दिल्ली विश्वविद्यालय में मनाया गया संविधानदिवस ।

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दिल्ली: दिल्ली में संविधान दिवस के अवसर पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता के रूप में केंद्रीय मंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल उपस्थित रहे। कार्यक्रम की शुरुआत उन्होंने उपस्थित अतिथियों एवं प्रतिभागियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए की। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि संविधान दिवस केवल स्मरण का दिन नहीं, बल्कि यह भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों, नागरिक चेतना और जिम्मेदार शासन की परंपरा को गहराई से समझने का अवसर है।

ऐतिहासिक संदर्भ पर विस्तृत चर्चा करते हुए कानून मंत्री श्री मेघवाल जी ने भारतीय इतिहास की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख करते हुए संविधान-निर्माण की पृष्ठभूमि को समझाया। उन्होंने बताया कि 1757 की प्लासी की लड़ाई भारत में ब्रिटिश सत्ता की नींव बनी, जिसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने धीरे-धीरे अपना शासन विस्तार किया। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि भारतीय लेखकों एवं विद्वानों ने 1857 की क्रांति से प्रेरणा प्राप्त की, जो राष्ट्रवादी चेतना का प्रारंभिक रूप थी। वक्ता के अनुसार, 1858 में ब्रिटिश शासन का सीधा नियंत्रण स्थापित होना साम्राज्यवाद के विस्तार की शुरुआत थी, जिसके सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव देशभर में दिखाई देने लगे।

उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन और संवैधानिक विकास पर चर्चा करते हुए स्वतंत्रता संघर्ष के क्रमिक विकास पर प्रकाश डाला और बताया की स्वशासन की मांग को मजबूत करने के लिए होम रूल आंदोलन ने महत्वपूर्ण आधार तैयार किया। 1935 के भारत शासन अधिनियम को उन्होंने प्रशासनिक ढांचे में बदलाव की दिशा में अहम माना, जिसने लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्थापना हेतु मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने कहा कि सतत संघर्षों के परिणामस्वरूप 26 जनवरी 1950 को भारत ने पूर्ण लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में संविधान लागू किया और 1952 के प्रथम लोकसभा चुनाव ने इसके व्यावहारिक स्वरूप को स्थायित्व प्रदान किया।

इसके अलावा उन्होंने संविधान के मूल आदर्श और नागरिक जिम्मेदारी को कार्यक्रम में संविधान के मूल सिद्धांत स्वतंत्रता, न्याय, समता, बंधुत्व और विधि के शासन पर प्रकाश डाला गया। अपने वक्तव्य में श्री मेघवाल ने कहा कि संविधान केवल एक दस्तावेज नहीं, बल्कि यह भारत के लोकतंत्र को दिशा प्रदान करने वाला सशक्त आधार है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान का निर्माण जितना महत्वपूर्ण था, उसका निरंतर क्रियान्वयन उतना ही आवश्यक है। वक्ता ने जोर देते हुए कहा कि संविधान दिवस नागरिकों के अधिकारों के साथ-साथ उनके कर्तव्यों के प्रति जागरूकता का प्रतीक है। उन्होंने भारतीय लोकतंत्र की सुदृढ़ता, लचीलेपन और निरंतर प्रगतिशीलता को विश्व पटल पर विशिष्ट पहचान के रूप में रेखांकित किया।कार्यक्रम का समापन धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उपस्थित प्रतिभागियों ने संविधान के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए इसके संरक्षण और पालन में सक्रिय भूमिका निभाने की प्रतिबद्धता दोहराई।


कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे दिल्ली विश्वविद्यालयके कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह ने इस विषय परविचार रखते हुए कहा… कि अम्बेडकर का मतलबआरक्षण, छात्रवृत्ति ही नहीं है बल्कि त्याग, तपस्या, दृष्टि, संघर्ष भी है। अम्बेडकर ने विरोध, सहयोग, कहेंतो समय की आवश्कता समझते थे। वह अर्थ व्यवस्थाके वास्तविक विचारक भी हैं। सच को सच कहने कीहिम्मत अम्बेडकर के पास ही थी। उन्होंने बताया किशहरीकरण की अवधारणा के भी समर्थक के रूप में बाबा साहब अम्बेडकर का परिचय दिया। उन्होंनेसमानता के बारे में कहा कि बाबा साहब ने स्वतंत्रता सेपहले समानता स्थापित करने पर जोर दिया था। प्रो. योगेश सिंह यह मानते हैं कि बाबा साहब सर्व ज्ञाता थे।उन्हें ज्ञान परंपरा का भी विशेष ज्ञान था। सुखमय मूलमधर्म: धर्म मूलम अर्थ : के बारे में भी चर्चा की। RBI केबारे में बाबा साहब के योगदान और विचार को बताया।वक्ता ने बाबा साहब की बुक ‘ द इवॉल्यूशन ऑफ़ प्रोविंशियल फ़ाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया’ पर अधिकसे अधिक शोध हो इस ओर प्रेरित करते हुए अपनेवक्तव्य का समापन किया।

दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के निदेशक प्रोफेसरराम सिंह ने आज के विषय की प्रस्तावना रखतेमहत्वपूर्ण बातों का उल्लेख किया उन्होंने भारतीयसंविधान के मुख्य शिल्पकार डॉ. भीमराव रामजीआम्बेडकर को एक अकादमिक श्रद्धांजलि भी अर्पितकी। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भारतीय आर्थिकऔर राजनीतिक इतिहास के क्षेत्र में आम्बेडकर केमूलभूत योगदानों को गंभीरता से रेखांकित करनाआवश्यक है। डॉ. राम सिंह के अनुसार, संघीय वित्तव्यवस्था और संविधान-निर्माण में आम्बेडकर द्वारा किएगए परिवर्तनकारी हस्तक्षेपों को समकालीन शोध मेंनिरंतर महत्व दिया जाना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद270 से 280 के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंनेसमझाया कि आम्बेडकर ने केंद्र और राज्यों के बीचवित्तीय संबंधों को सुव्यवस्थित करते हुए एक संतुलितसंरचना विकसित की, जिसने सहयोगवाद और वित्तीयसंघवाद दोनों को सुदृढ़ किया। उन्होंने यह भी बतायाकि ये प्रावधान अम्बेडकर की भूमिका को केवल एकसामाजिक सुधारक के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐसेआर्थिक इतिहासकार के रूप में भी प्रस्तुत करते हैं, जिन्होंने राजनीति, अर्थशास्त्र और शासन को राष्ट्रीयविकास के लिए एक समग्र ढाँचे में एकीकृत किया। डॉ. राम सिंह ने आगे आम्बेडकर की 1925 की थिसिस औरउनके बाद के ग्रंथों पर चर्चा की और तर्क दिया किआम्बेडकर ने वित्तीय स्वायत्तता और राजनीतिकजवाबदेही दोनों को संबोधित करते हुए आधुनिक राज्यके सिद्धांतों की नींव पहले ही रख दी थी। उनकी रचनाएँनगर प्रशासन, सार्वजनिक वित्त तथा शहरी विकास काविश्लेषण करती हैं, जो दर्शाती हैं कि आर्थिक विकासराज्य-स्तरीय सशक्तिकरण और संस्थागत क्षमता सेघनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है। इस प्रकार कार्यक्रम के अंत में, डॉ. राम सिंह ने कहा कि आम्बेडकर की दृष्टिको साकार करने के लिए नए शोध, नीति-निर्माण मेंसहभागिता और उनकी आर्थिक सोच को सार्वजनिकमान्यता की आवश्यकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि डॉ. आम्बेडकर के विचारों ने देश की संवैधानिक औरविकासात्मक दिशा को आकार दिया है।

इस एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में दिल्ली स्कूलऑफ़ इकोनॉमिक्स एवं सीएसडी के सभी प्राध्यापकों, प्रतिभागियों और कार्यकताओं ने अपनी भागीदारी देकरकार्यक्रम को सफल बनाया।

कार्यक्रम के अंत में डॉ राजकुमार फलवरिया जी नेसंगोष्ठी के विषय से संबंधित सभी महत्वपूर्ण बिन्दुओंको स्पष्ट करते हुए कार्यक्रम में आये हुए सभीप्रबुद्धजनों का धन्यवाद किया।

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