संघ क्यों चुप है!

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आज मैं जब सुबह सुबह घूमने निकला, तो सामने से एक परिचित हिन्दू महानुभाव भी साथ हो लिये। देश- विदेश की चर्चा एवं राजनीतिक चर्चा आजकल प्रिय विषय है ही। तो वह बन्धु चर्चा करते करते कश्मीर से कैराना व केरल से बंगाल तक मानसिक व वाचालिक भ्रमण करने लगे।मैं चुप हो उनकी सुन रहा था। तभी अचानक बोले “वहां इन स्थानों पर हिन्दू परेशान है। आखिर संघ क्यों चुप है – इस मामले में आखिर संघ कर क्या रहा है?”

अब तो मुझे जवाब देना ही पड़ा। मैने कहा “संघ क्या है?”
बोले “हिन्दुओं का संगठन।”

मैं बोला “तो आप हिन्दू हैं?”
वह बोले “कैसा प्रश्न है यह आपका? मैं कट्टर सनातन हिन्दू हूं।”

तब मैने कहा तो क्या आप जुडे हैं संघ से?”
वह बोले.. “नहीं तो”

तब मैने पूछा “आपका बेटा, पोता, नाती या परिवारजन कोई रिश्तेदार जुड़ा है क्या?”
तब बोले “नहीं कोई नहीं। बेटा नौकरी पर है, फुर्सत नहीं मिलती उसे। पोता नाती विदेश में सैटल हो चुके हैं। रिश्तेदार बडे व्यवसायी हैं। उसी में व्यस्त हैं व शेष घर पर ही रहते हैं और बच्चों को तो कोचिंग से फुर्सत नहीं मिलती।”

मैने कहा – इसका मतलब यह हुआ कि संघ आपके व आपके परिवार व रिश्तेदारों को छोडकर शेष अन्य हिन्दुओं का संगठन है?
वह चिढकर बोले “आज क्या हुआ है आपको? कैसी बात कर रहे हो आप? अरे भाई ऐसी स्थिति मेरी अकेले की थोड़े है। देश में 90% लोग ऐसे हैं जिनको अपने काम से फुर्सत ही नहीं मिलती है। तो यह आप केवल मुझ पर ही क्यों इशारा कर रहे हो? काम ही तो पूजा है, काम नहीं करेंगे तो देश कैसे चलेगा?”

मैने फिर कहा “तो मतलब आपके हिसाब से संघ से केवल 10% हिन्दू लोग ही जुड़े हैं।”

वह बोले “जी नहीं साहब, मेरे वार्ड में रहते सारे हिन्दू ही है। कुल 10000 की जनसंख्या है वार्ड में हिन्दुओं की। पर सुबह सुबह देखता हूं बस रोज तो उसमें से भी केवल 10-15 लोग ही नजर आते हैं संघ की शाखा में। बाकी कभी उत्सव त्योहार पर ही नजर आते हैं।”

मैने पूछ लिया कि कभी जाकर मिले उनसे?
बोले “नहीं..”

मैंने पूछा कभी उनकी कोई मदद की?”
बोले “नहीं”

मैं “कभी उनके उत्सवों कार्यक्रमों में भागीदारी की?”
बोले “नहीं”

मैं “तो फिर आप की संघ से यह सारी अपेक्षा क्यों ?

मैं भी तो खीज गया था अन्दर से आखिर बोल ही पड़ा “तो ठेका लिया है संघ ने आप जैसे हिन्दुओं का? क्या वह संघ के सारे लोग बेरोजगार हैं? उनके पास अपना काम नहीं है,या उनका अपना कोई परिवार नहीं हैं क्या? आप तो अपने व्यवसाय व परिवार की चिन्ता करें, बस। और वह अपने व्यवसाय व परिवार की भी चिन्ता करें व साथ में आप जैसे अकर्मण्य, एकांकी, आत्मकेंद्रित हिन्दुओं की भी चिन्ता करें ?

यह केवल उनसे ही क्यों चाहते हैं आप ?

क्योंकि वह भारतमाता की जय बोलते हैं, देश से प्यार करते हैं, वन्देमातरम कहते हैं?

क्या यह करना गुनाह है उनका? इसलिये उन से आप यह जजिया वसूलना चाहते हैं?जो आप सभी समर्थ होकर भी नहीं करना चाहते वह सब कुछ वह करें। वही कश्मीर, कैराना व बंगाल तथा आप जैसों की चिन्ता करें? देश व समाज की हर तरह की आपदा व संकटों में वही अपना श्रम या धन व जीवन तक बलिदान करें? उनको क्यों आपकी तरह मूक या तटस्थ बने रहने का हक नहीं है ? क्यों वही अपना घर परिवार सब छोडकर केवल आप जैसों के लिये ही जियें ?

कभी सोचा है कि जब वह आप से चाहते हैं कि आप उनको बल दो, साथ दो, समर्थन दो, उन्हें ऐसे 10% पर ही अकेला मत छोड़ो।

तब आप उनको निठल्ला, फालतू व पागल समझ कर उनकी उपेक्षा करते हो-और इतना ही नहीं उन्हैं साम्प्रदायिक कह कर गाली देते हो। अपने को सेक्यूलर मानकर अपनी शेखी बघारते हो।केवल अपने घर-परिवार, व्यवसाय को प्राथमिकता देते हो तथा अपने बच्चों का भविष्य बनाने में ही जुटे रहते हो।

अगर वह हिन्दू संगठन वाले हैं, तो आप जैसे भी तो सारे हिन्दू ही हैं। तो जो कर्तव्य उनका बनता है वह आपका क्यों नहीं बनता ? बस जरा यह तो स्पष्ट करें। कि क्या वही हिन्दू हैं आप हिन्दू नहीं है?

स्मरण करो, भगतसिंह को फांसी केवल इसलिये हुई थी एव॔ आजाद को भी इसीलिये अकेले लड़कर मौत को गले लगाना पडा था क्योंकि अगर यह आप जैसे शेष 90% हिन्दू हमें क्या करना कहकर सोये हुये ना होते, यह आप जैसे 90% हिन्दू आत्मकेन्द्रित हो हमें क्या फर्क पड़ता है कहकर ना जी रहे होते। उनके समर्थन में खुलकर आये होते तो उनको फांसी देने या मार सकने जितनी हिम्मत या औकात तब भी अग्रेजों में नहीं थी। अगर तब यह 90 % हिन्दू आपकी तरह तमाशा ना देखते, कभी इक्ठ्ठे होकर केवल एक बार अयोध्या पहुंच कर जय श्रीराम का नारा लगा देते तो मंदिर कब का बन गया होता।

अगर हिंदूओ मे जरा सी भी शर्म होती तो मात्र कुछ करोड़ गद्दार वंदेमातरम,भारत माता की जय का विरोध करने की हिम्मत नही कर पाते।

आज टहलते समय संघ स्थान पर हुयी वार्तालाप के. आधार पर मन के विचार –

कभी मैं खुद भी रोज शाखा में जाता था, आज न तो मेरा बेटा ना मैं दोनों ही नही जाते। न किसी कार्यक्रम में उन्हें सहयोग करते हैं। हाँ, उम्मीद जरूर करते हैं कि देश बदलेगा लेकिन बदलेगा कौन ये बड़ा सवाल है। इसलिए मैंने आज से ये सोच लिया है कि मैं भी अपनी तरफ से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को पूरा सहयोग करूंगा। शाखा नियमित जाऊंगा। साथ ही उनके कार्यक्रमों में सम्मिलित भी होऊँगा। आप भी हो सके तो थोड़ा समय निकाल कर प्रयास जरूर कीजियेगा।

कजाख युवती की लिबरल चाहतों के साथ कमर वहीद नकवी का छल

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रंगनाथ

बुजुर्गों की आलोचना में लिखने से बचता हूँ मगर कमर वहीद नकवी उदारमना हैं तो थोड़ी छूट लेते हुए उनपर लिख रहा हूँ। नकवी जी को याद दिलाना चाहूँगा कि एक छोटी सी पोस्ट में उन्होंने कई छल किये हैं। अफसोस है कि कजाखस्तान की वह लड़की कभी नहीं जान पाएगी कि उसके लिए “लिबरल” होने के जो मायने होंगे, उसके साथ नकवी जी का खुद का डिजिटल न्यूज चैनल कभी नहीं था। मूलतः वह उन लिबरल चाहतों के खिलाफ ही रहा है जिसकी चाहत वह कजाख युवती अजहर करती होगी।

नकवी जी निजी जीवन में चाहे जितने भी उदार हों मगर वे जिस डिजिटल चैनल की बात कर रहे हैं उसकी अजहर जैसी बच्चियों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर कवरेज अगर अजहर देख ले तो वह समझ जाएगी कि नकवी जी ने उसके साथ छल किया है।

कजाख युवती से छल करने के बाद नकवी जी उस प्रसंग का इस्तेमाल हिन्दी समाज को छलने के लिए कर रहे हैं कि उनके जैसे “लिबरल” की डिमांड कजाखस्तान में भी है और मेरा नया चैनल “लिबरल” है। नकवी जी, बुरा न मानिएगा मगर आपका नया चैनल बस एक दल के खिलाफ की जाने वाली सामूहिक दलाली का पुलिंदा है। अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनने से तोता मोर नहीं बन जाता।

भारत के ज्ञात इतिहास के आदिकाल से उदारता यहाँ एक मूल्य की तरह स्थापित है। वह नकवी जी के चैनल के जन्म से पहले भी थी और बाद में भी रहेगी। मगर कजाख युवती अजहर जिन कट्टपंथी ताकतों से पीड़ित हो सकती है, नकवी जी का नया चैनल हमेशा उन कट्टरवादियों के साथ खड़ा रहता है। उस चैनल के पत्रकार आधुनिक शिक्षा से प्राप्त औजारों का इस्तेमाल रिग्रेसिव प्रैक्टिसों को जस्टिफाई करने के लिए करते हैं जिससे अजहर के जीवन का लिबरल स्पेस खत्म हो सकता है।

 

नकवी जी की जगह मैं होता तो कजाख युवती अजहर को बताता कि तुम्हें जिन उदार मूल्यों की परवाह है उनके लिए लिखने-बोलने को भारत में कम्युनल कहा जाता है। जिस रिग्रिसेव प्रैक्टिस के खिलाफ कई ईरानी लड़कियों की हत्या कर दी गयी और सैकड़ों जेल में ठूंस दी गयी, उसी रिग्रेसिव प्रैक्टिस को भारत के फेक लिबरल “च्वाइस” कहते हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाकर इस बारे में सफेद झूठ बोलते हैं। भारत के फेक लिबरल ने यह बात सिरे से गायब कर दी कि “च्वाइस” वयस्क की होती है, छोटी बच्चियों की नहीं। नकवी जी जैसे लोगों ने यह बात सिरे से गायब कर दी कि अमेरिका-ब्रिटेन से शुरू हुआ ‘च्वाइस’ आन्दोलन मूलतः उन रिग्रेसिव ताकतों का मिशन था जो अब पड़ोस में कट्टरता का नंगा नाच कर रही हैं।

दूसरी तस्वीर में आप देख सकते हैं कि कजाखस्तान में कुछ लिबरल लोग अभी बचे हैं जिन्होंने स्कूली बच्चियों पर रिग्रेसिव प्रैक्टिस थोपने पर प्रतिबन्ध लगाया। नकवी जी, आपके नए चैनल जैसे फेक लिबरल गिरोह की कृपा से अब हम जैसे भी इस मुद्दे पर बोलने को समय की बर्बादी समझने लगे हैं। फिर से कहूँगा आप निजी जीवन में चाहे जितने उदार हों, मगर आपका चैनल उस कजाख युवती की चाहतों वाला लिबरल कतई नहीं है। उसके चेहरे पर आया सन्तोष वही सन्तोष था जो कसाई के घर चारा पाने के बाद बकरे के मुख पर आता होगा।

नकवी जी, मैंने आपकी प्रोफाइल पर सर्च किया और वहाँ भी उन मुद्दों पर केवल एक लेख पाया जिसे पढ़कर कजाखस्तान की अजहर को थोड़ी उम्मीद जग सकती है मगर वह लेख भी समुदाय विशेष का सिंहावलोकन है, जिससे आपकी निजी उदारता प्रमाणित होती है मगर आपके उस लेख के पाठक-वर्ग का डेमोग्राफिक विश्लेषण अजहर को बेहद निराश कर सकता है। जिन कट्टरवादी ताकतों से अजहर की लिबरल चाहतों की भ्रूणहत्या हो सकती है उनसे आपका कोई संवाद नहीं है।

नकवी जी, बुरा न मानें गर कहूँ कि आप “लिबरल” नहीं है बल्कि भारतीय उदारता के नाशुक्र लाभार्थी हैं। आप उतने और वहीं तक लिबरल हैं जहाँ आप और आपका परिवार सुखी सम्पन्न जीवन जी सके। उसकी सीमा के आगे जाकर आपने भारत की अजहर बेटियों के लिए लिबरल समाज तैयार करने की कोई पत्रकारिता की है तो कम से कम वह आपके नए चैनल पर नजर नहीं आती।

अमेरिका में लगातार बिगड़ती आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति

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विश्व में कई गतिविधियां एक चक्र के रूप में चलती रहती है। एक कालखंड के पश्चात चक्र कभी नीचे की ओर जाता है एवं एक अन्य कालखंड के पश्चात यह चक्र कभी ऊपर की ओर जाता हुए दिखाई देता है। विदेशी व्यापार के मामले में वर्ष 1750 तक पूरे विश्व में भारत की तूती बोलती रही है, परंतु इसके पश्चात यूरोपीयन देशों ने विस्तारवादी नीतियों के चलते अपने आर्थिक हित साधते हुए विभिन्न देशों पर अपना कब्जा जमा लिया। ब्रिटेन, फ्रांन्स, डच जैसे देशों ने एशियाई देशों एवं कुछ अफ्रीकी भू भाग पर पर अपना कब्जा जमाया तो स्पेन आदि देशों ने अमेरिकी महाद्वीप पर अपना कब्जा जमाया। समय के साथ चक्र कुछ इस प्रकार चला कि वर्ष 1950 आते आते अमेरिका पूरे विश्व में सबसे अमीर देशों की श्रेणी में शामिल हो गया और ब्रिटेन, जिसके बारे में कभी कहा जाता था कि ब्रिटेन की महारानी के राज्यों में सूरज कभी डूबता नहीं है, का आर्थिक दृष्टि से ढलान शुरू हो गया और आज ब्रिटेन के आर्थिक एवं सामाजिक ढांचे की स्थिति हम सभी के सामने है। ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था हाल ही में पूरे विश्व में छठे स्थान पर पहुंच गई है तथा अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी के पश्चात भारत आज विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। जबकि वर्ष 1750 के पश्चात जब ब्रिटेन ने भारत पर अपना कब्जा स्थापित कर लिया था उसके बाद भारत की स्थिति यहां तक बिगड़ी थी कि पूरी विश्व की अर्थव्यवस्था में भारत के विदेश व्यापार की हिस्सेदारी वर्ष 1750 के 32 प्रतिशत से घटकर वर्ष 1947 में 3 प्रतिशत के नीचे आ गई थी। परंतु, एक बार फिर कालचक्र अपना रंग दिखाता हुआ नजर आ रहा है और अमेरिकी अर्थव्यवस्था के साथ ही वहां का सामाजिक ताना बाना भी छिन्न भिन्न होता हुआ दिखाई दे रहा है।

दरअसल, अमेरिका ने पूंजीवादी नीतियों को अपनाकर अपने नागरिकों में केवल आर्थिक उन्नति को ही विकास के एकमात्र मार्ग के रूप में चुना था, इससे वहां के नागरिकों में किसी भी प्रकार से धन अर्जन करने की प्रवृत्ति विकसित हुई एवं सामाजिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक ताना बाना छिन्न भिन्न हो गया। परिवार व्यवस्था समाप्त हो गई जिसका परिणाम आज हमारे सामने हैं कि आज अमेरिका में नागरिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजना, मेडीकेयर योजना, मेडीकैड योजना, प्रौढ़ नागरिकों को सुविधाएं एवं केंद्र (फेडरल) सरकार के कर्मचारियों को अदा की जा रही पेंशन, आदि योजनाएं सरकार द्वारा नागरिकों के हितार्थ अमेरिका में चलानी पड़ रही हैं। इन योजनाओं पर खर्च किए जा रहे 2 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की भारी भरकम राशि का लाभ करोड़ों अमेरिकी नागरिक प्रतिवर्ष उठा रहे हैं। यह राशि अमेरिकी सकल घरेलू उत्पाद का 14 प्रतिशत है। सुरक्षा की मद पर भी अमेरिका द्वारा 70,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का खर्च प्रतिवर्ष किया जाता है। बेरोजगारी बीमा लाभ योजना पर भी भारी भरकम राशि अमेरिकी सरकार द्वारा प्रतिवर्ष खर्च की जाती है। अमेरिका में सेवा निवृत्त हो रहे कर्मचारियों की संख्या लगातार बढ़ रही है जिसके कारण इस मद पर व्यय की जाने वाली राशि में भी बेतहाशा वृद्धि हो रही है, साथ ही लगातार बढ़ रहा सुरक्षा खर्च, स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय की लगातार बढ़ रही राशि के बीच वर्तमान में कर की दरों में वृद्धि नहीं करने के कारण बजटीय घाटे पर दबाव बढ़ता जा रहा है। इकोनोमिक रिपोर्ट आफ द प्रेजीडेंट के अनुसार अमेरिका में वर्ष 2000 में 23,600 करोड़ अमेरिकी डॉलर का बजट आधिक्य था जो वर्ष 2001 में घटकर 12,600 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया। परंतु, वर्ष 2002 में एक बार जो 15,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर का बजट घाटा प्रारम्भ हुआ तो इसके बाद से वह बढ़ता ही गया है। वर्ष 2009 में तो बजट घाटा बढ़कर 141,300 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया, वर्ष 2010 में 129,400 करोड़ अमेरिकी डॉलर, वर्ष 2011 में 130,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर, वर्ष 2012 में 108,700 करोड़ अमेरिकी डॉलर एवं वर्ष 2020 में 313,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर, वर्ष 2021 में 277,000 करोड़ अमेरिको डॉलर एवं वर्ष 2022 में 188,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है।

अमेरिका में प्रति परिवार वास्तविक औसत आय वर्ष 1973 में (वर्ष 2015 में डॉलर की कीमत पर) 50,000 अमेरिकी डॉलर थी। अमेरिका के लगभग आधे परिवारों की वास्तविक औसत आय 50,000 अमेरिकी डॉलर से अधिक थी एवं शेष आधे परिवारों की 50,000 अमेरिकी डॉलर से कम थी, जिससे आय की असमानता आज की तुलना में कम दिखाई देती थी। वर्ष 1973 से वर्ष 2015 तक अमेरिका में उत्पादकता में 115 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है जबकि परिवारों की औसत आय (मुद्रा स्फीति के समायोजन के बाद) केवल 11 प्रतिशत ही बढ़ी है। यह भी, इस बीच, अमेरिकी महिलाओं को भारी मात्रा में प्रदान किए गए रोजगार के अवसरों के चलते सम्भव हो पाया है। इस प्रकार, मुद्रा स्फीति के समायोजन के पश्चात, अमेरिका में वर्ष 1973 के पश्चात औसत आय में वृद्धि नगण्य ही रही है। वर्ष 1973 से वर्ष 2007 के बीच अमेरिकी मध्यवर्गीय परिवारों ने उपभोग पर औसत खर्च को दुगने से भी अधिक कर दिया है। जिसके कारण इन परिवारों की बचत दर 10 प्रतिशत से घट कर 2 प्रतिशत हो गई है। बल्कि कई परिवारों को तो अपने मकानों पर ऋण लेकर एवं क्रेडिट कार्ड के माध्यम से ऋण लेकर भी काम चलाना पड़ रहा हैं।

जोसेफ शूम्पटर के अनुसार अमेरिका में कार ने घोड़ा गाड़ी को खत्म कर दिया एवं कम्प्यूटर ने टाइपराइटर को खत्म कर दिया। इसे “रचनात्मक विनाश” (क्रीएटिव डेस्ट्रक्शन) का नाम दिया गया, क्योंकि इससे उत्पादकता का स्तर बढ़ा था, परंतु रोजगार के लाखों अवसर समाप्त हो गए थे। अमेरिका में आज 5 में से 4 रोजगार के अवसर, सेवा क्षेत्र में उत्पन्न होते हैं, जहां तुलनात्मक रूप से आय कम है। कृषि एवं उद्योग (विनिर्माण सहित) क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बहुत कम मात्रा में उपलब्ध हो पा रहे हैं।

60 वर्ष पूर्व तक अमेरिका विदेशी व्यापार के मामले में आत्मनिर्भर था। अमेरिका में विभिन्न उत्पादों का जितना उपभोग होता था उन लगभग समस्त उत्पादों का उत्पादन भी अमेरिका में ही होता था। बल्कि, विदेशी व्यापार के मामले में तो उस समय अमेरिका के पास विदेश व्यापार आधिक्य शेष रहता था। आज अमेरिका में विभिन्न उत्पादों का जितना उत्पादन होता है उससे कहीं अधिक उपभोग होता है। अमेरिकी नागरिक आज अपनी आय से अधिक व्यय करता हुआ दिखाई देता है। अमेरिका में कई नए शहरों की बसावट के पहिले, समस्त बड़े नगरों में 75 प्रतिशत श्रमिक रेल्वे एवं बसों से यात्रा करते थे। परंतु आज केवल 5 प्रतिशत नागरिक ही पब्लिक वाहनों का उपयोग, एक स्थान से दूसरे स्थान पर आने जाने के लिए, करते हैं। समस्त नागरिकों के पास अपनी अपनी कार है एवं केवल स्वयं ही उस कार में वे यात्रा करते हुए पाए जाते हैं। इससे पेट्रोल, डीजल एवं गैस की खपत में बेतहाशा बृद्धि दर्ज हुई है। द्वितीय विश्व युद्ध तक अमेरिका कच्चे तेल का एक निर्यातक देश हुआ करता था परंतु आज अमेरिका अपनी कच्चे तेल की कुल आवश्यकता का एक तिहाई भाग आयात करता है।

अमेरिका में वर्ष 2000 में विदेशी व्यापार घाटा 38,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का था जो 2021 में बढ़कर 86,100 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। 1970 के दशक तक, लगभग प्रत्येक वर्ष, अमेरिका के पास विदेशी व्यापार आधिक्य हुआ करता था। परंतु, इसके पश्चात अमेरिका की स्थिति विदेशी व्यापार के मामले में लगातार बिगड़ती चली गई है।
अमेरिका में उच्च आय वाले क्षेत्रों में रोजगार के अवसर लगातार कम हो रहे हैं। अमेरिका में प्रति घंटा औसत मजदूरी की दर वर्ष 1973 से (मुद्रा स्फीति की दर के समायोजन के पश्चात) लगभग नहीं के बराबर बढ़ी है। अमेरिका में आय की असमानता लगातार बढ़ती जा रही है। फेडरल बजट घाटा अब अरक्षणीय (अनसस्टेनेबल) स्तर पर पहुंच गया है। विदेशी व्यापार घाटा के लगातार बढ़ते जाने से आज अमेरिका 100 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि का ऋण प्रतिदिन ले रहा है। देश में लगातार बढ़ रही गरीबी अब एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी की ओर स्थानांतरित हो रही है। कुल मिलाकर उक्त वर्णित अमेरिकी अर्थव्यवस्था की वर्तमान हालत को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि पश्चिमी आर्थिक दर्शन पर टिका पूंजीवादी मॉडल पूर्णतः असफल हो रहा है। इसी कारण से अमेरिकी अर्थशास्त्रियों द्वारा भी अब यह कहा जाने लगा है कि पूंजीवादी मॉडल समाप्ति की ओर अग्रसर हो रहा है अतः साम्यवाद एवं पूंजीवाद के बाद एक तीसरे आर्थिक रास्ते की अब सख्त आवश्यकता है, जो संभवत: केवल भारत ही उपलब्ध कर सकता है।

आगरा नगर निगम को प्रदूषण नियंत्रण उपायों के लिए पर्यटक प्रवेश शुल्क लागू करना चाहिए

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विरासत संरक्षणवादियों और हरित कार्यकर्ताओं ने आगरा नगर निगम से विभिन्न प्रदूषण नियंत्रण उपायों के लिए पर्यटक कर लागू करने और प्रेम और सौंदर्य के शहर आगरा को हरा-भरा बनाने का आग्रह किया है।

नगर निगम प्रमुख को दिए गए ज्ञापन में उन्होंने बताया है कि “इस कदम का उद्देश्य शहर में सकारात्मक बदलाव और विकास को बढ़ावा देने के लिए पर्यटन की आर्थिक क्षमता का दोहन करना है।”

आगरा नगर निगम को प्रस्तुत प्रस्ताव में नागरिक सुविधाओं और प्रदूषण नियंत्रण उपायों को बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता को संबोधित करने का प्रयास किया गया है।

1994 में एमसी मेहता जनहित याचिका में सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद आगरा की संपन्न औद्योगिक अर्थव्यवस्था को स्थायी झटका लगा, जब सभी प्रदूषणकारी उद्योगों को बंद कर दिया गया और कई प्रतिबंध लगा दिए गए।

वायु प्रदूषण और नदी प्रदूषण उच्च बना हुआ है क्योंकि संसाधनों की कमी ने कई प्रमुख योजनाओं को रोक दिया है। मसलन, आगरा को लगभग बीस हजार सफाई कर्मी, और आधुनिकतम सफाई मशीनों की आवश्यकता है, अनेक ट्रीटमेंट प्लांट लगाने हैं, नए नाले बनने हैं, तमाम नई कॉलोनियों में अभी तक सीवर लाइन नहीं डाली गई है, और सेप्टिक टैंकों से काम चलाना पड़ रहा है। आगरा विकास प्राधिकरण नियोजित शहरी विकास चालीस वर्षों में नहीं कर पाया है। शहर के तालाबों तक को बचा नहीं पाया है। चार पांच अधिकारी बगैर नगर निगम के सौ पार्षदों से सलाह मशवरा किए, टोल से की उगाही को पता नहीं कैसे खर्च करते हैं। कायदे से विकास प्राधिकरण का लोकतंत्रीकरण होना चाहिए और इस संस्था को नगर निगम के प्रति जवाबदेह होना चाहिए।

ध्यान दें, ताजमहल जैसे सांस्कृतिक विरासत स्थलों के लिए प्रसिद्ध यह शहर हर साल लाखों पर्यटकों को आकर्षित करता है। हालांकि, स्थानीय समुदाय इस संपन्न पर्यटन उद्योग की आर्थिक क्षमता से पूरी तरह से लाभान्वित नहीं हो पाया है। वर्तमान परिदृश्य, जहां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और आगरा विकास प्राधिकरण स्थानीय सरकार के साथ इन निधियों को साझा किए बिना टोल शुल्क एकत्र करते हैं, नगर निगम की अपने निवासियों के लिए आवश्यक सेवाएं और बुनियादी ढांचा प्रदान करने की क्षमता को कमजोर करता है।

पर्यटक शहर में प्रवेश शुल्क की शुरूआत वैश्विक रुझानों के अनुरूप है, क्योंकि कई यूरोपीय देश अति पर्यटन द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिए इसी तरह के पर्यटक करों को लागू करने पर विचार कर रहे हैं। इस प्रवेश शुल्क के माध्यम से एकत्र किए गए धन को आगरा में समग्र आगंतुक अनुभव को बढ़ाने के उद्देश्य से विभिन्न परियोजनाओं की ओर निर्देशित किया जाना चाहिए, साथ ही साथ स्थानीय आबादी के लिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना चाहिए।

प्रस्तावित प्रवेश शुल्क अतिरिक्त राजस्व के एक स्थायी स्रोत के रूप में काम करेगा जो महत्वपूर्ण संसाधन बाधाओं से निपटने में नगर निगम का समर्थन करता है। बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश करके, आगरा समग्र पर्यटक अनुभव को बढ़ा सकता है और अपने निवासियों के लिए एक अधिक रहने योग्य और टिकाऊ शहर बना सकता है।

इस प्रस्तावित पर्यटक शहर में प्रवेश शुल्क की सफलता एकत्रित धन के पारदर्शी और जवाबदेह प्रबंधन पर निर्भर करती है। नगर निगम को इन संसाधनों के आवंटन को उन पहलों की ओर प्राथमिकता देनी चाहिए, जिनका आगरा में जीवन की गुणवत्ता में सुधार, आर्थिक अवसरों को बढ़ावा देने और भविष्य की पीढ़ियों के लिए शहर की सांस्कृतिक विरासत स्थलों को संरक्षित करने पर ठोस प्रभाव पड़ता है।

इस पर्यटक शहर में प्रवेश शुल्क की शुरुआत करके, आगरा नगर निगम एक अधिक जीवंत, समावेशी और लचीले शहर का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, जो निवासियों और आगंतुकों दोनों को समान रूप से लाभान्वित करता है। यह आगरा को विश्व स्तरीय नागरिक सुविधाओं के साथ एक आदर्श पर्यटन स्थल में बदलने की दिशा में एक रणनीतिक कदम है और इसके ऐतिहासिक स्थलों को देखने आने वाले सभी लोगों के लिए एक यादगार अनुभव है।

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