धुरंधर की सच्चाई: ध्रुव राठी की आलोचना का तार्किक खंडन

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ध्रुव राठी का हालिया वीडियो ‘धुरंधर की सच्चाई’ सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इसमें उन्होंने आदित्य धर निर्देशित फिल्म धुरंधर को “खतरनाक प्रोपेगेंडा” करार दिया है। उनका दावा है कि फिल्म असली घटनाओं का सहारा लेकर झूठा नैरेटिव गढ़ती है, दर्शकों को गुमराह करती है और अच्छी तरह बनाई गई होने के कारण यह अन्य ‘बकवास’ प्रोपेगेंडा फिल्मों से ज्यादा खतरनाक है। राठी ने निर्देशक आदित्य धर की तुलना नाजी फिल्ममेकर लेनी रीफेंस्टाहल से की और चेतावनी दी कि उनका एक वीडियो 300 करोड़ की इस ‘प्रोपेगेंडा फिल्म’ को बर्बाद कर देगा।

लेकिन क्या ध्रुव राठी के ये तर्क वाकई तार्किक हैं? या यह सिर्फ एक पूर्वाग्रह से ग्रस्त आलोचना है जो फिल्म की अपार सफलता से जलन का नतीजा है? आइए राठी के मुख्य आरोपों को देखें और समझें कि धुरंधर क्यों एक बेहतरीन सिनेमा का उदाहरण है, न कि कोई “झूठा प्रोपेगेंडा”।

पहला आरोप: फिल्म फैक्ट और फिक्शन को मिलाकर दर्शकों को गुमराह करती है

ध्रुव राठी कहते हैं कि फिल्म में रियल टेरर अटैक्स, डेट्स, लोकेशंस और फुटेज का इस्तेमाल किया गया है, जिससे दर्शक सच्चाई और कल्पना में फर्क नहीं कर पाते। यह तर्क हास्यास्पद है। फिल्म की शुरुआत में स्पष्ट डिस्क्लेमर है: “यह एक काल्पनिक कहानी है जो वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है।” यह बॉलीवुड की ज्यादातर हिस्टोरिकल या पॉलिटिकल फिल्मों में आम है। उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक (जो खुद आदित्य धर की फिल्म है), केसरी, सम बहादुर या हॉलीवुड की डंकर्क, ओपेनहाइमर जैसी फिल्में भी रियल इवेंट्स से प्रेरित हैं और ड्रामेटिक लिबर्टी लेती हैं। क्या इन सबको प्रोपेगेंडा कहेंगे? दरअसल, सिनेमा का काम ही दर्शकों को इमर्सिव एक्सपीरियंस देना है। अगर हर फिल्म में हर सीन के बाद “यह फिक्शन है” लिखा जाए, तो फिल्म देखना बोरिंग हो जाएगा। दर्शक इतने मूर्ख नहीं कि वे फिल्म को डॉक्यूमेंट्री समझ लें। धुरंधर की सफलता (500 करोड़ से ज्यादा कमाई) इसी बात का सबूत है कि लोग इसे एंटरटेनमेंट के रूप में एंजॉय कर रहे हैं, न कि कोई राजनीतिक लेक्चर। राठी का यह आरोप खुद उनकी हिपोक्रिसी दिखाता है – वे खुद अपने वीडियोज में ड्रामेटिक एडिटिंग, म्यूजिक और AI विजुअल्स इस्तेमाल करते हैं ताकि दर्शक “इमर्स” हो जाएं।

दूसरा आरोप: फिल्म हिंसा को ग्लोरिफाई करती है और Desensitized करती है

राठी ने ट्रेलर रिलीज के समय भी फिल्म की हिंसा पर आपत्ति जताई थी, इसे ISIS वीडियोज से कंपेयर किया था। लेकिन धुरंधर एक स्पाई थ्रिलर है – जेम्स बॉन्ड, मिशन इंपॉसिबल या टाइगर सीरीज जैसी। इनमें एक्शन और हिंसा तो होगी ही। फिल्म टेररिज्म के खिलाफ भारतीय एजेंट्स की बहादुरी दिखाती है, न कि हिंसा को प्रमोट करती है। बल्कि यह टेररिज्म की भयावहता को हाइलाइट करती है। राठी की यह आलोचना सेलेक्टिव है। क्या उन्होंने कभी पाकिस्तानी सीरीज या हॉलीवुड की वॉर फिल्मों पर ऐसी ही टिप्पणी की? नहीं, क्योंकि उनका एजेंडा सिर्फ भारतीय राष्ट्रवाद को टारगेट करना है। फिल्म में हिंसा दिखाकर यह संदेश देती है कि टेररिज्म का जवाब मजबूती से देना जरूरी है – जो वास्तविकता भी है। भारत ने पुलवामा, उरी जैसे अटैक्स का जवाब सर्जिकल स्ट्राइक्स से दिया। अगर यह ‘Desensitized ‘ करता है, तो राठी के खुद के वीडियोज में दिखाए गए राजनीतिक विवाद या विदेशी प्रोपेगेंडा क्लिप्स क्या करते हैं?

तीसरा आरोप: फिल्म झूठा नैरेटिव गढ़ती है और राजनीतिक प्रोपेगेंडा है

राठी कहते हैं कि आदित्य धर झूठ बेच रहे हैं। लेकिन कौन सा झूठ? फिल्म में दिखाए गए टेरर अटैक्स तो रियल हैं – 26/11, पुलवामा आदि। भारतीय एजेंट्स की भूमिका को ड्रामेटाइज करना फिक्शन है। राठी का असली दर्द यह है कि फिल्म राष्ट्रवादी नैरेटिव दिखाती है, जो उनकी विचारधारा से मेल नहीं खाता। वे अन्य फिल्मों जैसे द केरला स्टोरी या द कश्मीर फाइल्स को “बकवास” कहते हैं क्योंकि वे कमर्शियल रूप से कम सफल रहीं, लेकिन धुरंधर को “खतरनाक” क्योंकि यह हिट है। यह जलन नहीं तो क्या है? आदित्य धर की पिछली फिल्म उरी भी इसी तरह प्रेरित थी और उसने राष्ट्रप्रेम जगाया। धुरंधर भी वही कर रही है – युवाओं में देशभक्ति की भावना। क्या यह प्रोपेगेंडा है? अगर हां, तो हर देशभक्ति फिल्म प्रोपेगेंडा है। राठी की नाजी कंपेयरिजन तो घोर अतिशयोक्ति है – यह उनकी क्रेडिबिलिटी की धज्जियां उड़ाती है। लेनी रीफेंस्टाहल नाजी रेजीम की ऑफिशियल फिल्ममेकर थीं; आदित्य धर एक इंडिपेंडेंट डायरेक्टर हैं जो स्टोरीटेलिंग कर रहे हैं।

धुरंधर एक मास्टरपीस है

धुरंधर न सिर्फ कमर्शियल सुपरहिट है, बल्कि टेक्निकल रूप से शानदार – रणवीर सिंह का परफॉर्मेंस, एक्शन सीक्वेंस, सिनेमेटोग्राफी सब वर्ल्ड क्लास। यह भारतीय सिनेमा की ताकत दिखाती है कि हम ग्लोबल लेवल की थ्रिलर बना सकते हैं। ध्रुव राठी की आलोचना पूर्वाग्रह से भरी है – वे राष्ट्रवादी कंटेंट को सहन नहीं कर पाते। उनकी तुलनाएं अतिरंजित हैं और तर्क कमजोर। अगर वे सच में ‘सच्चाई’ दिखाना चाहते हैं, तो बैलेंस्ड रिव्यू दें, न कि एकतरफा प्रोपेगेंडा। धुरंधर ने साबित कर दिया कि दर्शक सच्ची एंटरटेनमेंट और देशभक्ति चाहते हैं। राठी का वीडियो चाहे जितने व्यूज ले ले, फिल्म की सफलता अटूट है। यह भारतीय सिनेमा का गौरव है, न कि कोई ‘खतरनाक प्रोपेगेंडा’।

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आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु एक पत्रकार, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आम आदमी के सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों तथा भारत के दूरदराज में बसे नागरिकों की समस्याओं पर अंशु ने लम्बे समय तक लेखन व पत्रकारिता की है। अंशु मीडिया स्कैन ट्रस्ट के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और दस वर्षों से मानवीय विकास से जुड़े विषयों की पत्रिका सोपान स्टेप से जुड़े हुए हैं

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