नई दिल्ली: एक पुराना दस्तावेज एक बार फिर राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है। यह दस्तावेज पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का वह पत्र है, जिसमें उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर को “वीर सावरकर” कहकर संबोधित किया और उनकी ब्रिटिश शासन के खिलाफ निडरता की प्रशंसा की। यह पत्र 20 मई 1980 को लिखा गया था, जिसमें इंदिरा ने सावरकर को भारत का “उल्लेखनीय सपूत” बताया और उनके जन्म शताब्दी समारोह के लिए शुभकामनाएं दीं। यह पत्र स्वतंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक की ओर से आयोजित समारोह के निमंत्रण का जवाब था।
इंदिरा गांधी ने सावरकर की विरासत को सम्मान देने के लिए 1970 में उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया था। इतना ही नहीं, उनकी सरकार ने सावरकर के मुंबई स्थित निवास को राष्ट्रीय स्मारक बनाने और उसका रखरखाव के लिए आर्थिक सहायता भी प्रदान की थी। इतिहासकार वैभव पुरंदरे ने अपनी किताब “द ट्रू स्टोरी ऑफ फादर ऑफ हिंदुत्व” में इस पत्र की प्रामाणिकता की पुष्टि की है और बताया कि 1966 में सावरकर की मृत्यु पर भी इंदिरा ने शोक व्यक्त किया था, उन्हें क्रांतिकारी और देशभक्त कहते हुए।
हालांकि, आज कांग्रेस का रुख सावरकर के प्रति पूरी तरह बदल चुका है। हाल के वर्षों में राहुल गांधी ने सावरकर को “कायर” तक कह डाला, जो इंदिरा के विचारों से उलट है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2000 के बाद बीजेपी के उदय और राम मंदिर आंदोलन के बाद सावरकर की विरासत पर राजनीतिक दावेदारी बढ़ी, जिससे कांग्रेस ने अपना रुख कड़ा कर लिया। दिसंबर 2019 में बीजेपी ने इंदिरा के पत्र का हवाला देकर राहुल पर निशाना साधा था, जिसने इस बहस को फिर से हवा दी।
कुछ लोग मानते हैं कि जब तक सावरकर कांग्रेस के लिए सम्माननीय थे, बीजेपी या जनसंघ के लिए कोई जगह नहीं थी। लेकिन कांग्रेस के बदलते रुख और “मुस्लिम परस्ती” की नीतियों के बाद बीजेपी ने इस खाली जगह को भर लिया। यह दस्तावेज उन कांग्रेसियों के लिए करारा जवाब है, जो सावरकर को अपशब्दों से नवाजते हैं, और यह भी याद दिलाता है कि इतिहास को राजनीतिक चश्मे से नहीं, वास्तविकता से देखना चाहिए।