दायित्व जिम्मेवारी है, ठेकेदारी नहीं

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राहुल चौधरी नील

दिल्ली। किसी भी संगठन का सबसे ज्यादा नुक्सान वे लोग करते हैं जो दायित्व मिलते ही ठेकेदारी शुरू कर देते हैं, उनको लगता है संगठन उनकी बपौती है l इनके पद पर रहते शायद इस नुक्सान का भान उतना ना हो लेकिन जाने के बाद अहसास होता है कि अपने दंभ, अकर्मण्यता और व्यंक्तिगत हितों के बदले संगठन का कितना नुक्सान हो चुका होता है l जरा ध्यान से देखिये तो मिलेगा कि SELF OBSESSION के शिकार ये लोग भयंकार असुरक्षा की भावना के शिकार होते हैं l इसीलिए इनकी SOCIAL MEDIA देख लीजिये या इन्हें चार लोगों के बीच बातचीत करते देखिये – संगठन कहीं पीछे होता है – इनके नक्कारखाने में केवल और केवल मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं मैं फटा हुआ ढ़ोल बजता है l

इनका एक और बड़ा प्रिय खेल होता है – अपने आपको बड़ा, ग्यानी और सर्वश्रेष्ठ दिखाने के चक्कर में और अपनी लकीर को बड़ा करने के लिए साधारण कार्यकर्ताओं की लकीरों को छोटा करते फिरते हैं l इसके लिए चाहे अपने पद का दुरूपयोग ही क्यों ना करना पडे l फिर अपने ही हाथो अपनी पीठ थपथापयेंगे l अरे महामानव जिस महफ़िल से तुम अपना कॉलर ऊँचा करके जा रहे हो ना, कभी पीछे मुड़कर भी देखा करो, तुम्हारी जो बजाई जाती हैं ना- वो बहुत ऊपर के स्तर की होती है l पर आत्ममुग्धता के अंधों को ये सब नहीं दीखता l

सवाल यह भी आता है कि संगठन ऐसे लोगों को दायित्व देता ही क्यों है – रामायण का कालनेमि, मारीच और रावण याद है ना? बहरूपिये l

(सोशल मीडिया से)

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