दयनीय हालत में पहुंचने के बाद भी कांग्रेस में सत्ता का संघर्ष

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समीर चौगांवकर

बेंगलुरु: कर्नाटक कांग्रेस में वर्चस्व की लड़ाई बेशर्मी के साथ सड़कों पर आ गई है।कांग्रेस का कर्नाटक संकट यह बताता है कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व ऐतिहासिक गलतियों के बाद भी सुधरना नहीं चाहता और मोदी और शाह की कार्यशैली से सीखना नहीं चाहता। भाजपा में सत्ता का हस्तातंरण जिस सहजता, स्वीकार्यता और सभी की सहभागिता के साथ होता है वह कांग्रेस के संस्कारों में कभी नहीं रहा।

एक दल के रूप में दयनीय हालत में पहुंचने के बाद भी सत्ता के लिए आपस में खून खच्चर करना,पार्टी से बगावत करना और रत्तीभर कांग्रेस का न सुधरना बताता है कि कांग्रेस को मिट्टी में मिलाने की तैयारी विपक्ष नहीं,कांग्रेस हाईकमान खुद कर रहा है।

राहुल,उनकी मां सोनिया गांधी और बहन प्रियंका एक साथ राजनीति में सक्रिय हैं उसके बाद भी पार्टी पर गांधी परिवार की पकड़ और देशभर में कांग्रेस इससे ज्यादा कमजोर पहले कभी नहीं थी।यह पारिवारिक तिकड़ी पार्टी में पकड़ और जनता में असर को लगातार खोते जा रही है।

कांग्रेस की भौगोलिक सिकुड़न भी सोनिया और राहुल को परेशान नहीं करती।सिर्फ तीन राज्यों- कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना में सत्ता में है और झारखंड़ में सत्तारूढ़ गठबंधन में जूनियर पार्टनर है।

पार्टी पिछले कई सालों से बड़े पैमाने पर दलबदल की गवाह बनी है और पार्टी के विधायक भाजपा और दूसरे दलों का दामन थामते रहे और कांग्रेस की सरकार गिराते रहे।

कर्नाटक में गुटबाजी, तलवारबाजी और खून खच्चर कांग्रेस के नेता आपस में ही कर रहे हैं और बीजेपी को सत्ता में आने का मौका खुद ही मुहैया करा रहे हैं। कांग्रेस के राज्यों के ज्यादातर ताकतवर और वफादार नेता या तो फीके पड़ रहे हैं, दरकिनार कर दिए गए हैं या फिर कांग्रेस को छोड़ कर अन्य दलों का दामन थाम रहे हैं।

कांग्रेस के देशभर में गिरते ग्राफ को देखने के बाद भी सोनिया और राहुल गांधी ने पार्टी संगठन का ढांचा सुधारने की कोई कोशिश नहीं की है और न ही प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री शाह के अगुआई में भाजपा के बढ़ते कारवां का मुकाबला करने की कोई विचाराधारात्मक और रणनीतिक योजना बनाने की कोशिश की।

शाश्वत कांग्रेस पर गांधी परिवार के नियंत्रण ने कांग्रेस को एक अलग सांचे में ढाल दिया है।निरंतर कांग्रेस पर गांधी परिवार के नियंत्रण ने संगठन को खत्म कर दिया।कांग्रेस के खिलाफ देशभर में उपजे असंतोष और कमजोर संगठन ने विपक्षी दलों को अपने खोटे सिक्कों को भी आसानी से चुनाव जीतने में मदद की है।

कांग्रेस मर रही है और सारे कांग्रेसी और देश की जनता कांग्रेस को तिल तिल कर मरता हुआ देख रही है।
कांग्रेस की कमजोरियों से कांग्रेस की मुक्ति का दिन अभी दूर है,इसलिए कांग्रेस में बगावत होना और कांग्रेस का टूटना तय है।

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