नई दिल्ली : पिछले कुछ वर्षों में भारत में डिजिटल निगरानी और सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर चिंताएँ बढ़ रही हैं। विशेषज्ञों और विश्लेषकों का अनुमान है कि केंद्र सरकार नागरिकों का डिजिटल डोजियर तैयार कर रही है, जिसमें उनकी ऑनलाइन गतिविधियों का पूरा ब्योरा शामिल है। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, 2024 तक भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 90 करोड़ को पार कर चुकी है, जिनमें से 60% से अधिक लोग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब पर सक्रिय हैं। इन प्लेटफॉर्मों पर चुनाव आयोग के अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा और धमकियों में वृद्धि देखी गई है।
पिछले 11 वर्षों में केंद्र सरकार की नीतियों, विशेष रूप से डिजिटल निगरानी और डेटा संग्रह को लेकर, कई विवाद सामने आए हैं। 2021 के पेगासस जासूसी कांड ने सरकार की निगरानी की क्षमताओं पर सवाल उठाए थे, जिसमें 300 से अधिक भारतीय नागरिकों के फोन टैपिंग की बात सामने आई थी। इसके अलावा, आधार डेटा और डिजिलॉकर जैसे डिजिटल उपकरणों के माध्यम से सरकार ने कथित तौर पर व्यक्तिगत जानकारी का विशाल डेटाबेस तैयार किया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस डेटा का उपयोग न केवल निगरानी, बल्कि संभावित कानूनी कार्रवाइयों के लिए भी हो सकता है।
सोशल मीडिया पर बढ़ती आक्रामकता और धमकियों के चलते सरकार सख्त कदम उठाने की तैयारी में है। सूत्रों के अनुसार, साइबर अपराध कानूनों के तहत गिरफ्तारी और जमानत की प्रक्रिया को और कड़ा किया जा सकता है। आने वाले समय में यह मुद्दा और तूल पकड़ सकता है।