धर्मरक्षक अखाडे और नागा बाबाओं का रहस्य लोक

6786593ac16d4-naga-sadhus-of-juna-akhada-143148969-16x9.jpg.webp

आचार्य श्रीहरि

महाकुंभ के दौरान अखाडों और नागाओं को लेकर उत्सुकता है, इनके कौशल और शौर्य तथा श्रृंगार व वेशभूषा को लेकर जिज्ञासा भी है और आश्चर्य भी है। कोई एक नहीं बल्कि कई प्रश्न श्रद्धालुओं के मन में उठते हैं, क्योंकि अखाडों के बारे में आमजन की जानकारी बहुत ही कम होती है और खासकर नागाओं के बारे में तो जानकारी बहुत ही सीमित या फिर नगण्य ही होती है। जैसे अखाडों की भूमिका क्या है? अखाडों की शुरूआत कब हुई थी, अखाडों का उद्देश्य क्या है, इनकी सक्रियता के तंत्र और मंत्र क्या है? अखाडे सनातन की रक्षा कैसे करते हैं? इसी तरह नागाओं के बारे में आम जन का मन में यह प्रश्न उठता है कि ये कहां रहते हैं, इनकी उपासना पद्धति क्या हैं, ये कहां से आते हैं और कहां से चले जाते हैं, ये मनुष्यता के बीच में रहते नहीं है तो फिर ये कहां छिपे होते हैं और ये सिर्फ महाकुंभ के दौरान ही क्यों उपलब्ध होते हैं, ये अपने शौर्य दिखाने में इतने निपुण कैसे होते हैं,?

अखाडों और नागा बाबाओं के प्रति ऐसी जिज्ञासा क्यों हैं? ऐसी जिज्ञासा इसलिए है कि महाकुंभ के दौरान अपनी अलोकित शक्ति से चमत्कृत कर रहे हैं। खासकर नागा बाबाओं ने अपने तप और बल तथा हट का जिस तरह से प्रदर्शन कर रहे हैं उससे महाकुंभ की कौशल और शौर्य आसमान छू रहा है और इसके अलावा सनातन की समृद्धि और शौर्य से लोग हतप्रभ है, देश के जनमानस ही नहीं बल्कि पूरा विश्व भारत की इस आध्यात्मिक चेतना और शक्ति को देख कर आश्चर्य है और इसके रहस्यों को लेकर जिज्ञासु है। क्योंकि कोई नागा बाबा अपनी जटा से पेड की टहनी से झूल रहा है तो कोई नागा बाबा अपनी जटा से भारी से भारी वस्तुओं को खीचने और उठाने का शौर्य दिखा रहा है, कोई नागा बाबा विषैले सांपों से खेल रहा है, कोई नागा बाबा तलवारबाजी का चमत्कार और वीरता दिखा रहा है तो कोई नागा बाबा तांडव नृत्य कर रहा है। ऐसी नागा बाबाओेें के दक्षता और वीरता को देख कर आमजनों का आश्चर्य में पडना अनिवार्य है।

जहां तक अखाडों की बात है तो इसकी उत्पति और दायित्व को लेकर कोई रहस्य नही है, कोई आश्चर्य की बात नहीं है। अखाडे सनातन की सुरक्षा परिधि के अंदर आते हैं। सनातन की सुरक्षा के लिए अखाडों का निर्माण हुआ था। आदि शंकराचार्य इसके जनक थे। शस्त्र और शास्त्र के नियमन बनाये थे। उनकी कल्पना थी कि अखाडे के साधु शस्त्र और शास्त्र विद्या मे पूरी तरह दक्ष और निपुण हो। उनके एक हाथ में गीता, रामायण, वेद और पुरान हो तो दूसरे हाथ में उनके पास तलवार, भाला,धनुष भी हो ताकि दानवों और राक्षसों से सनातन की रक्षा संभव हो सके। अखाडे एक प्रकार से सैनिक तैयार करने और विद्यार्थी तैयार करने की जगह होती है, विद्या की कसौटी पर हम इसे सनातन की विरासत और तप का स्कूल कह सकते हैं और सैन्य शक्ति की कसौटी पर सनातन सैनिक छावनी कह सकते हैं। अखाडों में मुख्यत दो प्रकार की शिक्षाएं दी जाती है। एक शिक्षा सनातन की विरासत की जानकरी दी जाती है, तप की प्रेरणा और विधि की शिक्षा होती है। सनातन धर्म की तप की कोई एक नही बल्कि सहस्र विधियां हैं, श्रेणियां हैं जो काफी जटिल और कठिन होती है, सनातन में मान्यता है कि भगवान तप से प्रसन्न होते हैं और मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं, जीवन चक्र से मुक्त होने का वरदान देते हैं। पर तप आसन नहीं होता है। मनुष्य योनी से मुक्ति का वरदान प्राप्त करना कठिन होता है। तप कोई समृद्धि वाले क्षेत्रों में नहीं होता है,आबादी वाले क्षेत्रो में नहीं होता है, कोई दिल्ली, मुबंई और चैन्नई जैसे शहरों में बैठकर नहीं होता है बल्कि इसके लिए नदियों के वीरान तटो, बिहडो और घनघोर जंगलों को चुना जाता है, जहां पर सांप, विच्छु और हिंसक जानवरों के बीच तपस्या करनी पडती है। तप की एक विधि योग भी है। अखाडों का संचालक एक गुरू होता है और शेष शिष्य होते हैं। इन्हें धर्म रक्षा के लिए लडने-भिडने और बलिदान होने की शिक्षा दी जाती है, सिर्फ शारीरिक शिक्षा ही नहीं बल्कि मानसिक शिक्षा भी दी जाती है। विरक्ति पालन की कठिन शिक्षा भी अखाडे देते हैं।

जबकि नागा साधु भगवान शिव के सहचर होते हैं, भगवान शिव के उपासक होते हैं, भगवान शिव के शिष्य होते है। भगवान शिव का अर्थ सत्य होता है। सत्यम शिवम सुंदरम का अर्थ तो आपलोग जानते ही होंगे। भगवान शंकर को सत्यम और सुंदरम कहा गया है। यानी की दुनिया में भगवान शंकर से सत्य और सुंदर कोई हो ही नहीं सकता है। भगवान शंकर की दाढी और जटा निराली होती है, वे फक्खड और निराले होते हैं, उनकी अदाएं और क्रियाएं अद्भुत होती है। भगवान शंकर हिमालय पर राज करते हैं, उनके शरीर पर सांप, विच्छु सहित न जाने कितने जहरीली जीव होते हैं जो साधारण मनुष्य को काट ले तो फिर उसकी मौत निश्चित है, लेकिन भगवान शंकर को कोई फर्क नहीं पडता है। आपने समुंद्र मंथन की कहानी सुनी होगी। समुद्र मंथन में सिर्फ अमृत ही नहीं निकला था बल्कि विष भी निकला था। विष इनता विषैला था कि वह ब्र्रह्मांड को ही विषैला कर सकता था और समस्य जीवों का संहार कर सकता था। देवताओं पर समुद्र मंथन के विष को निष्क्रिय करने को लेकर हाहाकार मच गया था। फिर भगवान शंकर सामने आये थे और विष को पीकर ब्राह्मांड को बचाने का काम किया था। भगवान शंकर में सभी प्रकार के विषों को पचाने की शक्ति है। जब किसी का कोई सहचर होगा, किसी का कोई अनुयायी होगा, शिष्य होगा, किसी का कोई उपासक होगा तो फिर उसकी प्रेरणा भी ग्रहण करेगा, उसका जीवन भी उसी ढंग का होगा, उसका रूप रंग भी उसी तरह का होगा, उसकी क्रियाएं भी उसी तरह का होगा और उसका तप और हट भी उसी प्रकार का होगा। चूंकि नागा साधु भगवान शंकर के शिष्य होते हैं और उपासक होते हैं तो फिर वे उन्ही का रूप रंग ग्रहण करते हैं, वे भगवान शंकर जैसा ही हट भी करते हैं और तप भी करते हैं। यही कारण है कि नागा साधु भगवान शंकर जैसा ही दाढी रखते हैं, जटा भी उसी तरह से रखते हैं, उनके शरीर पर आवरण भी उसी ढंग का होता है, ये सांप और विच्छु से खेलते हैं, अपने शरीर पर जहरीली जीवों को रखते हैं, कठिन और आश्चर्य चकित करने वाले करतब दिखाते हैं। एक भ्रम यह है कि नागा साधु मदिरा का सेवन करते है? यह भ्रम है? आधुनिक मदिरा का सेवन नहीं करते हैं। ये आधुनिक मदिरा के सेवन से काफी दूर है। फिर ये किस प्रकर के मदिरा का सेवन करते है? कई जडी-बूटियां ऐसी होती है जो आधुनिक मदिरा से भी ज्यादा मारक होती है और नशीली होती है, जो साधारण मनुष्य के लिए जहर के सामान होती हैं, जिनके सेवन से साधारण मानव का प्राणघात हो सकता है। लेकिन नागा साधु ऐसी मारक और प्राणघात नशीली जडी’बुटिया का सेवन कर आसानी से पचा लेते है। आप धतूर औषधि का नाम तो सुना ही होगा। भगवान शंकर धतुरा औषधि का संबंध भी उल्लेखनीय है।

नागा साधु आते कहां से है और कुंभ के बाद कहां लुप्त हो जाते हैं? नागा साधु तप और हट के पर्याय होते हैं। इसलिए इन्हें आम आदमी के बीच रहना पसंद नहीं होता है। आम आदमी और मनुष्य क्रियाओं के बीच रहने से इनका ध्यान प्रक्रिया और हट योग साधना से ध्यान भटक सकता है, इनके धार्मिक क्रियाएं बाधित हो सकती है। इसीलिए ये घनघोर नदियों के विरान तटों को चुनते हैं, ये उत्तराखंड के घने जंगलों, नेपाल के घने जंगलों को चुनते हैं, ये हिमालय पर्वत को चुनते हैं, ये मानसरोवर को चुनते हैं, ये ब्रम्हपुत्र नदी के तट को चुनते हैं, जहां पर ये भयानक गर्मी का सामना करते हैं, भयानक बरसात का सामना करते हैं, जहां पर ये भीषण ठंड का सामना करते हैं जहां पर ये बिघ्न रहित साधना करते हैं, इन्हें भीषण गर्मी, भीषण ठंड और भीषण बरसात भी साधना से विरक्त नहीं करती हैं। ये कोई आश्रम बना कर रहते नहीं हैं। ये कोई भोजन के आधुनिक सिद्धांत से जुडे भी नहीं होते हैं, ये सिर्फ गुफाओं में रहते हैं, अपनी धूनी के लिए पत्थर की गुफाएं खोजते हैं या फिर स्वयं गुफाएं बना लेते हैं। ये कठिन योग के सहचर होते हैं। योग से ही भगवान तक पहुंचना अनिवार्य हैं और निश्चित है। भगवान शंकर तक पहुचने के लिए नागा साधु कठिन योग का सहारा लेते हैं।

अखाडे और नागा साधु एक दूसरे के पर्याय हैं। सनातन के अंदर अभी तक 13 प्रमुख अखाडे हैं, जिनमें जूना, निरंजन, अटल, आव्हान, आनंद, अग्नि, नागपंथी गोरखनाथ, वैष्णन, उदासीन,निर्मोही अखाडे प्रमुख हैं जो नागा साधुओं को तैयार करते है। नागा साधु बनने के लिए स्वयं का पींडदान करना होता है और उन्हें निर्वस्त्र रहना पडता है। कई-कई साल की कठिन परीक्षाओं के बाद कोई नागा साधु बनता है। नागाओ की वीरता और सनातन धर्म की रक्षा का एक महान वर्णण गोकुल युद्ध में दर्ज है। 111 नागा साधुओं ने अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली की बर्बर सेना को हराया था और मंदिरो तथा सनातन की रक्षा की थी। नागा साधुओं केे दो योध्याओं शंभू और अजा ने 4000 हजार अफगान सैनिकों और 200 घुडसवार सैनिको तथा तोपों के सामने मजबूत दीवार के रूप में डट गये थे, अब्दाली के सेना यह सोची कि ये नग्न लोग उनसे क्या लडेंगे, इन्हें तो मिनटों में मिटा दिया जायेगा। भयानक युद्ध में अब्दाली की सेना की पराजय हुई थी और गोकुल नगरी की रक्षा कर भगवान कृष्ण की विरासत बचायी थी। मुगल काल के दौरान सनातन की रक्षा में अखाडों और नागा साधुओ की भूमिका बेमिसाल थी।

Share this post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll to top