प्रणय रॉय (जिन्हें कभी-कभी ‘जेम्स प्रणय रॉय’ कहा जाता है) पर ईसाई होने का आरोप लगता रहा है, जो सोनिया गांधी की कथित ईसाई पृष्ठभूमि से मेल खाता था। पत्रकारों ने खुलासा किया कि सोनिया इस वजह से रॉय पर अधिक विश्वास करती थीं। पूर्व पीएमओ मीडिया सलाहकार संजय बरू की किताब ‘द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ (2014) में उल्लेख है कि सोनिया-मनमोहन सिंह युग में एनडीटीवी को विशेष पहुंच मिली, क्योंकि रॉय को ‘विश्वसनीय’ माना जाता था। पत्रकार स्वपन दासगुप्ता ने एक इंटरव्यू में कहा, “सोनिया की वेलफेयर योजनाओं के लिए बजट सुनिश्चित करने में एनडीटीवी जैसी मीडिया ने भूमिका निभाई।” मार्गरेट अल्वा की आत्मकथा ‘कौरेज एंड कमिटमेंट’ (2022) में भी सोनिया के मीडिया पर नियंत्रण का जिक्र है, जहां रॉय को ‘अंदरूनी सर्कल’ का सदस्य बताया गया।
एनडीटीवी ने देश को कई ‘गोदी एंकर’ दिए, जो कांग्रेस की गोद में बैठे चिल्लाते थे। रविश कुमार ने ‘प्राइम टाइम’ में यूपीए की तारीफों के पुल बांधे, जबकि बरखा दत्त ने ‘वी द पीपल’ में विपक्ष को ‘अराजक’ ठहराया। विपल मेहता और सोनाली भंसजी जैसे एंकरों ने 26/11 कवरेज (2008) में पाकिस्तान को फोकस कर कांग्रेस की ‘सॉफ्ट’ इमेज बचाई। ये एंकर आज सक्रिय हैं, लेकिन तब वे ‘सेक्युलर वारियर’ बने घूमते थे।
कांग्रेस के सत्ता हटने के बाद एनडीटीवी पर सीबीआई छापे (2017) पड़े, जो ‘विच हंट’ बताए गए। लेकिन आलोचक कहते हैं, यह ‘गोदी’ का अंतिम अध्याय था। आज अडानी समूह के अधिग्रहण (2022) के बाद चैनल बदल गया, लेकिन पुरानी ‘गोदी’ की यादें बाकी हैं।