प्रचार के क्षेत्र में इसलिए संघ का देरी से आना हुआ। अपने कार्य का ढिंढोरा संघ नहीं पीटता। कार्य होगा तो बिना कहे भी प्रचार हो जाएगा। संघ अनावश्यक प्रचार की स्पर्धा में शामिल नहीं है। फिर भी प्रचार विभाग आगे बढ़ रहा है और धीरे-धीरे गति प्राप्त कर रहा है।
पंकज
उदयपुर में आयोजित प्रबुद्धजन गोष्ठी में उदबोधन के पश्चात जिज्ञासा सत्र में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कई प्रश्नों के उत्तर दिए। मीडिया में संघ की छवि के बारे में प्रश्न पर उन्होंने कहा कि प्रचार हमारा उद्देश्य नहीं है, प्रसिद्धि उद्देश्य नहीं है, अहंकार रहित, स्वार्थ रहित, संस्कारित स्वयंसेवक और कार्य हमारा प्राथमिक उद्देश्य रहा है। प्रचार के क्षेत्र में इसलिए संघ का देरी से आना हुआ। अपने कार्य का ढिंढोरा संघ नहीं पीटता। कार्य होगा तो बिना कहे भी प्रचार हो जाएगा। संघ अनावश्यक प्रचार की स्पर्धा में शामिल नहीं है। फिर भी प्रचार विभाग आगे बढ़ रहा है और धीरे-धीरे गति प्राप्त कर रहा है।
समाज में कार्यों के कारण ही संघ का अपने आप स्थान बन गया है। उन्होंने ‘अ संघी हू नेवर वेंट टू शाखा’ पुस्तक का उल्लेख करते हुए कहा कि संघ के कार्य को देखकर कई लेखक-विचारक स्वतःस्फूर्त लिख भी रहे हैं। महिला सशक्तिकरण के बारे में संघ के विचार पर उन्होंने समाज निर्माण के कार्य में राष्ट्र सेविका समिति के रचनात्मक कार्यों का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि संघ और सेविका समिति समानांतर कार्य करते हैं। संघ के कुटुम्ब प्रबोधन का कार्य मातृशक्ति के बिना संभव ही नहीं है। महिला सशक्तिकरण और प्रबोधन का कार्य महिला समन्वय के माध्यम से चल रहा है।
जनजाति समाज में संघ की भूमिका के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि संपूर्ण समाज का संगठन करना संघ का उद्देश्य है। वनवासी कल्याण आश्रम, परिषद, एकल विद्यालय तथा स्वयंसेवकों की सकारात्मक पहल से इन वर्गों के कल्याण और संगठन का कार्य चल रहा है। वनवासी समाज पूर्णतः मिशनरी के कब्जे में है, ऐसा नहीं है। फूलबनी, ओडिशा का उदाहरण देकर उन्होंने कहा कि वनवासी समाज स्वार्थ, लालच या मजबूरी में हिन्दू नही है, बल्कि वह मूल रूप से हिन्दू ही है।
संघ के सामाजिक सरोकारों पर प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि संघ तो आम आदमी का ही संगठन है। नारायण गमेती के घर जाने का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि वे भी एक सामान्य कार्यकर्ता ही हैं. सामान्य मनुष्य को देश के लिए तैयार करना ही संघ का उद्देश्य है. संघ को बस्ती, ग्राम, सभी तक पहुंचना है, चाहे समय कितना भी लगे.
केरल और बंगाल को लेकर एक प्रश्न में कहा कि जो समाज झेलता है, वह स्वयंसेवक भी झेलता है. स्वयंसेवक घबराकर भागने वाला नहीं है. स्वयंसेवक समाज के साथ रहकर कार्य करता है. भेदभाव मुक्त समाज और आरक्षण के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि संघ की शाखा में भेदभाव रहित रहने की शिक्षा दी जाती है. हम सिर्फ हिन्दू हैं, यही सिखाया जाता है. इसलिए संघ में ऐसे भेदभाव का वातावरण नहीं दिखता. स्वयंसेवक व्यक्तिगत जीवन में भी इसी आदर्श को उतारने का प्रयास करता है. भेदभाव की बीमारी पुरानी है, सामाजिक कार्यों से संघ इसे दूर करने का प्रयास कर रहा है. विषमता को समर्थन देने वाला कोई विचार संघ स्वीकार नहीं करता.संघ और सत्ता के बारे में प्रश्न पर कहा कि सत्ता में संघ की भागीदारी भ्रामक और मीडिया की उत्पत्ति है. संघ के स्वयंसेवकों का राजनीतिक लोगों से चर्चा करना या मिलना, सत्ता में भागीदारी नहीं है. कम्युनिस्ट सहित अन्य सरकारें भी संघ के स्वयंसेवकों का सहयोग कई कार्यों में लेती रही हैं.
गौ पालन और गौ संरक्षण के बारे में प्रश्न पर उन्होंने गौ संवर्धन गतिविधि का उल्लेख करते हुए भीलवाड़ा की पथमेड़ा गौशाला का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि स्वयंसेवक तथा अन्य लोग इस दिशा में कार्य कर ही रहे हैं.
समाज के सभी वर्गों को जोड़ने के संदर्भ में पूछे गए प्रश्न पर उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य सम्पूर्ण हिन्दू समाज का संगठन करना है, इसलिए संघ कार्य का विस्तार होना चाहिए. भारत विश्व गुरु बने, यह सबका उद्देश्य है, इसलिए संघ समाज के सभी वर्गों को जोड़ने का कार्य कर रहा है. कोई अन्य निहित उद्देश्य नहीं है.उन्होंने कहा कि संघ को दूर से नहीं अंदर से समझना चाहिए. संघ देश, समाज, धर्महित में अच्छे काम कर रहा है, इसलिए इस कार्य से जुड़कर ही संघ को समझा जा सकता है. आचार्य विनोबा भावे कभी भी शाखा नहीं गए. पर, स्वयंसेवक की भांति देश, समाज हित में कार्य किया. उन्होंने कहा कि संघ के काम को देख कर सहयोगी बनें.