नागपुर: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का नाम एक ऐसे क्रांतिकारी और संगठनकर्ता के रूप में चमकता है, जिन्होंने न केवल अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष किया, बल्कि समाज में राष्ट्रीय चेतना जागृत करने का बीड़ा भी उठाया। 1921 के असहयोग आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी के लिए उन्हें एक वर्ष की जेल हुई थी। तत्कालीन मध्यप्रांत (वर्तमान विदर्भ, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़) में अंग्रेजों ने सात लोगों पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया, जिनमें डॉ. हेडगेवार एक थे। यह मुकदमा उनकी निर्भीकता और देशभक्ति का प्रतीक बना।
डॉ. हेडगेवार मराठी दैनिक समाचार पत्र स्वातंत्र्य के संपादक थे। उस दौर में, जब अंग्रेजी शासन पत्रकारिता पर कड़ा दमन करता था, स्वातंत्र्य का नाम ही उनकी विचारधारा को दर्शाता था। उनके लेख और संपादकीय अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाने वाले थे। केसरी जैसे समाचार पत्रों में उनके कार्यों की चर्चा होती थी, जो आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी लेखनी न केवल स्वतंत्रता की मांग करती थी, बल्कि समाज में जागरूकता फैलाने का भी माध्यम थी।
1921 में नागपुर में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस अधिवेशन में डॉ. हेडगेवार ने व्यवस्था की कमान संभाली। इस आयोजन में 30,000 लोग शामिल हुए, और उनके नेतृत्व में 1,200 युवाओं का दल व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने में जुटा था। उनकी संगठन क्षमता और नेतृत्व कौशल इस विशाल आयोजन में स्पष्ट झलकता था।
डॉ. हेडगेवार राष्ट्रीय शिक्षा आंदोलन के हिस्से थे। वे उन राष्ट्रीय विद्यालयों-महाविद्यालयों के विद्यार्थी रहे, जिन्हें अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली के बहिष्कार के लिए भारतीय क्रांतिकारियों ने स्थापित किया था। अनुशीलन समिति के कई सदस्यों की तरह उन्होंने भी आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लिया और भारतमाता की सेवा को जीवन का लक्ष्य बनाया। युवाओं और समाज के बीच उनकी गहरी पैठ थी, जिसने उन्हें एक जननायक बनाया।
डॉ. हेडगेवार ने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना की, जो आज भी उनके विचारों और देशभक्ति की विरासत को आगे बढ़ा रहा है। उनकी जीवनगाथा स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय एकता की प्रेरणा है।