एमएस स्टाफ
इन दिनों राहुल गांधी को जाति की चिंता सबसे अधिक है। उन्होंने अपने घोषणा पत्र में भी जाति में हिंदू समाज को बांटने का जिक्र किया है। यदि उनकी पार्टी जाति के विकास को लेकर इतनी ईमानदार होती तो घोषणापत्र-2024 के कवर पर एक ऐसे आदमी की तस्वीर को कभी प्रकाशित नहीं करती जो दत्तात्रेय गोत्र का ब्राम्हण होने का दावा करता है और पार्टी में ना अध्यक्ष है और ना सचिव।
प्रश्न है कि घोषणा पत्र पर राहुल की तस्वीर क्यों लगी है? जब वे मीडिया चैनल से सवाल पूछते हैं, उन्हेंं सामने से आकर खुद भी तो जवाब देना चाहिए कि उनकी तस्वीर क्यों लगी होनी चाहिए कांग्रेस के घोषणा पत्र पर? सिर्फ इसलिए क्योंकि आप एक खास ‘परिवार’ से ताल्लूक रखते हैं? जब तक राहुल अपनी दावेदारी नहीं छोड़ेंगे और दलित, आदिवासी युवाओं को पार्टी के अंदर आगे नहीं बढ़ाएंगे, तब तक कोई कैसे उनके कहे पर विश्वास करेगा?
उनके यहां प्रवक्ता से लेकर कांग्रेस आईटी सेल तक में कौन से लोग भरे हुए हैं? इस बार जब आप टिकट बांट रहे थे, क्यों नहीं इस बात का ख्याल रखा कि दलित, पिछड़े और आदिवासी वर्ग को उनकी जनसंख्या के अनुपात में कांग्रेस टिकट दे।
सवाल हर बार वहीं आकर ठहर जाता है कि अपनी दादी की तरफ से पंडित नेहरू के परिवार का होने के अलावा कौन सा ऐसा गुण है राहुल में जो इस देश की नब्बे फीसदी दलित, वंचित और आदिवासी आबादी में नहीं है। फिर कांग्रेस का युवराज दत्तात्रेय गोत्र का ब्राम्हण ही क्यों होगा? छत्तीसगढ़ का कोई गोंड यह गद्दी क्यों नहीं संभाल सकता? राहुलजी को यदि वंचितों को हक देना है तो शुरूआत अपनी पार्टी से क्यों नहीं करते? एंटोनी, माकन, शर्मा, सिंघवी की जगह सीडब्ल्यूसी में पिछड़े, दलित और आदिवासियों को राहुल अस्सी फीसदी जगह क्यों नहीं दिलवाते? तीन लोगों की जगह तो राहुल गांधी ने, राहुल गांधी की मां सोनिया गांधी ने और राहुल गांधी की बहन प्रियंका वाड्रा ने ले रखी है। ऐसे मेें कैसे होगा न्याय? न्याय की लड़ाई पहले घर के अंदर लड़ी जानी चाहिए। जिसे राहुल घर से निकल कर चौक—चौराहे पर लड़ रहे हैं।
जब तक राहुल गांधी सुधार पार्टी के अंदर लेकर नहीं आते, बाहर यह लड़ाई हमेशा कमजोर ही रहेगी। पहले अंदर जीतन होगा। फिर बाहर का रास्ता आसान होगा।