दैनिक पत्र द हिंदू के नाम खुला पत्र: सर्वे की खबरों में पारदर्शिता और सच्चाई की मांग

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प्रिय संपादक,
अपने पाठकों से माफी मांगिए। 17 अगस्त की सुबह, आपने (
@the_hindu) लोकनीति-सीएसडीएस (@LoknitiCSDS) के सर्वे के नतीजे छापे, जिसमें जोर-शोर से दावा किया गया कि भारतीयों का चुनाव आयोग पर ‘विश्वास’ कम हो रहा है। संयोग देखिए, उसी दिन
@RahulGandhi

ने अपनी बिहार यात्रा शुरू की और ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाया। लेकिन आपने सर्वे के सबसे बुनियादी तथ्यों की जांच तक नहीं की। यह सर्वे पूरे भारत का नहीं था; इसमें सिर्फ छह राज्य-असम, पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दिल्ली-शामिल थे, प्रत्येक से 500 लोगों के जवाब लिए गए। यह जानकारी छोटे अक्षरों में छिपी थी, जिसे शायद ही कोई पढ़ता हो। असम और उत्तर प्रदेश को सर्वे में बराबर का महत्व दिया गया! सोचिए, कितनी गलत पद्धति थी। फिर भी, हिंदू ने इस निष्कर्ष को ऐसे छापा जैसे यह पूरे देश की राय हो।


आपने सीएसडीएस से यह सवाल नहीं किया कि ये छह राज्य ही क्यों चुने गए। आपने पाठकों को यह भी नहीं बताया कि इनमें से चार राज्यों-असम (40%), पश्चिम बंगाल (35%), केरल (27%), और उत्तर प्रदेश (19%)- में मुस्लिम आबादी काफी ज्यादा है। संजय कुमार ने करण थापर के साथ साक्षात्कार में असम और पश्चिम बंगाल के आंकड़े स्वीकार किए, लेकिन आपने इसे नजरअंदाज कर दिया। इतना ही नहीं, हिंदू ने अपने ही डेटा टेबल को अनदेखा किया। टेबल 10 दिखाता है कि असम में 99% और पश्चिम बंगाल में 97% लोगों के पास प्रस्तावित SIR के लिए जरूरी 11 दस्तावेज पहले से थे (यह सर्वे आधार के फैसले से पहले का है)। लेकिन टेबल 11 कहता है कि 45% लोग अभी भी डरते हैं कि “उनका वोट कट जाएगा!” कोई भी जिम्मेदार अखबार यह सवाल उठाता: अगर लगभग सभी के पास दस्तावेज हैं, तो आधे लोग वोट कटने का डर क्यों जता रहे हैं? इस विरोधाभास की जांच होनी चाहिए थी, लेकिन हिंदू ने बिना सोचे-समझे दावा छाप दिया।
सीएसडीएस से पारदर्शिता की मांग न करके—कोई कच्चा डेटा नहीं, नमूना डिजाइन की कोई व्याख्या नहीं,  बेतरतीब चयन से जुड़ी कोई जानकारी नहीं—हिंदू ने खुद को एक अखबार से कुछ और बना लिया। पाठकों को सनसनीखेज सुर्खियां तो मिलीं, लेकिन विश्वसनीयता समझने के लिए जरूरी संदर्भ नहीं। यह अच्छी पत्रकारिता नहीं है। आप अभी भी सबसे भरोसेमंद मंचों में से एक हैं, और मैं हर सुबह हिंदू पढ़ता हूं। हिंदू को यह करना चाहिए:

  • सीएसडीएस से कच्चा डेटा मांगें, बिना सोचे-समझे कुछ भी न छापें।
  • अपनी जांच खुद करें।
  • सिर्फ डाकिया न बनें; जो परोसा जाए, उसे परखे बिना न छापें।
  • विरोधाभासों पर सवाल उठाएं, जैसे कि अगर दस्तावेज सबके पास हैं, तो डर इतना क्यों है?
  • अपने पाठकों के लिए रिकॉर्ड सुधारें।

सादर,

दिलीप मंडल
(श्री मंडल के पत्र का अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद मीडिया स्कैन ने किया है)

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