अमर गर्ग कलमदान
आज घर में किसी ने खाना नहीं बनाया क्योंकि जनता के लोकप्रिय नेता डांगे का निधन हो गया था। लोग उन्हें अपना जीवित भगवान मानते थे। पार्टी कार्यालय में उनके पार्थिव शरीर को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी।
परिवार ने शव के दाह संस्कार के लिए सात मन लकड़ी मंगवाई थी, जिसमें कुछ चंदन की लकड़ी भी थी, लेकिन सोलह सदस्यीय समिति ने आदेश पारित किया कि कॉमरेड डांगे की मृत्यु अस्थायी है, वे कभी भी जीवित हो सकते हैं।
शव को समाधि की मुद्रा में एक बड़े रेफ्रिजरेटर में रख दिया गया। लोगों से कहा गया, “विज्ञान बहुत तरक्की कर रहा है, कॉमरेड डांगे कभी भी हमारे बीच वापिस आ सकते हैं, बस खुशखबरी का इंतज़ार करें।”
ए.जी. कार एक प्रतिष्ठित बुद्धिजीवी माने जाते थे और विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रह चुके थे। उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों की पूरी समझ थी। बचपन अमृतसर में बीता होने के कारण, उनकी बंगाली, पंजाबी और अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ थी।
डांगे ने उन्हें 16 सदस्यीय समिति में अतिरिक्त पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त किया था और टीवी पर राजनीतिक मुद्दों पर पार्टी की स्थिति का बचाव करने के लिए अक्सर पेश होते थे।
पार्टी के एक वफ़ादार सिपाही ए.जी.कार पार्टी के प्रति जनसमर्थन में भारी गिरावट से चिंतित थे, “एक ज़माने में पार्टी कार्यालय में जनता का मेला लगता था। आज पार्टी कार्यालय में गिने-चुने कार्यकर्ता ही आते हैं। पार्टी कार्यालय के बड़े आँगन में चबूतरे पर लगी लेनिन की मूर्ति हिल रही थी,”
क्योंकि चूहों ने जड़ों में छेद कर दिए थे। पार्टी के सारे दांव उल्टे पड़ने लगे। ए जी कार झूठ के बोझ तले अपनी आत्मा को और कष्ट नहीं देना चाहते थे। 16 सदस्यीय समिति के समक्ष पेश होते हुए उन्होंने कहा, “”अतीत में, हमने भारत को एक राष्ट्र नहीं माना, कभी ‘भारत मां की जय’ या ‘वंदे मातरम’ नहीं कहा, जबकि ये दोनों नारे कम्युनिस्टों के प्राथमिक नारे होने चाहिए थे, हमने हो ची मिन्ह, फिदेल कास्त्रो या माओ के राष्ट्रवाद से कुछ नहीं सीखा।
19 सितंबर 1942 के एक प्रस्ताव ने भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन की जड़ें एक झटके में उखाड़ दीं। यह वही प्रस्ताव था जो भारत के विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण का समर्थन करता था। हम इतने मूर्ख हो गए थे कि अपनी ही माँ के विभाजन में भागीदार बन गए।
हम जिन्ना को एक क्रांतिकारी मानने लगे, जिनके हाथों हमारे अपने ही निर्दोष लोग मारे गए। जब हम इतिहास पर नज़र डालते हैं और देखते हैं कि 16 अगस्त 1946 को जिन्ना के प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस के आह्वान पर दो शीर्ष कम्युनिस्ट नेताओं जिन्ना के साथ बंगाल में मंच सांझा किया, देख कर मेरी आत्मा रो रही है ।
जिन्ना द्वारा (डायरेक्ट एक्शन डे) प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस के आह्वान के कारण बंगाल में दंगे भड़क उठे, जिनमें लगभग 6,000 हिंदू और मुसलमान मारे गए और लगभग 2 लाख महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ। उसी दिन पाकिस्तान के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया था।
अब जबकि चीन के साथ युद्ध का प्रश्न उठ खड़ा हुआ है, हम अब पूरी पार्टी से देश के राष्ट्रीय पूंजीवाद के नेतृत्व में राष्ट्रवाद के साथ खड़े होने का आग्रह कर रहे हैं, जबकि हमने न केवल अपने कार्यकर्ताओं को राष्ट्रवाद पर लामबंद नही किया है, बल्कि राष्ट्रवाद को राष्ट्रीय पूंजीवाद का हथकंडा समझते रहे।
16 सदस्यीय समिति के सचिव प्रकाश चंद जोशी ने कहा, “कॉमरेड कार, आपने बंद कमरे में अपनी बात कह दी है, लेकिन कृपया इन विचारों को किसी अखबार में प्रकाशित न करना, इसी में आपकी भलाई है, अपना साथ बना रहेगा।”
हुआ भी वही, पार्टी टूट गई, टुकड़े के आगे टुकड़े हो गए। दफ्तर लूट लिए गए। जिसके हाथ जो लगा, वो ले गया। ए.जी कार फिर बोले, “जब हमने अपने कैडर को धरतीपुत्र नहीं बनाया, तो उम्मीद मत रखिए कि वो पार्टी के लिए सुपुत्र साबित होंगे ”
प्रकाश चंद जोशी ने कहा, “कॉमरेड कार जी, बताइए, ‘पार्टी को अब खड़ा करने के लिए कौन सी नीति अपनाई जाए?’ ए.जी. कार ने कहा, ‘सबसे पहले देश की जनता से अतीत में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगिए। पार्टी के कार्यक्रम को राष्ट्रवाद से जोड़िए।’ भारतीय राष्ट्रवाद विशुद्ध रूप से सांस्कृतिक और वैज्ञानिक है। यह पर्यावरण और संपूर्ण मानवता के लिए कल्याणकारी है। आप योग को देख सकते हैं, यह पूरी दुनिया को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं से जोड़ रहा है। आप कुंभ को देख सकते हैं, जहाँ देश की आधी आबादी पहुँचती है जो केवल सूर्य और नदी को प्रणाम करती है, जहाँ निराकार ईश्वर की कोई मान्यता नहीं है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए, कम्युनिस्ट पार्टी को अपने कार्यकर्ताओं के बीच दो मुख्य नारे बुलंद करने चाहिए, पहला: “भारत माता की जय” और दूसरा “वंदे मातरम”। यह सुनकर प्रकाश चंद जोशी बोले,”कॉमरेड कार, कम्युनिस्ट पार्टी इन नारों को स्वीकार नहीं कर सकती। अगर पार्टी इन नारों को स्वीकार कर लेती है, तो उसके कार्यक्रम का धर्मनिरपेक्ष ढाँचा नष्ट हो जाएगा। ये नारे सैद्धांतिक रूप से भी सही नहीं हैं।”
ए.जी.कार ने कहा, “आप धर्मनिरपेक्ष मंच से नहीं, बल्कि एक संप्रदाय के मंच से बोल रहे हैं। इन नारों का क्या मतलब है, यही ना, हे मातृभूमि तेरी जय हो, हम आपको प्रणाम करते हैं, ये शुद्ध मार्क्सवादी नारे हैं,”इनमें ईश्वर की कोई महिमा नहीं है। इसके विपरीत, इन नारों को नकारने वाले संप्रदायों का तर्क है कि वे किसी पत्थर या मिट्टी की जय नहीं कर सकते, वे तो केवल निराकार ईश्वर की जय करेंगे।
इसका मतलब है कि हम मार्क्सवाद के साथ नहीं, बल्कि पंथिक शक्तियों के आगे सिर झुकाते हैं। याद रखिए, जैसे किसान अपने बेटे को अपनी धरती का पुत्र बनाता है, वैसे ही यह धरती भी अपने पुत्र को वारिस बनाएगी। याद रखिए ‘वंदे मातरम’ का नारा बंगाल की धरती से उठा था, इस नीति पर चलते बंगाल भी ज्यादा दिन हमारे पास नहीं रहेगा, यह उनके पास चला जाएगा जो दिल से ‘वंदे मातरम’ कहेंगे।
कई साल बीत गए, कॉमरेड ए.जी. कार बूढ़े हो गए थे। प्रख्यात लेखक सरचांदपुरी उनसे मिलने आए। कहने लगे “कॉमरेड, हमें कश्मीरियों के आत्मनिर्णय के पक्ष में एक आंदोलन शुरू करना चाहिए।” भारत में पूंजीवादी सरकार ने कश्मीरियों का दमन किया है, हम इसे स्थाई शांति नहीं कह सकते।’ यह सुनकर ए.जी.कार क्रोधित हो गए, लेकिन यह मानते हुए कि बुद्धि के माध्यम से क्रोध को विचारों में बदलना सबसे अच्छा तरीका है, कहने लगे , पहले ये बताओ, भारत तो पहले ही तीन टुकड़ों में बँट चुका है, पार्टी आज भी इस विभाजन में अपनी निभाई भूमिका का कलंक झेल रही है। अपनी ही पार्टी, जिसे हमने अपने हाथों से बनाया है, अब और कितना डुबोएंगे? त्रिपुरा हार गए, बंगाल हार गए, अब सिर्फ़ केरल बचा है, अब ये भी आपकी कलम को चुभता है। बताइए, आप उस दिन मेरे पास क्यों नहीं आए जब कश्मीरी आतंकवादियों ने एक कश्मीरी पंडित महिला गिरजा टिक्कू को आरे से चीर डाला था। सरचचांदपुरी जी, आप स्वयं पंडित जाति से हैं, जिसने अतीत में ऐसे ग्रंथों की रचना की है, जिसके कारण आज तक इस भूमि पर एक सांझी संस्कृति बची हुई है।
अब आप भी आतंकवादियों के साथ खड़ रहे हो, बड़ी गिनती में कश्मीरियों का पलायन करने के बाद, बचे हुए, खौफ ज़दा को भी आरे से कटने के लिए माहौल बनाना चाहते हो। आत्मनिर्णय का नारा एक ढोंग है, पंडितों के विरुद्ध हिंसा का वातावरण बनाने के लिए। जबकि पंडित तो काश्मीर के मूल निवासी है। तुम्हारा खून सफ़ेद क्यों हो गया है? मेरी आत्मा चीख रही है, किन दुश्मनों के गल पड़ूं, तो नतीजा निकलता है, हम खुद अपनी ही पार्टी के दुश्मन हैं।आप मेरी हालत देख ही रहे हैं, पहले दफ्तर कितना बड़ा हुआ करता था, आज मैं जिस कमरे में बैठा हूं, उसमें बाथरूम तक नहीं है, अब आप ही बताइए, पार्टी को गुमराह करने में लेखकों या कलमकारों की क्या भूमिका है? यह सुनकर सरचांदपुरी कुछ नहीं बोले, और उठ कर चल दिए।
गुस्से को शांत करने के लिए ए.जी कार ने प्रकाश चंद जोशी को फोन मिलाया और कहने लगे, “कॉमरेड, पार्टी की स्थिति समझिए। डांगे मर चुका है। उसे अग्नि भेंट कर दीजिए। शायद नई पीढ़ी पार्टी में जान डाल दे।
संपर्क : अमर गर्ग कलमदान
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amargargp@gmail.com