ऋषभ कुमार
यदि यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा होता कि बताओ घर क्या है? तो जवाब शायद इस तरह आ सकता था कि जब आप दिनभर तमाम नाकामियों से जूझते हुए, चार दीवारी पर रखी एक छत के नीचे पहुंचते हो; जहां आपके अपने, हर शाम आपका इंतजार कर रहे होते हैं तो उस जगह पहुंचकर जो शुकून आपको मिलता है,उसे घर कहा जाता है। अपनों से ही तो घर बनता है, अपने न हों तो यही चारदीवारी जेल जैसी लगने लगे। तो घर सीमेंट, सरिया और ईट से बनी एक इमारत मात्र नहीं है बल्कि एक भावना है, जो हमारे हृदय को ठंडक प्रदान करती है। हां, अब जिसके पास खुद का घर नहीं है तो उसकी सबसे बड़ी चाह भी यही है कि एक अपना घर हो। ऐसे ही घर की चाह लिए एक प्यारी सी फिल्म आई है, 3BHK।
एक छोटा सा परिवार है, माता-पिता और सरकार के नारे ‘बच्चे दो ही अच्छे’ का अनुसरण करते हुए दो बच्चे, एक बेटा और एक बेटी ।चार जन का परिवार और एक छोटी सी चाहत कि कब तक किरायेदार बनकर रहा जाए अपना एक खुद का घर हो, पर हो, 3BHK। क्यों? क्योंकि मम्मी-पापा का एक कमरा, भाई का एक कमरा, बहन का एक कमरा। अब सपना है लेकिन दूसरी जिम्मेदारियां भी हैं, बेटा है, जिसे पढाना लिखाना है; अपने पैरों पर खड़ा भी करना है पर समस्या यह है कि खूब मेहनत करने पर भी भाई साहब जैसे-तैसे घिसट-पिसट कर ही पास हो पाते हैं, अब यह विद्यार्थी की समस्या है या शिक्षक की या शिक्षा व्यवस्था की यह सोचनीय विषय है। अब जो बेटी है जो खूब होशियार है, ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ टाइप। पर जैसा होता है कि बेटे को सुविधाएं मुहैया कराने के चक्कर में बेटी के सपनो की बलि चढ़ती है, यहां भी वही होता है तो बेटा अच्छी जगह पढ़ सके इसलिए वह सरकारी स्कूल में ही पढ़ती है। अब सरकारी स्कूल का मतलब अच्छा स्कूल नहीं है। यह देश की शिक्षा व्यवस्था पर एक करारा तंज है। तमाम नाकामियां भरे हुए इस जीवन में यह परिवार एक दूसरे के साथ बड़ी ही अडिगता के साथ खड़ा रहता है जो भारतीय पारिवारिक मूल्यों की महत्ता को दर्शाता है। जो यह संदेश देता है कि चाहें जीवन में जो भी समस्या आए अगर परिवार साथ है तो सब कुछ सह लेंगे। पिता जब हर बार समस्या आने पर यह बोलते हैं कि अभी सह लो ताकि भविष्य अच्छा हो सके तो लगता है कि यह सभी भारतीय पिताओं का प्रतिनिधित्व कर रहें हैं।
फिल्म में और भी बहुत कुछ है, पिता पुत्र में तकरार है, प्यार और करियर को लेकर मार है, और बेटी का टूटता परिवार है,कुल बात कहें तो इस फिल्म की कहानी बहुत ही अच्छी बन पड़ी है।
फिल्म की कहानी लिखने का काम किया है ‘श्री गणेश’ ने, लिखने के साथ-साथ उन्होंने फिल्म को डायरेक्ट भी किया है, जिसमें उनकी मेहनत को सराहा जा सकता है। फिल्म के मुख्य किरदार में पिता की भूमिका निभाई है ‘आर.सरथ कुमार’ ने, ‘देवायानी’ मां बनी हैं, बेटे के रूप में हमारे सामने आते हैं ‘सिद्धार्थ’, बेटी का किरदार निभाया है ‘मीथा रघुनाथ’, बहु बनी हैं ‘चैत्रा जे आचार्य’ ने, इन सब में मुझे चैत्रा जे आचार्य अपनी भूमिका में हल्की सी कमजोर नज़र आईं। घर की आवाज बने हैं ‘कार्थी’ बाकी मेकअप आर्टिस्ट ने जो एजिंग पर काम किया है, वह काबिले तारीफ है। इस फिल्म की डबिंग भी औसत से ऊपर की है, पर सुधार की गुंजाइश है और जहां पर गानों की डबिंग की बात करें वहां पर तो बहुत काम करने की आवश्यकता है। पर फिल्म हर तरह से बढ़िया बनी है, देखी जानी चाहिए वाली केटेगरी में आती है। अमेज़न प्राइम पर उपलब्ध है, हम तो यही कहेंगे की पहली फुरसत में देख डालिए, बिल्कुल अपनी सी कहानी कहती हुई फिल्म है।
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग शोधार्थी )