मधु शर्मा
दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट में खजुराहो के जवारी मंदिर में भगवान विष्णु की 7 फुट लंबी सिर कटी मूर्ति की पुनर्स्थापना की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) द्वारा की गई टिप्पणी कि, “यह एक पुरातात्विक स्थल है और एएसआई को इसकी अनुमति देनी होगी” ने सांस्कृतिक स्मारकों के पुनर्निर्माण को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। यह विचार उन ऐतिहासिक स्मारकों और स्थानों के पुनर्निर्माण पर केंद्रित है जिनमें मुगल काल के, अथवा समयावधि के दौरान कथित तौर पर क्षति हुई थी। इस दृष्टिकोण के साक्ष्य का मानना है कि ऐसे कदम न केवल ऐतिहासिक धारणा को सुधारेंगे, बल्कि राष्ट्रीय गौरव और भाईचारे की भावना को भी बढ़ावा देंगे।
इस दिशा में पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम एक कानूनी ढांचा तैयार करना है। सरकार को ऐसा कानून बनाना चाहिए जो उन ऐतिहासिक स्थलों की पहचान करे और उनके पुनर्निर्माण के लिए दिशा-निर्देश स्थापित करे। इस प्रक्रिया में इतिहासकारों, पुरातत्वविदों और कला विशेषज्ञों की एक टीम को शामिल किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पुनर्निर्माण प्रक्रिया पारंपरिक और सांस्कृतिक ढंग से पूर्ण हो सकें। इस प्रक्रिया में जन साधारण एवं सभी संबंधित समुदाय की भावनाओं को भी संज्ञान में रखना चाहिए।
इन पुरातत्व स्मारकों, और धरोहरों के पुनर्निर्माण से कई सकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं। जिन स्मारकों को उनके मूल स्वरूप से बदल दिया गया या पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया है, उन्हें फिर से उनके मूल स्वरूप में लाना हमारी समृद्ध विरासत के प्रति सम्मान का प्रतीक होगा। यह कदम लोगों में अपनी संस्कृति और इतिहास के प्रति गौरव की भावना पैदा करेगा।
यह पर्यटन को भी बढ़ावा देगा। भारत में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, और पुनर्निर्मित स्मारकों की भव्यता और दिव्यता निश्चित रूप से पर्यटकों को आकर्षित करेगी। अयोध्या में राम मंदिर का उदाहरण हमारे सामने है, जिसने न केवल धार्मिक आस्था को पुनर्जीवित किया है, बल्कि एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में भी खोजा गया है। इसी प्रकार, अन्य ऐतिहासिक स्थलों का पुनर्निर्माण राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर किया जा सकता है, जिससे पर्यटन एवं आर्थिक विकास को गति मिल सके।
पुनर्निर्माण का उद्देश्य किसी भी समुदाय को अपमानित करना या इतिहास को बदलना नहीं, अपितु सभी को एक साथ लाना और हमारी साझा विरासत के गौरव की पुनःस्थापना ही होनी चाहिए। यदि इस दृष्टिकोण को सही तरीके से लागू किया जाता है, तो इस देश में भाईचारे और दर्शन को बढ़ावा दिया जा सकता है, और इतिहास को एक रथ के रूप में देखने के बजाय, एक प्रेरणा के रूप में देखा जा सकता है।
अतः इसे प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए, सरकार एक मजबूत वैधानिक ढाँचा बनाए और इन धरोहरों के पुनर्निर्माण की शुरुआत करे।