दिल्ली। आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया समाज को जोड़ने, सूचनाएं साझा करने और विचार व्यक्त करने का एक शक्तिशाली माध्यम बन चुका है। हालांकि, इसकी अनियंत्रित प्रकृति ने फर्जी और पैरोडी अकाउंट्स को जन्म दिया है, जो समाज में भ्रांति, गलत सूचना और वैमनस्य फैलाने का कारण बन रहे हैं। इन अकाउंट्स के माध्यम से अभद्र भाषा, मानहानि और वैचारिक प्रचार को बढ़ावा मिलता है, जिससे सामाजिक और व्यक्तिगत स्तर पर गंभीर नुकसान हो रहा है। इस समस्या से निपटने के लिए ठोस कानूनी कदम उठाना नितांत आवश्यक है।
फर्जी और पैरोडी अकाउंट्स का सबसे बड़ा दुरुपयोग सार्वजनिक हस्तियों, पत्रकारों और राजनेताओं के नाम पर किया जाता है। उदाहरण के लिए, तेजस्वी यादव जैसे राजनेताओं के नाम पर चलने वाले पैरोडी अकाउंट्स उनके मूल अकाउंट से कहीं अधिक अभद्र और आक्रामक भाषा का इस्तेमाल करते हैं। यह न केवल उनकी छवि को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि उनके समर्थकों और विरोधियों के बीच तनाव को भी बढ़ाता है। इसी तरह, पत्रकारों जैसे रवीश कुमार, मोहम्मद जुबैर के नाम पर बने फर्जी अकाउंट्स न केवल उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हैं, बल्कि वैचारिक प्रचार को बढ़ावा देकर सामाजिक ध्रुवीकरण को और गहरा करते हैं।
मुकेश कुमार, मृणाल पांडेय और अशोक कुमार पांडेय जैसों के मामलों में, उनके मूल अकाउंट्स भी किसी खास राजनीतिक दल, जैसे कांग्रेस आईटी सेल, के पक्ष में माहौल बनाने का काम करते हैं, जिससे यह आभास होता है कि मूल व्यक्ति का अकाउंट किसी तीसरे पक्ष द्वारा संचालित हो रहा है।
ऐसे अकाउंट्स का प्रभाव केवल व्यक्तिगत छवि तक सीमित नहीं है। ये सामाजिक तनाव, गलत सूचना और हिंसा को भड़काने का कारण भी बन सकते हैं। उदाहरण के लिए, एबीपी न्यूज के एक एंकर ने स्पष्ट किया कि उनका कोई आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट नहीं है, फिर भी उनके नाम पर एक पैरोडी अकाउंट सक्रिय है, जो उनकी एंकरिंग की तुलना में अधिक आक्रामक और पक्षपातपूर्ण सामग्री साझा करता है। यह न केवल उनकी पेशेवर विश्वसनीयता को ठेस पहुंचाता है, बल्कि दर्शकों को भ्रमित भी करता है।
इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को कठोर और स्पष्ट कानून बनाने की आवश्यकता है। सबसे पहले, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को फर्जी और पैरोडी अकाउंट्स की पहचान और निलंबन के लिए प्रभावी तंत्र विकसित करना होगा। इसके साथ ही, ऐसे अकाउंट्स के संचालकों के खिलाफ सख्त दंडात्मक कार्रवाई, जैसे जुर्माना और कारावास, का प्रावधान होना चाहिए। पैरोडी अकाउंट्स को स्पष्ट रूप से चिह्नित करने और उनकी जिम्मेदारी तय करने के लिए नियम बनाए जाने चाहिए। साथ ही, सोशल मीडिया कंपनियों को उपयोगकर्ताओं की पहचान सत्यापित करने और गलत सूचना फैलाने वालों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करने के लिए बाध्य करना होगा। साथ ही पैरोडी अकाउंट चलाने वालों के नाम सार्वजनिक किए जाने चाहिए।
अंत में, जन जागरूकता भी इस समस्या का एक महत्वपूर्ण समाधान है। लोगों को फर्जी और पैरोडी अकाउंट्स की पहचान करने और उनकी सामग्री पर विश्वास करने से पहले सत्यापन करने की शिक्षा दी जानी चाहिए। सरकार, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और नागरिकों के संयुक्त प्रयास से ही इस डिजिटल चुनौती का सामना किया जा सकता है, ताकि सोशल मीडिया एक सुरक्षित और विश्वसनीय मंच बन सके।