आजकल इतनी ऊंची—ऊंची कारें बाजार में आ गई हैं कि उसमें बैठने वालों को जमीन का पता ही नहीं चलता। या फिर उसमें बैठने के बाद उनमें इंसान को इंसान समझने की सलाहियत नहीं बचती।
दोपहर में आज हल्की हल्की बुंदा बांदी हो रही थी। रास्ते में देखा, मजनू के टीले (दिल्ली) के पास एक बाइक सवार एक गाड़ी के नीचे आ गया था। दस बारह दूसरे बाइक सवार अपनी मोटर सायकिल सड़क के किनारे लगाकर उसे बाहर निकालने की कोशिश कर रहे थे। इतनी ऊंची गाड़ी थी कि उसका पैर गाड़ी में फंस गया था। इस दुर्घटना स्थल से चार सौ मीटर पहले एक और गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त अवस्था में पड़ी हुई थी।
निश्चित तौर पर इन दोनों गाड़ियों को जल्दी रही होगी। दुर्घटना के बाद वह सारी जल्दी हवा हुई होगी। उसके बाद पुलिस की शिकायत, सिर पर एक दुर्घटना का बोझ और जिसकी दुर्घटना हुई है, उसका तो उसका पूरा जीवन ही आगे बैसाखियों के सहारे कटेगा।
दिल्ली में जल्दी से जल्दी कोई भी व्यक्ति जाम से निकल जाना चाहता है और कई बार जाम इसलिए लगा होता है क्योंकि सड़क की एक पूरी कतार अनाधिकृत पार्किंग की भेंट चढ़ी होती है। सालों से मजनू टिले पर ऐसी पार्किग होती आ रही है। जो इस रास्ते पर जाम की वजह है। इसी तरह प्रगति मैदान को जो अंडरपास इंडिया गेट से जोड़ता है। इंडिया गेट वाले छोड़ पर निकलते ही वहां 500—700 मीटर लंबी अनाधिकृत पार्किग की कतार होती है। जिसकी वजह से लंबा जाम लगता है लेकिन दिल्ली के प्राइम लोकेशन पर भी ट्रेफिक पुलिसवाले देख बुझ कर भी मानों सब इग्नोर करते हैं।
एक तो दिल्ली में क्षमता से अधिक गाड़ियां बीक चुकी हैं। इसलिए पार्किंग को लेकर झगड़ा यहां आम बात है। एक अनुमान के अनुसार आधी से अधिक आबादी दिल्ली में ऐसी है, जिसने गाड़ी खरीद ली है लेकिन उसके पास पार्किंग नहीं है। गाड़ी बेचने वाले इंडिया में किसी कस्टमर से पूछते भी नहीं कि इतनी बड़ी गाड़ी खरीद रहे हो, इसे लगाने के लिए अपनी पार्किंग है या इसे सड़क के किनारे ही खड़ा करना है?
दिल्ली में जाम की समस्या तब तक नहीं सुलझेगी, जब तक अनाधिकृत पार्किंग पर लगाम नहीं लगती और बिना पार्किग स्पेस दिखलाए गाड़ी बेचने पर प्रतिबंध नहीं लगता।
जाम में फंसी गाड़ियां जिस बेतरतीब तरीके से एक दूसरे का रास्ता काटती हैं, कई बार लगता है कि इसके लिए इन गाड़ियों का अलग से चालान होना चाहिए।
जब तक दिल्ली में ट्रेफिक नियम में सख्ती नहीं बरती जाएगी। गाड़ियों की स्पीड पर लगाम नहीं लगेगी। ओवर स्पीड गाड़ियों में बैठे किसी बड़ी पैरवी वाले बंदे की पैरवी का दबाव काम करना बंद नहीं होगा, तब तक ये दुर्घटनाएं कैसे रूकेंगी, समझ नहीं आता।