हमारे ये कांग्रेसी कंबलधारी-डॉ. मुकेश कुमार, विनोद शर्मा, अभिसार शर्मा, पुण्य प्रसून वाजपेयी, अजीत अंजुम, कुमकुम बिनवाल, आरफा खानम, सौरभ शर्मा, मृणाल पांडेय-ऐसे नाम हैं, जिन्हें सुनते ही जनता के मन में कभी निष्पक्षता की मूरत उभरती थी। लेकिन अब? अब तो इनके यू-ट्यूब चैनल और ट्वीट्स देखकर लगता है कि ये कांग्रेस के आईटी सेल के लिए फ्रीलांसिंग कर रहे हैं। इनके लिए निष्पक्षता का मतलब है—जो कांग्रेस कहे, वही सच। बाकी सब झूठ, फरेब और प्रपंच।
पुराने ज़माने में एनडीटीवी जैसे चैनल निष्पक्षता का झंडा बुलंद करते थे। प्रणॉय रॉय साहब तो इस खेल के सुपरस्टार थे। उनके चैनल को देखकर लगता था कि ये तो सत्य और न्याय का मंदिर है। लेकिन कंबल उठाकर देखो तो सच्चाई कुछ और थी। कांग्रेस की सरकारों से घी की नदियां बहती थीं, और प्रणॉय साहब अपने कारिंदों के साथ मिलकर उस घी का रसपान करते थे। घी का कर्ज ऐसा था कि एनडीटीवी का कफन-दफन होने के बाद भी उसकी आत्मा-राजदीप सरदेसाई, रवीश कुमार और बाकी कांग्रेसी कंबलधारियों में-आज भी जिंदा है। ये लोग सुबह उठते हैं, कॉफी पीते हैं और फिर यू-ट्यूब पर जाकर कांग्रेस का जयगान शुरू कर देते हैं।
अब ज़रा इन कंबलधारियों की वफादारी का आलम देखिए। पब्लिक तो पवन खेड़ा और आशुतोष गुप्ता में फर्क नहीं कर पा रही। आशुतोष ने तो एक्स पर अपना चेहरा नेहरू के मुखौटे में छुपा लिया है। पवन खेड़ा बेचारे कहां टक्कर ले पाएंगे इस कांग्रेसीपने में? दूसरी तरफ, सुप्रिया श्रीनेत को साक्षी जोशी टक्कर दे रही हैं। साक्षी और उनके पति विनोद कापड़ी तो ऐसे मैदान में डटे हैं, जैसे कांग्रेस की पूरी सेना इन्हीं के भरोसे हो। सुप्रिया को तो इनके सामने फीकी पड़ जाना पड़ता है।
और हां, इन कांग्रेसी कंबलधारियों का सोशल मीडिया पर एक पूरा इकोसिस्टम है। 250-300 इन्फ्लूएंसर, जो कांग्रेस के इशारे पर नाचते हैं। राहुल गांधी को आज न्यायालय में लताड़ पड़ी। बस, आईटी सेल का इशारा आया और 300 कंबलधारी एक साथ चिल्लाने लगे-“अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंट दिया गया!”
कोर्ट कांग्रेस के पक्ष में टिप्पणी करती तो, वो “न्याय का मंदिर”। लेकिन अगर कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की, तो वही कोर्ट “संविधान के मंदिर की गरिमा” को तार-तार करने वाला हो गया। अब बताइए, ये कांग्रेसी कंबलधारी संविधान की किताब हाथ में लेकर जनता को क्या मुंह दिखाएंगे?
इस इकोसिस्टम की ताकत देखिए। ये किसी को भी डिस्क्रेडिट कर सकते हैं। अमिताभ बच्चन सदी के महानायक थे, लेकिन जैसे ही उन्होंने गुजरात पर्यटन का विज्ञापन किया, बस, कंबलधारियों ने उन्हें “साम्प्रदायिक” करार दे दिया। दीपक शर्मा नाम के एक पत्रकार ने मोदीजी के साथ एक तस्वीर फेसबुक पर डाली थी, जब वो गुजरात के सीएम थे। कांग्रेसी इकोसिस्टम ने ऐसा दबाव बनाया कि बेचारे को तस्वीर हटानी पड़ी। आज दीपक ‘आज तक’ से बाहर हैं और यू-ट्यूब पर कांग्रेस का भजन गाते पाए जाते हैं।
अब बात गोदी मीडिया की। बीजेपी के दौर में “गोदी” शब्द बड़ा मशहूर हुआ, लेकिन सच्चाई तो ये है कि कांग्रेस के ज़माने में पत्रकार “पाले” जाते थे। कांग्रेसी कंबलधारी इतने वफादार निकले कि ग्यारह साल बाद भी उनकी वफादारी कम नहीं हुई। हर सुबह ये लोग यू-ट्यूब पर कांग्रेस के लिए भौंकते हैं, जैसे कोई पुराना कर्ज चुकाना हो। इनके लिए निष्पक्षता का मतलब है-कांग्रेस की लाइन से हटो, तो तुम फासीवादी, साम्प्रदायिक, और न जाने क्या-क्या।
तो जनाब, इन कांग्रेसी कंबलधारियों की गाथा यही है। ये निष्पक्षता का कंबल ओढ़कर कांग्रेस की गोद में खेलते हैं, और जनता को लगता है कि ये सच का परचम लहरा रहे हैं। लेकिन कंबल के नीचे की सच्चाई अब सामने है। इनके लिए पत्रकारिता नहीं, कांग्रेस की भक्ति ही सबकुछ है। अब अगली बार जब आप इनके यू-ट्यूब चैनल देखें, तो थोड़ा हंस लीजिएगा। आखिर, ये कांग्रेसी कंबलधारी हैं-निष्पक्षता का ढोंग करने वाले, लेकिन दिल से कांग्रेस के सिपाही।