्रचारित किया। संजय सिंह पर वीडियो बनाते हुए शीर्षक दिया— ईडी की बोलती बंद। कांग्रेस के मैनिफेस्टो पर वीडिये बनाते हुए उसे शीर्षक दिया, सिस्टम की मनमानी पर लगेगी ब्रेक। अपने यू ट्यूब चैनल पर यह सब करते हुए रवीश कुमार जब पत्रकारिता पर भाषण देते हैं तो यकिन मानिए वे बड़े बौने दिखाई देते हैं। जिसने पत्रकारिता से नहीं बल्कि उस राजनीतिक विचार से वफादारी निभाई, जिससे उनके परिवार का संबंध रहा। बड़े भाई का संबंध रहा। यह बात उनके करीबी ही बता रहे थे कि रवीश कुमार की कांग्रेस से चैनल को लेकर बात हो रही थी लेकिन उनकी निष्पक्ष छवि बनी रहे इसलिए चैनल का मामला स्थगित कर दिया गया। अब रवीश के पास छुपाने के लिए कुछ नहीं है। जिस तरह के वीडियो वे बनाकर अपलोड कर रहे हैं, उनके पास इससे अधिक एक्सपोज होने के लिए अब बचा ही क्या है?
अपने हालिया वीडियो में रवीश कुमार ने प्रधानमंत्री के प्रेस कांफ्रेन्स के लिए कुछ पत्रकारों के नाम भी सुझाए। जिन्हें प्रधानमंत्री को अपने पीसी में बुलाना चाहिए। रवीश कहते हैं आने दो सिद्धार्थ वरदराजन, नितिन सेठी, बसंत कुमार, अमन सेठी, मोहम्मद जुबैर, बेतवा शर्मा, आलीशान जाफरी, धन्या राजेन्द्रन, अतुल चौरसिया, सागर, हरतोष सिंह बल, मेघनाथ को और पूछने दो जो वे पूछना चाहते हैं।
जितने भी नाम रवीश कुमार ने लिए, सभी को सिर्फ पीएम मोदी से ही सवाल पूछने हैं। या इन्होंने अपने पत्रकारिता कॅरियर में सोनिया गांधी से कभी कोई सवाल पूछा है। ये तो राहुल गांधी के प्रेस कांफ्रेन्स में सवाल पूछने वालों में नहीं थे। राहुल गांधी भी जिन्हें अपने प्रेस काफ्रेन्स में इतना महत्व नहीं दे रहे, रवीश कुमार उन्हें मोदी के सामने सवाल पूछने के लिए क्यों खड़ा करना चाहते हैं? इन्होंने सोनिया गांधी और राहुल गांधी से किस तरह के सवाल पूछे हैं, एक बार रवीश कुमार को इनके नाम प्रस्तावित करते हुए, उन सवालों को उद्धृत करना चाहिए क्योंकि अब उनमें सोनिया और राहुल के लिए कुछ कहने का साहस बचा नहीं है। कम से कम अपने मित्रों के सवाल ही शेयर कर दें। या वे सब भी उनकी ही तरह कांग्रेस पार्टी के आलाकमान के सामने ‘विनम्र बालक’ हैं।
रवीश को मौका मिला था राहुल से साक्षात्कार लेने का। वह साक्षात्कार मीडिया के छात्रों को देखना चाहिए। एक वरिष्ठ यू ट्यूबर जब मुख्य धारा के पत्रकारों को गोदी मीडिया कहता है तो वह खुद अपने चैनल पर किस स्तर की पत्रकारिता कर रहा है। इसे देखना और समझना बहुत जरूरी है। उसके यहां सबकुछ एक पक्षीय है या दूसरे पक्ष को भी अपनी बात रखने का बराबर का अवसर मिल रहा है। इसे भी नोट करना चाहिए।
यह सच है कि वे जिस एनडीटीवी से निकल कर यू ट्यूब वीडियो के क्षेत्र में आए हैं, उसे पत्रकारिता में कांग्रेस का ही चैनल कहा जाता था। उस चैनल को सोनिया गांधी की वजह से मदद मिली। उनके उपकार नीचे दबे चैनल ने अपने पूरे इतिहास में सोनिया गांधी की आलोचना करती एक स्टोरी नहीं चलाई है। जब सोनिया गांधी ने एक बार राजनीति से बाहर रहने का निर्णय लिया, उसे कवर करने के लिए प्रणय राय बारिश के बीच निकल कर सड़क पर आए। उन्होंने सोनिया को त्याग की मूर्ति कहा। सोनिया उस समय सत्ता में थी लेकिन गोदी मीडिया शब्द ट्रेंड में नहीं था।
रवीश ने एक महीने पहले ‘दम नहीं है तुममे’ (https://www.youtube.com/watch?v=Qavc5RPqJwY&t=151s&pp=ygUZcmFodWwgZ2FuZGhpIHJhdmlzaCBrdW1hcg%3D%3D) शीर्षक से एक वीडियो बनाया और उस वीडियो में राहुल गांधी का जिस स्तर का प्रस्तति वाचन किया। वे जिन्हें गोदी मीडिया कहते हैं, वे भी पूरा वीडियो देख कर शर्मिन्दा हो जाएंगे लेकिन रवीश को इस बात से फर्क नहीं पड़ता। इसी प्रकार 12 जनवरी 2023 को रवीश कुमार ने भारत जोड़ो: राहुल गांधी और डरपोक कवरेज क्लास शीर्षक से एक वीडियो किया। यह वीडियो हो सकता है, रवीश कुमार ने श्रद्धा भाव से बनाया हो लेकिन वह कांग्रेस की पीआर एक्सरसाइज का हिस्सा दिखाई पड़ती है।
आशीष नंदी ने सवर्णो में लेन देन की प्रवृत्ति पर जयपुर साहित्य उत्सव में टिप्पणी की थी। मतलब आज रवीश कुमार कांग्रेस के लिए करेंगे और समय आने पर कांग्रेस रवीश कुमार के लिए करेगी। इस लेन देन में कोई भ्रष्टाचार नहीं दिखाई पड़ता है। कोई खोजी पत्रकार इसमें लेन—देन साबित नहीं कर पाएगा। जैसे रवीश की इस सेवा के बदले उनके सगे भाई को बिहार में कांग्रेस पार्टी के अंदर विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद फिर से टिकट मिल जाए तो इस ‘नैतिक—भ्रष्टाचार’ को कोई कैसे साबित करेगा?
11 मई 2019 को रवीश ने राहुल गांधी का साक्षात्कार किया। जिसे अब तक 50 लाख लोग उनके यू ट्यूब पर देख चुके हैं। साक्षात्कार में रवीश, राहुल से कहते हैं, राहुल बहुत धूप है। राहुल हां में सिर हिलाते हैं। मतलब हां धूप है। रवीश सवाल करते हैं — दो विचारधाराओं के बीच की लड़ाई है। राहुल गांधी किस विचारधारा से लड़ना चाहते हैं? रवीश ही बताएं कि यह किस श्रेणी का सवाल था? अब रवीश एक दूसरा कठीन सवाल लेकर आते हैं कि आपके परिवार पर मोदीजी लगातार पांच सालों से हमला कर रहे हैं। आपने अपने साक्षात्कारों में इसे महत्व नहीं दिया। इसके बाद रवीश, राहुल गांधी को समझाने का प्रयास करते हैं, जब नेहरू पर हमला हो रहा था, तो वह सिर्फ नेहरू पर हमला नहीं था। रवीश कहते हैं कि उन्हें लगता है कि कांग्रेस ने नेहरू को ठीक से डिफेन्ड नहीं किया? इस तरह रवीश सवाल पूछते हुए राहुल के सामने, उनसे बड़े कांग्रेसी होने की कोशिश कर रहे थे। यह सच भी है कि नेहरू का कांग्रेसियों से भी अच्छे तरह से रवीश पांडेय और अशोक पांडेय ने बचाव किया है। इसके पीछे की एक वजह इन तीनों की जाति भी हो सकती है। ये तीनों ब्राम्हण हैं। रवीश का राहुल के साथ किया गया वह साक्षात्कार देखा जाना चाहिए।
बहरहाल पाठकों के लिए यह जानना भी दिलचस्प होगा कि एक तरफ रवीश कुमार एक लंबी सूची बनाकर कह रहे हैं कि इन्हें मोदीजी से सवाल—जवाब करने का अवसर मिलना चाहिए, दूसरी तरफ यही रवीश कांग्रेस के उस फैसले के समर्थन में दिखाई पड़ते हैं, जब कांग्रेस मुख्यधारा के एक दर्जन से अधिक एंकरों का ऑफिसिअल बायकाट करती है। यह आलेख रवीश तक पहुंचे तो वह चाहे जवाब ना लिखें, कम से कम थोड़ा विचार अवश्य करें कि क्या से क्या हो गए?