संजय स्वामी
भारत की इलेक्ट्रॉनिक् मीडिया का गंभीरता से आंकलन करें तो हमें कुछ न्यूज़ चैनलों के रिपोर्टर पत्रकारिता के मानदंडो से अपरिचित दिखाई देते हैं। ये कच्चे और अगंभीर पत्रकार समाज में खबरों को दुषित कर परोसने का काम कर रहे हैं । बड़े मीडिया हाउस यहां नाम लेना उचित नहीं ऐसा आभास होता है कि वे कम वेतन में स्तर हीन रिपोर्टर रखकर अपने दर्शकों की संख्या घटा रहे हैं। देखने में आ रहा है कि कतिपय समाचार वाचकों तथा पत्रकारों द्वारा जो प्रसारित किया जा रहा है उसमें असंगत तथ्य और अनुचित शब्दों का प्रयोग लगातार हो रहा है। उदाहरणार्थ कुछ चैनल्स के रिपोर्टर लगातार कहते हैं कि योगी फोर्स, योगी की पुलिस, योगी का पीला पंजा, योगी के बुलडोजर आदि आदि। संविधान के अनुसार सरकार पांच वर्ष में परिवर्तित होती रहती है ।
मुख्यमंत्री तो कभी भी परिवर्तित हो सकते हैं। हमारे देश में पुलिस सेवा में चयन निश्चित संवैधानिक प्रक्रिया से होता है। नियमों, योग्यता और परीक्षा के द्वारा होता है न कि किसी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के प्रभाव से। पुलिस विभाग अपने कर्तव्यों का निर्वहन देश प्रदेश की कानून व्यवस्था के लिए करता है, न कि किसी व्यक्ति विशेष के लिए। विभिन्न प्रकार के कार्य उनके विभागीय दायित्व हैं यदि कोई कोताही करें तो उन पर विभागीय कार्यवाही होती है।
भारतीय नागरिक पुलिस या अन्य किसी भी विभाग में सेवा के लिए भर्ती होता है। वह अपनी सेवा निवृत्ति तक संबंधित विभाग में सेवा करता है। इतने लंबे कालखंड में अनेक सरकारें सत्ता में आती जाती रहती हैं। अनेक मंत्री, मुख्यमंत्री आदि पदासीन-पदच्युत होते रहते हैं ।इसलिए पुलिस या प्रशासन का किसी से नाम जोड़ना उचित नहीं है। पत्रकार यदि सम्यक शब्दप्रयोग से न्यून हैं तो यह सही पत्रकारिता नही है। विडंबना यह है कि देखा देखी में अनेक चैनलों में एक सी जुबान प्रयोग होने लगती है। देश के राज्यों में अपनी अपनी प्रदेश पुलिस व्यवस्था है। रिपोर्टर्स को उत्तर प्रदेश पुलिस, मध्य प्रदेश पुलिस, केरल, महाराष्ट्र पुलिस आदि बोलना चाहिए। वहां के प्रशासन का नाम लेना चाहिए। इसी प्रकार देश में अनेक स्वायत संगठन हैं। उनके अपने संचालन के नियम हैं।लखनऊ विकास प्राधिकरण, मेरठ विकास प्राधिकरण, मुंबई महानगरपालिका आदि संस्थाओं का नाम उच्चारित करना चाहिए। परंतु अनेक बार स्थानीय मुख्यमंत्री का ही नाम लेते रहते हैं । यह अनुचित है, अनचाहे ही सही राजनीतिक प्रचार हैं। कर्तव्यनिष्ठ सेवा कर्मियों, अधिकारियों का अपमान है।
मीडिया को कोई रोक-टोक नहीं है। वह किसी भी मुख्यमंत्री, मंत्री को अपने यहां बुलाए, भरपूर सम्मान दे। परंतु आग्रह है कि राजकीय सेवा में रत अधिकारियों, कर्मचारियों के लिए उचित शब्दों का प्रयोग करें। प्रसारण चैनलों को चौकन्ने रहते हुए समाज में द्वेष फैलाने वाले अमर्यादित रिपोर्टर्स और समाचार वाचकों को सीधे रास्ते पर लाना चाहिए। स्मरण रहे मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। विद्यार्थी, युवा पीढ़ी समाचार पत्रों और आधुनिक समय में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से भाषा सिखती है।
_ संजय स्वामी