एक अंधेरा लाख सितारे, एक निराशा लाख सहारे

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डॉ शोभा विजेन्द्र

मीरा, कई दिनों से लगातार घर में रहने और आसपास में घटित असामान्य कारणों से दुखी रहने लगी थी। उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। यहाँ तक की खाने और सोने में भी उसे दिक्क़तें आने लगी थी। हमेशा मन बेचैन रहता था । यह दुख कभी-कभी तो इतना बढ़ जाता था कि वह लगातार रोती रहती थी। उसे लग रहा था कि उसको जैसे डिप्रेशन ने घेर लिया है। उसको अपनी समस्या का कोई समाधान नहीं मिल रहा था। मन भटका सा रहता था । मीरा को ऐसा लगता था जैसे उसके जीवन में अंधेरा-ही-अंधेरा है । अकेलापन उसके ऊपर हावी होता जा रहा था । तभी एक दिन उसकी पुरानी सहेली सामाजिक कार्यकर्ता आशा जो सामाजिक संस्था सम्पूर्णा में पेशेवर कार्यकर्ता के रूप में काम करती है उसके घर आ पहुँची। आशा सादगी की प्रतिमूर्ति लग रही थी। मीरा को देखते ही उसको भान हो गया था कि मीरा की तबियत ठीक नहीं है। उन्होंने मीरा का हाल-चाल पूछा। मीरा, आशा जी के वात्सल्य से भरे वचनों को सुनकर अपने को रोक नहीं पाई। वह बोली कि कुछ दिनों से उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता। रात को नींद नहीं आती और दिन में भूख नहीं लगती है। आशा जी ने उसे गले से लगाते हुए बातचीत का सिलसिला शुरू किया और बताया कि डिप्रेशन से पीड़ित लोगों से उनकी लगातार बातचीत होती रहती है। मीरा ने आशा जी ओर देखते हुए फिर प्रश्न किया कि आपको दिन-रात बहनों की समस्या से जूझने में क्या मिलता है ? आशा जी ने बताया कि जब वह किसी को परामर्श देती हैं और उसके समाधान के लिए प्रयासरत होती हैं तो स्वतः ही दो लाभ मिलते हैं। एक ओर हम समस्या को समझने की स्थिति को विकसित करते हैं तो वहीं दूसरे व्यक्ति की समस्या का समाधान भी करते हैं।

आशा जी ने मीरा की ओर देखते हुए कहा कि प्लीज़ आप अकेले मत रहिए। अपने कमरे में हर वक्त बंद रहना भी डिप्रेशन को जन्म देता है। कई बार ऐसा लगता है कि यदि हम अपनी समस्या किसी दूसरे को बताएँगे तो सामने वाला हमारे बारे में क्या सोचेगा ? और यही सोच संवादविहीनता की ओर ले जाती है। हम एकाकी हो जाते हैं जो सर्वथा अनुचित है। यह एक ऐसा चक्रव्यू है जो हमें स्वयं ही तोड़ना है अन्यथा हम अवसाद मे घिरते चले जाते हैं । अपने मन की भावनाओं को दूसरे के साथ अवश्य बाँटे। यदि कोई व्यक्ति आपको जज़ भी करे तो उसका कोई संज्ञान नहीं लेना चाहिए। हम इस पूरी कायनात में सूक्ष्म इकाई हैं। हमारी छोटी-छोटी बातें या कहा जाए तो हमारे इस भौतिक स्वरूप की कोई पहचान नहीं है। यह संसार चराचर है। कुंठित मन अपने आप में ही अनेकों कहानियाँ गढ़ लेता है और अपने को इस धरा पर अकेला महसूस करता है। जिसकी वज़ह से वह जीवन से पूर्णतः निराश हो जाता है। इसके विपरीत जब हम अपने मन के अंदर यह बात बैठा लेंगे कि किसी अपने के साथ कोई बात साझा करने में कोई बुराई नहीं है तो आपको शायद कोई संकोच नहीं होगा। कभी-कभी हमारा अहम भी किसी को अपना समझने में आड़े आ जाता है।

आशा जी ने मीरा को बताया कि अपने को कमज़ोर या शक्तिशाली समझना ही व्यक्ति की भूल है। संतुलित व्यवहार ही व्यक्ति को सफल जीवन जीने की ओर अग्रसर करता है। अतएव हम सबको प्रतिदिन अवश्य ही इस बात को आँकने, जाँचने और परखने की आवश्यकता है कि दिनभर में हमने कितनी बार असंतुलित व्यवहार किया। धीरे-धीरे संतुलित व्यवहार करने का अभ्यास हो जाएगा और यही प्रक्रिया हमें कुंठा और बड़बोलेपन से बचाएगी।
जीवन, एक खुली किताब की तरह सत्य, स्वतंत्र और रंगीला ही होना चाहिए। ऐसे कार्य करें ही क्यों जो हर किसी से छिपाने पड़े। गलतियाँ हो जाती हैं तो उन्हें भी स्वीकार करें। यदि हम ऐसी शख़्सियत बन जाएँ जिसकी पर्सनैलिटी में कुछ छिपाने के लिए है ही नहीं, जैसा है सबके सामने है तो ऐसे व्यक्ति की डिप्रेशन होने की संभावनाएँ कम हैं। ड्यूल पर्सनैलिटी की अवधारणा भी जीवन में कई बार अवसाद का कारण बन जाती है।

आज के युग की सबसे बड़ी बीमारी डिप्रेशन यानि अवसाद है। अवसाद किसी को, कभी भी, कहीं भी हो सकता है। इस शताब्दी की महामारी कोरोना के वायरस ने एक से दूसरे को संक्रमित कर लाखों परिवारों को काल का ग्रास बना दिया, ठीक उसी प्रकार अवसाद भी संक्रमित करता है। जब परिवार का एक सदस्य अवसाद का शिकार हो जाता है तो धीरे-धीरे परिवार के अन्य सदस्य भी जागरूकता के अभाव में इसके शिकार हो जाते हैं। 21 वीं शताब्दी में अवसाद के मरीज बढ़ते जा रहे हैं। संसार भर में डिप्रेशन के शिकार मानव बौख़लाए से सड़कों पर नज़र आ जाते हैं। चाहें न्यूयॉर्क की सड़कें हों या टोरंटो की गलियाँ, यूरोप की पगडंडियाँ हों या किसी भी देश की राजधानी, हर जगह आपको यह दृश्य देखने को मिल जाएँगे। हर व्यक्ति को इस व्याधि के बारे में जानने और समझने की आवश्यकता है।

यहाँ पर यह भी बताना आवश्यक है कि डिप्रेशन का एक कारण अपने विचारों, भावनाओं, संवेदनाओं, शारीरिक और मानसिक वेगों को प्रकट न कर पाना भी होता है। अतः यह आवश्यक है कि आप किसी-न -किसी के साथ अपनी बात को अवश्य साझा करें। वह व्यक्ति आपका मित्र, माता-पिता, गुरु या कोई भी ऐसा व्यक्ति हो सकता है, जिसके साथ आप निर्बाध रूप से अपनी बात रख सकते हैं। किंतु यदि उसके बाद भी स्थिति नहीं सुधरती है तो भी घबराएँ नहीं, मनोचिकित्सक को अवश्य दिखाएँ और घर पर अकेले न रहे। अकेले रहना घातक सिद्ध हो सकता है।

हमें कोरोना ने सिखाया है कि यह जीवन श्रण भंगुर है कोई भी बीमारी इस जीवन लीला को समाप्त कर सकती है । हमें, हमारे महापुरुष भी बहुत कुछ सिखाकर जा चुके हैं और लगातार आज भी हम ज्ञानवान लोगों के द्वारा जीवन जीने की कला को सीख ही रहे हैं । उन्होने हमें सिखाया है कि हम आडंबरों से दूर रहें। अपनी बाहरी शक्ल को सुंदर बनाने का प्रयास करते-करते हम मेकअप की दुनिया में गुम हो रहे हैं। जिससे बाहर निकलना हमारे लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया है। हम पर दिखावा हावी हो गया है, मासूमियत जैसे खो सी गई है। मीरा को आज भी याद है कि बचपन में मेहमानों के आने पर किसी पड़ोसी के घर से कुर्सी माँग लेना, चीनी माँग लेना या अन्य कोई वस्तु माँग लेना कितना सहज था। मासूमियत की वह दुनिया अलग ही थी। आज हम अपने माता-पिता, सगे संबंधियों से भी अपनी परेशानियों को कहते हुए कतराते हैं। झूठ बोलते हैं। पर्दा रखते हैं और अंत में अपने आपको समस्या से घिरा पाते हैं।

आप कल्पना कीजिए लेकिन सत्य को भी पहचानिए। अपनी बात को सशक्त तरीके से परिवार के लोगों से अवश्य कहिए। जिस घर में एक व्यक्ति अवसाद का शिकार होता है, धीरे-धीरे उस परिवार में इस प्रकार के विकार आने की संभावना रहती है। अतः परिवार के सभी सदस्यों में परस्पर प्रेम रहना चाहिए। यदा-कदा लड़ाई भी करें। केवल चुप होकर बैठ जाना अवसाद को जन्म देता है।
आइए! आज हम निश्चय करें कि हमारे आस-पास यदि कोई मानसिक रूप से कमज़ोर व्यक्ति है और वह अवसाद का शिकार हो सकता है तो तुरंत उसको अपना मित्र बना लें। आपकी यह पहल उसको अपनी बात साझा करने की हिम्मत देगी। मित्र बनाएँ। प्रेम करें। यही जीवन का मंत्र है।

जैसे-जैसे पूरा विश्व विकास की चरम सीमा पर पहुँच रहा है, तैसे-तैसे मानव, दुख और अवसाद से भी घिरता जा रहा है। चीन के अंदर आत्महत्या की दर विश्व के विकसित राष्ट्रों में सर्वाधिक है। यहाँ पर यह भी बताना आवश्यक है कि चीन में अधिकतर नास्तिक प्रवृति के लोग हैं और इस संसार से आगे, जहान और भी है जिस कारण वे अपनी किसी भी असफलता का जब कोई स्पष्ट कारण नही ढूंढ पाते तो अवसाद से घिर जाते हैं। सनातन धर्म, पूर्वजन्म के कर्मों और प्रारब्ध को इंगित करता है और हम अपनी किसी सफलता या असफलता को पूर्व-जन्म के कर्मों का परिणाम मान कर सहज ही स्वीकार कर लेते है । हर व्यक्ति को जो सुख-दुख मिलता है, ऐसी मान्यता है कि वह हमारे पूर्वजन्मों से जुड़ा प्रारब्ध है। श्रीमदभगवतगीता का संदेश भी तो हमें जीवन में संतुष्ट रहना और संतोष करना सिखाता है। आइए! हम छोटी-छोटी परेशानियों पर मुस्कुराना सीखें। दुख और अवसाद को अपने पास नहीं फटकने दे।

जब भी हम अवसाद की स्थिति में आने वाले होते हैं, तो इससे पहले कहीं-न-कहीं हमको इसका पूर्वाभास होने लगता है। चिड़चिड़ाहट, कुंठाएँ, बहुत अधिक बोलना या कम बोलना, पलायन करना, सामान्य नींद की प्रक्रिया में विघ्न, अथवा नींद न आना, भूख में कमी, लगातार वज़न कम होना,थकान महसूस होना, अपच, मुँह सूखना, क़ब्ज़, अतिसार, सिर, पेट, सीने, पैरों, जोड़ों में दर्द, भारीपन, पैरों में पसीना, साँस लेने में दिक्कत, चिंता ये भी डिप्रेशन के लक्षण हो सकते हैं। किंतु इसका अर्थ यह भी नहीं है कि ये लक्षण आने पर हम अवश्य ही अवसाद के शिकार होंगे। यदि हम पूर्व में ही सतर्क हो जाएँ और सकारात्मक विचारों के सहारे सामाजिक कार्यों में लग जाएँ तो अवसाद पर शुरू में ही काबू पाया जा सकता है। जब तक सामान्य नींद और भोजन का आनंद आप ले रहें हैं तब तक कोई डरने की बात नहीं है। जैसे ही आपकी नींद और भोजन में विघ्न आने लगे तो समझ लें कि अब आपको उठना पड़ेगा या यूँ कहें कि जैसे ही अवसाद का प्रभाव हमारे दैनिक जीवन पर भी पड़ने लगे तो हमें तुरंत मनोचिकित्सक को दिखाना चाहिए।

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