दो अनाथ नाबालिग बहनों को मिली बाल विवाह से आजादी और मुआवजा

6-17.jpeg
जितेंद्र परमार
जिला विधिक सेवाएं प्राधिकरण, उदयपुर ने बाल विवाह की पीड़ित दोनों बच्चियों को दिया 2.5 लाख का मुआवजा
12 एवं 14 साल की आयु में ब्याही गई दोनों बच्चियों की बाल विवाह मुक्त भारत की मदद से मिली कानूनी लड़ाई में जीत
जिला विधिक सेवाएं प्राधिकरण (डीएलएसए), उदयपुर ने 12 व 14 वर्ष की उम्र में ब्याही गई बाल विवाह की पीड़ित दो नाबालिग बच्चियों को ढाई लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश जारी किया है। बाल विवाह से मुक्ति पाने के लिए संघर्ष कर रही इन दोनों अनाथ बहनों राधा और मीना (बदला हुआ नाम) के लिए मुआवजे की यह राशि बहुत बड़ी राहत है। दोनों बहनों ने अपने बाल विवाह को रद्द करने के लिए सितंबर 2023 में अदालत का दरवाजा खटखटाया था। यह ऐतिहासिक फैसला 10 मई को पड़ने वाली अक्षय तृतीया के समय आया है जब देश में और खास तौर से राजस्थान में बड़े पैमाने पर बाल विवाह की प्रथा है। यह बाल विवाह करवाने वालों को एक चेतावनी की तरह है।
डीएलएसए का यह आदेश इन बहनों के लिए किसी पुनर्जीवन से कम नहीं है जिनका जीवन अब तक दर्द और यंत्रणा के साये में बीता था। यह सिलसिला तब शुरू हुआ जब कम उम्र में ही परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य पिता का साया सिर से उठ गया। इसके बाद परिवार दाने-दाने को मोहताज हो गया। ऐसे में मां ने 12 व 14 साल की उम्र की इन दोनों बहनों का बाल विवाह कर दिया। लेकिन खेलने-कूदने की उम्र में बच्चियों को ससुराल के बंधन रास नहीं आए और उत्पीड़न से परेशान होकर एक दिन वे चुपके से अपनी मां के पास आ गईं। लेकिन एक बहन के पति को यह इतना नागवार गुजरा कि उसने ससुराल पहुंच कर इन दोनों बहनों की मां की हत्या कर दी। पिता की मौत और मां की हत्या के बाद दोनों बहनों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। वे मां के हत्यारे को सजा दिलाना चाहती थीं और बाल विवाह के बोझ से मुक्ति चाहती थीं लेकिन उन्हें पता नहीं था कि वे कहां जाएं और किससे मिलें?
इस घटना की जानकारी उदयपुर में बाल अधिकारों के लिए काम कर रहे गैरसरकारी संगठन गायत्री सेवा संस्थान (जीएसएस) को मिली जो देश में बाल विवाह के खात्मे के लिए काम कर रहे 161 गैरसरकारी संगठनों के गठबंधन ‘बाल विवाह मुक्त भारत अभियान’ का सहयोगी संगठन है। भारत से 2030 तक बाल विवाह के खात्मे के लिए बाल विवाह मुक्त भारत अभियान बाल विवाह की उच्च दर वाले देश के 300 जिलों में जमीनी अभियान चला रहा है।
जीएसएस को जब इस घटना की जानकारी मिली तो उनकी पहली चुनौती थी इन बच्चियों के पुनर्वास की और फिर उन्हें न्याय दिलाने की। जीएसएस के निदेशक शैलेंद्र पंड्या ने बताया, “जब उन्होंने दोनों बहनों से मुलाकात की तो वे गहन शोक और पीड़ा से गुजर रही थीं। ऐसे में हमारी पहली प्राथमिकता बच्चियों का मानसिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करने की थी। उनके पास ऐसा कुछ नहीं था जिसे वे घर कह सकें। इसलिए पहला काम उन्हें सुरक्षित आश्रय उपलब्ध कराने का था और इसका बीड़ा कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय ने उठाया। दोनों बहनें अब छात्रावास में रहते हुए पढ़ाई कर रही हैं। भयानक यंत्रणा से गुजरने के बावजूद दोनों बहनें अपने शोषकों को माफ करने के लिए तैयार नहीं थीं। वे अपना विवाह रद्द कराना चाहती थीं और इसके लिए जीएसएस की मदद से पिछले वर्ष सितंबर में अदालत में मामला दायर किया गया। कानूनी लड़ाई के बाद अब जाकर इन दोनों बहनों को न्याय मिला जब डीएलएसए ने उन्हें सवा लाख-सवा लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया।”
पंड्या ने आगे कहा, “राजस्थान के कुछ हिस्सों में बाल विवाह की दर राष्ट्रीय औसत से काफी ज्यादा है और खास तौर से अक्षय तृतीया के मौके पर यहां बड़ी संख्या में बच्चों के विवाह की प्रथा है। हालांकि इस वर्ष सरकार और नागरिक संगठन पूरी तरह चौकस हैं ताकि अब कोई राधा और मीना जैसी बच्चियों से उनका बचपन छीनने का अपराध नहीं कर सके।”
दोनों बच्चियों को अदालत में न्याय मिलने को बड़ी जीत बताते हुए बाल विवाह मुक्त भारत अभियान के संयोजक रवि कांत ने कहा, “दुख की बात है कि हमारे देश में बाल विवाह की अभी भी एक तरह से सामाजिक स्वीकार्यता है। लेकिन हमारे गठबंधन के अभियान की वजह से लोग जागरूक हो रहे हैं और यह स्वीकार्यता धीरे-धीरे खत्म हो रही है। हमारे सभी 161 सहयोगी संगठन एक अभूतपूर्व, एकता, निश्चय और ऊर्जा के साथ बाल विवाह की सामाजिक बुराई के खिलाफ लड़ रहे हैं। मुआवजे का आदेश इन पीड़ित बच्चियों के लिए बहुत बड़ी जीत है और इसके लिए डीएलएसए प्रशंसा का हकदार है। बाल विवाह की पीड़ित बच्चियां अमूमन वेदना, यंत्रणा और अभावों में जीवन गुजारती हैं। इसलिए उनको राहत और पुनर्वास पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। इस तरह के फैसले सुनिश्चित करते हैं कि बाल विवाह के नर्क में झोंक दी गई बच्चियों से जो कुछ भी छीना गया है, वह उन्हें न्याय, मुआवजे और पुनर्वास के रूप में वापस मिले। लेकिन लड़ाई यहीं खत्म नहीं होती। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इन बच्चियों को सभी सरकारी योजनाओं से जोड़ा जाएं और उन्हें वह हर तरह की सहायता और लाभ मिलें जिसकी वे हकदार हैं।”

Share this post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll to top