कहां गये मानवाधिकारी और मोहब्बत की दुकान के ठेकेदार

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भारत का एक और पड़ोसी बांग्लादेश गहरी राजनीतिक अस्थिरता के युग में प्रवेश कर गया है। आरक्षण विरोध के नाम आरम्भ हुआ छात्र आंदोलन, कट्टरपंथी इस्लामिक हिंसा में बदल गया, बहादुर व शक्तिशाली नेता मानी जाने वाली प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा और अभी वे भारत में हैं । बाद में हुए परिवर्तन, मोहम्मद युनुस का आना और प्रधानमंत्री नियुक्त होना, खालिदा जिया का बाहर आना मोटे तौर पर स्पष्ट करता है कि बांग्लादेश सरकार अमेरिका व पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई के षड्यंत्र का शिकार हुई है।

बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद वहां रहने वाले 1.35 करोड़ हिंदु समाज के साथ जो बर्बर हिंसा की जा रही है वह पूरी मानवता को शर्मसार करने वाली है। शेख हसीना के तख्तापलट के बाद से राजधानी ढाका सहित पूरे बांग्लादेश में हिन्दुओं पर लगातार हमले हो रहे हैं । उनके घरों, प्रतिष्ठानों, दुकानों, मंदिरों को आग लगाई जा रही है उन्हें लूटा जा रहा है। बांग्लादेश में हो रही हिन्दुओं के विरुद्ध हिंसा में इस्कॉन के प्रसिद्ध मंदिर के साथ साथ कम से कम 300 मंदिरों को क्षतिग्रस्त किया जा चुका है, लूटा जा चुका है और आग के हवाले किया जा चुका है। हिंदू अल्पसंख्यकों के बाद सिख, जैन, बौद्ध व अल्पसंख्यक ईसाई समाज के साथ भी अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है। बांग्लादेश के उपद्रवियों का मानना है कि है वहां के अल्पसंख्यक शेख हसीना के समर्थक रहे हैं और उन्हीं के वोटों से वह बार बार प्रधानमंत्री बनती रही हैं । छात्र आंदोलन को हाईजैक करने वाले इस्लामिक कट्टरपंथी अब हिंदू समाज से बदला ले रहे हैं।

बांग्लादेश में छात्र आंदोलनकारी यदि केवल आरक्षण विरोधी आंदोलन कर रहे थे तो वह आंदोलन अब तक समाप्त हो जाना चाहिए था किंतु अब इस हिंसा ने कुछ और ही परिदृष्य बना दिया है। बांग्लादेश से आज हिंदू पलायन करना चाहते हैं। बांग्लादेश में सरकार विरोधी हिंसा अब हिंदू विरोधी हिंसा में परिवर्तित हो चुकी है और लगातार जारी है।बांग्लादेश की हिंसा में साधारण हिंदू जनता से लेकर बांग्लादेश के विकास में अहम भूमिका निभाने करने वाले वहां के हिन्दू फिल्म अभिनेता, गायक, खिलाड़ियों के घरों व संपत्ति को भी नहीं छोडा गया है। बांग्लादेश के लोकप्रिय गायक राहुल आनंद के घर जमकर लूटपाट की गई फिर आग लगा दी गई । हिंदू नेताओं के शव बरामद हो रहे हैं तथा वहां पर रहने साधु -संत भी हिंसा का शिकार हो गये हैं। बांग्लादेश में जारी हिंदू विरोधी हिंसा के भयानक वीडियो सोशल मीडिया में लगातार आ रहे हैं। कट्टरपंथियों के निशाने से शमशान तक नहीं बचे हैं। बांग्लादेश में शायद ही कोई जिला बचा हो जो इनकी हिंसा व आतंक का निशाना न बना हो।

बांग्लादेश में हिंदुओ के साथ ऐसी हिंसा शेख हसीना सरकार के कार्यकाल में भी किसी न किसी बहाने होती रही है। आंकड़ों के अनुसार बांग्लादेश में 2013 से 2022 तक हिंदुओं पर 3600 हमले हुए थे, कभी ईशनिंदा के नाम पर कभी किसी बहाने। बांग्लादेश में विभाजन के समय हिंदू 32 प्रतिशत थे जो अब 8 प्रतिशत से भी कम बचे हैं और वह भी लगातार जेहादी उत्पीड़न के शिकार हो रहे हैं । अब ताजा हिंसा से बांग्लादेश से हिंदुओं का पलायन और तीव्रता के साथ होने की आशंका बलवती हो गयी है।यही कारण है कि देश की सभी सुरक्षा एजेंसियां सीमा पर हाई एलर्ट मोड में हैं।

भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित सभी हिंदू संगठनों ने बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ घट रही पीड़ादायक हिंसा की निंदा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से वहां पर तत्काल हस्तक्षेप करने की मांग की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश के नये अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद युनूस को बधाई देते हुए हिंदुओं की सुरक्षा करने की बात भी कही है। विदेश मंत्री एस जयशंकर भी बांग्लादेश के हालात पर लगातार नजर रख रहे हैं।

भारत में बांग्लादेश की हिंसा पर दुख व चिंता है लेकिन दुर्भाग्य यह है भारत के विरोधी दल और उनके प्रवक्ता इसमें भी अपने वोट बैंक को खुश करने का प्रयास करते दिखाई पड़ रहे हैं। बांग्लादेश प्रकरण पर कांग्रेस अथवा इंडी गठबंधन दल के किसी भी नेता ने हिन्दुओं पर हो रही हिंसा की निंदा तक नहीं की है। कांग्रेस के सत्तालोलुप नेता तो यहाँ तक सपने देखने लगे कि “भारत में भी बबांग्लादेश जैसे हालात हो सकते हैं” जैसे बयान दे रहे हैं। इनमें कांग्रेस के नेता बैसाखी चोर नेता सलमान खुर्शीद से लेकर मणिशंकर अय्यर तक शामिल हैं। स्मरणीय है कि लोकसभा चुनावों के दौरान सलमान खुर्शीद की रिश्तेदार ने चुनाव पचार के दौरान वोट जिहाद करने की अपील की थी। मणिशंकर अय्यर जो भारत में बांग्लादेश जैसे हालात पैदा होने की बात कह रहे हैं वो पाकिस्तान जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा को हराने के लिए मदद मांग रहे थे ।

बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हो रही हिंसा के मध्य ही पाकिस्तान ने भारत के पांच लोकसभा सांसदों के लिए आम भेजे हैं जिनमे प्रमुख है कांग्रेस नेता व सांसद राहुल गांधी जिन्होंने अभी हाल ही में लोकसभा में हिंदुओं को हिंसक कहा था और बांग्लादेश की हिंसा की निंदा तक नहीं कर पा रहे है। राहुल गाँधी पाकिस्तानी आम खाकर बांग्लादेश में हुए तख्तापलट और वहां पर हिंदुओं के साथ हो रही हिंसा का जश्न मना रहे हैं।

जो लोग लोकसभा में तीसरी हार और नरेन्द्र मोदी की सीटें कम हो जाने के बाद सपना देख रहे थे कि लोकसभा अध्यक्ष चुनाव के समय मोदी सरकार गिर जाएगी नहीं गिरी, फिर सोचा कि बजट के समय गिर जाएगी तब फिर नहीं गिरी और अंत में जब वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया गया तब इन लोगों को लगा कि अब तो मोदी सरकार चली ही जाएगी तब भी मोदी सरकार नहीं गिरी। लालू प्रसाद यादव ने भविष्यवाणी कर दी थी कि अल्पमत में मोदी सरकार अगस्त में तो गिर ही जाएगी पर अब तो वह अगस्त का महीना भी पार होता दिखाई पड़ रहा है।

भारी निराशा में ये लोग सत्ता के लालच में भारत को बांग्लादेश जैसे हिंसक हालात में धकेलने के सुनियोजित षड्यंत्र के तहत ऐसे बयान दे रहे हैं । यह समय जन सामान्य के लिए भी बहुत ही सतर्कता व सावधानी बरतने वाला है क्योंकि सलमान खुर्शीद और मणि शंकर अय्यर अकेले नहीं हैं फारूख अब्दुल्ला से लेकर महबूबा मुफ़्ती और उद्धव ठाकरे सरीखे नेता भी इनका समर्थन कर रहे हैं। उद्धव ठाकरे एक समय हिंदूवादी नेता माने जाते थे किंतु बांग्लादेश में हिंदुओ के साथ जो अमानवीय अत्याचार हो रहे हैं उसकी निंदा तक नहीं कर रहे हैं अपितु इंडी गठबंधन के साथ जश्न ही मना रहे हैं।

भारत में भी आज के विषम राजनीतिक वातावरण में हिंदुओं की सुरक्षा व अस्मिता ही सबसे सस्ती हो गई है क्योंकि वह जातियों में बंटा होने के कारण बड़ा वोट बैक नहीं बन सकता है। यह भी विचारणीय प्रश्न है कि क्या बांग्लादेश की घटनाओं से भारत के हिन्दू कुछ शिक्षा लेंगे ? बंगला देश में जो मारे जा रहे हैं वो केवल हिन्दू हैं कोई नहीं देख रहा कि वो दलित है, पिछड़ा है या सवर्ण है केवल यह देखा जा रहा है कि हिंदू है।

आक्रमणकारी शत्रुओं द्वारा अब तक सैकड़ों बार हिंदुओं का नरसंहार और बलात धर्म परिवर्तन कराया गया जो अनवरत आज भी चल रहा है। राहुल गांधी सरीखे लोग हिंदुओं को हिंसक बताते हैं और उनके उत्पीड़न का आम खाकर जश्न मनाते हैं। बांग्लादेश का यह सत्ता परिवर्तन आने वाले समय में भारत के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बनने जा रहा है क्योंकि अब वहां जो सरकार बनी है या तथाकथित चुनावों के बाद बनेगी उसमें जमात -ए इस्लाम जैसे कट्टर आतंकवादी संगठन प्रभावी हो सकते हैं।

बांग्लादेश के घटनाक्रम से सचेत रहने की जरूरत

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-डाॅ. ओ.पी. त्रिपाठी

बांग्लादेश में शेख हसीना का राज खत्म हो गया। आरक्षण विरोधी प्रदर्शन से शुरू हुआ तनाव बहुत ज्यादा बढ़ गया है। उन्होंने इसी साल चुनाव जीतकर सरकार बनाई थी। 2009 से उनकी सरकार का यह लगातार चैथा कार्यकाल था। बदले हालात में बांग्लादेश के साफ संकेत हैं कि अब वहां कट्टरपंथियों और भारत-विरोधी ताकतों का वर्चस्व होगा। आतंकवाद का खतरा बढ़ेगा। बांग्लादेश में भी तालिबान सक्रिय होंगे। वहां के प्रधानमंत्री आवास को आम जनता के लिए इस कदर खोल रखा गया है मानो कोई मेला लगा हो! कुछ युवा चेहरों की अश्लील, असभ्य, विद्रूप मानसिकता सार्वजनिक हुई है, जब उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की ब्रा और अंतर्वस्त्र सरेआम लहराए हैं। ऐसे युवा कुछ भी हो सकते हैं, लेकिन आंदोलनकारी छात्र नहीं हो सकते। वे बेशर्म जमात भी हो सकते हैं, लेकिन अपने ही मुल्क का अपमान कर रहे हैं।

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और जमात-ए-इस्लामी दोनों ही कट्टरवादी दल हैं और पाक परस्त भी हैं। अंतरिम सरकार बनने से पहले ही दोनों दलों के करीब 9000 कार्यकर्ताओं को जेलों से रिहा कर दिया गया है। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया और उनके पुत्र तारिक रहमान की सरपरस्ती में इन दलों ने आम जनसभा को संबोधित भी किया है। तारिक हत्या के तीन मामलों में उम्रकैद के सजायाफ्ता हैं, लेकिन वह लंदन में स्वनिर्वासन में थे। अभी ढाका लौट कर आए हैं, तो अदालतें फिलहाल खामोश और निष्क्रिय हैं। प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार में मंत्री रहे 10 और अन्य बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है।

दरअसल बीएनपी और जमात के साथ पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने ‘सौदेबाजी’ की है कि शेख मुजीब की सियासी विरासत की प्रतीक ‘अवामी लीग’ पार्टी का नामोनिशां ही मिटा दिया जाए, ताकि 1971 की बगावत की मुकम्मल सजा दी जा सके। हसीना के बांग्लादेश छोड़ कर चले जाने के साथ ही शेख मुजीब की सियासी विरासत तो समाप्त हो गई। पाकिस्तानी फौज गदगद है और लड्डू खा रही है।

ऐसी सूचनाएं भी हैं कि आईएसआई लंदन में तारिक रहमान और जमात के नेतृत्व के साथ 2018 से ही ‘तख्तापलट’ की साजिश रच रही थी, लेकिन अभी तक नाकाम रही थी। मौजूदा आंदोलन का आवरण छात्रों का था, लेकिन उनकी आड़ में जमात और बीएनपी के कार्यकर्ताओं ने ही आंदोलन को ‘तख्तापलट’ का रूप दिया था।

जमात का छात्र संगठन ही आंदोलन और बगावत के पीछे सक्रिय था। बेशक शेख हसीना को मुल्क छोड़े तीन दिन गुजर चुके हैं, लेकिन बांग्लादेश के हालात अब भी सामान्य नहीं हुए हैं। करीब 125 लोग बीते एक दिन में मारे गए हैं। कुल मौतों की संख्या 450 से अधिक हो गई है। चूंकि प्रधानमंत्री के तौर पर हसीना भारत-समर्थक थीं। दोनों देशों ने कई साझा परियोजनाएं शुरू कीं और पुराने विवादों को भी खत्म किया। अब अंतरिम सरकार के दौर में कट्टरपंथी और भारत-विरोधी ताकतें ऐलानिया कह रही हैं कि उन परियोजनाओं की जांच और समीक्षा की जाएगी।

हालांकि, लगातार चौथी बार सरकार बनाने वाली शेख हसीना के खिलाफ उपजे आक्रोश के मूल में तात्कालिक कारण अतार्किक आरक्षण ही रहा, लेकिन विपक्षी राजनीतिक दल व उनके आनुषंगिक संगठन सरकार को उखाड़ने के लिये बाकायदा मुहिम चलाये हुए थे। दरअसल, वर्ष 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान के दमनकारी शासन से आजादी दिलाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की तीसरी पीढ़ी के रिश्तेदारों के लिये उच्च सरकारी पदों वाली नौकरियों में तीस प्रतिशत आरक्षण का विरोध छात्रों ने किया। उनका तर्क था कि उनकी कई पीढ़ियां आरक्षण का लाभ उठा चुकी हैं, फलतरू बेरोजगारों को नौकरियां नहीं मिल रही हैं। लेकिन इस आंदोलन को हसीना सरकार ढंग से संभाल नहीं पायी। आंदोलनकारियों से निबटने के लिये की गई सख्ती से आंदोलन लगातार उग्र होता गया। जिसका विपक्षी राजनीतिक दलों ने भरपूर लाभ उठाया। हालांकि,सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को घटाकर पांच प्रतिशत कर दिया था, लेकिन सरकार इस संदेश को जनता में सही ढंग से नहीं पहुंचा सकी। फिर छात्र नेताओं की गिरफ्तारी ने आंदोलन को उग्र बना दिया। बड़ी संख्या में आंदोलनकारी सड़कों पर उतरे। उन्होंने हसीना सरकार के खिलाफ मजबूत मोर्चा खोल दिया।
जनाक्रोश के चरम का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आक्रामक भीड़ ने मुक्ति आंदोलन का नेतृत्व करने वाले ‘बंगबंधु’ शेख मुजीबुर रहमान की मूर्ति तक को तोड़ दिया। निस्संदेह, सत्ता से चिपके रहने के लिये किए जाने वाले निरंकुश शासन की परिणति जनाक्रोश के चरम के रूप में सामने आती है। यह घटनाक्रम श्रीलंका में 2022 के विरोध प्रदर्शन की याद ताजा कर गया, जिसमें वहां राजपक्षे बंधुओं को सत्ता से उतरकर विदेश भागने को मजबूर होना पड़ा था। हालांकि, फिलहाल बांग्लादेश में सेना ने कमान अपने हाथ में ली है लेकिन आने वाली सरकार को उच्च बेरोजगारी, आर्थिक अस्थिरता, मुद्रास्फीति जैसे ज्वलंत मुद्दों का समाधान करना होगा। हालांकि, भारत के हसीना सरकार से मधुर संबंध थे, लेकिन हालिया उथल-पुथल को देखते हुए हमें अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा। पाकिस्तान परस्त बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी की आसन्न वापसी से भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न होने वाली प्रतिकूल परिस्थितियों के प्रति सावधान रहने की जरूरत होगी।
बांग्लादेश के एक तबके का भारत-विरोध इनसे स्पष्ट होता है कि बीते तीन दिनों में ही 50 हिंदू मंदिर तोड़ दिए गए। उनमें आस्था की देव-मूर्तियों को भी खंडित कर ध्वस्त किया गया। मंदिरों में आग लगा दी गई। हिंदुओं के 300 से अधिक घर और उनकी दुकानें भी तोड़ी गईं और आगजनी भी की गई। बीते कुछ सालों के दौरान करीब 3600 हिंदू मंदिरों को तोड़ा जा चुका है और उन्हें आग के हवाले किया जाता रहा है। क्या बांग्लादेश हिंदू-विरोधी भी हो रहा है?

बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी अब मात्र 7.9 फीसदी है, जबकि 1971 में देश-निर्माण के वक्त यह आबादी करीब 23 फीसदी थी। बेशक हिंदू घोर अल्पसंख्यक हैं। क्या मोदी सरकार प्रभावी हस्तक्षेप करेगी? बीएनपी की सरकार पहले भी बांग्लादेश में रही है। जमात भी भारत का विरोध करती रही है। जमात तो 1971 में भी पाकिस्तान परस्त था और बांग्लादेश बनाने के अभियान के खिलाफ था।

हसीना का सत्ता से बाहर होना भारत के लिए कई मोर्चों पर झटका है। सबसे महत्त्वपूर्ण है दक्षिण एशिया में भरोसेमंद साझेदार को खोना। अस्थिरता और हिंसा से भरा बांग्लादेश भारत के लिए पूर्वोत्तर क्षेत्र में सिरदर्द बढ़ा देगा। चीन, बांग्लादेश और पाकिस्तान को रक्षा आपूर्ति करता है। आइएसआइ निश्चित रूप से अपनी मौजूदगी और गतिविधियां बढ़ाने की कोशिश करेगी जो भारतीय हितों के खिलाफ है। इस राजनीतिक हिंसा और आर्थिक अनिश्चितता से भारत में घुसपैठ बड़ी चुनौती बन सकती है। यह भी हकीकत है कि बांग्लादेश कई मामलों में भारत के भरोसे रहा है। हकीकत यह भी है कि अब बांग्लादेश में करीब 80 फीसदी सैन्य हथियार चीन से आते हैं।

क्या नई सरकार चीन के साथ अपने संबंध मजबूत करेगी और भारत का खुलेआम विरोध करेगी? भारत के लिए घुसपैठ और शरणार्थियों का आना भी बेहद गंभीर चुनौती है। उसे किस तरह नियंत्रित किया जा सकता है? बहरहाल अभी तो निगाहें बांग्लादेश के घटनाक्रम पर टिकी रहेंगी। शेख हसीना किस देश में जाना चाहेंगी, यह भी चिंतित सवाल है। हिंदुओं पर हो रहे हमले भी चिंता पैदा करते हैं। वहीं अस्थिरता और हिंसा से भरा बांग्लादेश भारत के लिए पूर्वोत्तर क्षेत्र में सिरदर्द बढ़ा देगा। चीन, बांग्लादेश और पाकिस्तान को रक्षा आपूर्ति करता है। आइएसआइ निश्चित रूप से अपनी मौजूदगी और गतिविधियां बढ़ाने की कोशिश करेगी जो भारतीय हितों के खिलाफ है। इस राजनीतिक हिंसा और आर्थिक अनिश्चितता से भारत में घुसपैठ बड़ी चुनौती बन सकती है।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं एवं लखनऊ रहते हैं)

18वाँ मिथिला रंग महोत्सव का आयोजन 10 और 11 अगस्त को होगा ।

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प्रकाश झा

मैथिली नाटक ‘जनकनंदिनी’और ‘ग्रेजुएट पुतोह’ का मंचन होगा दिल्ली में

दिल्ली : राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मिथिलावासियों की कला, संस्कृति एवं साहित्य की सुप्रसिद्ध संस्था मैलोरंग यानि ‘मैथिली लोक रंग’ विगत सत्तह वर्षों से ‘मिथिला रंग महोत्सव’ का आयोजन करता आ रहा है । इस वर्ष यह अट्ठारहवाँ आयोजन है । इस आयोजन से हजारों की संख्या में मैथिली भाषी जुड़ते हैं । आयोजन में कलाओं के विभिन्न रूपों का प्रमुखता से प्रदर्शन किया जाता है । मुख्य केन्द्र विन्दु होता है मैथिली नाटकों का मंचन । इसके लिए देश की कई प्रमुख साहित्य संस्थाओं को, साहित्य कला प्रेमियों को आमंत्रित किया जाता है ।

इस वर्ष यह आयोजन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय जो कि संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार की एक महत्वपूर्ण स्वायत्त संस्थान है, के सम्मुख सभागार में आगामी 10 एवं 11 अगस्त को सायं 6:00 बजे से किया जाएगा । साथ ही आयोजन के प्रथम दिवस को यानि 10 अगस्त को इसकी शुरुआत ‘अष्ट्दल कला अकादमी’ की ओर से ‘दुर्गा-अष्टकम’ नृत्य से किया जाएगा, जिसे सुश्री अनुराधा कुमारी ने तैयार कराया है । इसी शाम दूसरा आयोजन साहित्य से संबंधित है, जिसमें विजया बुक्स’ प्रकाशन द्वारा श्री संतोष कुमार का लिखित पुस्तक का मैथिली अनुवाद जिसे डॉ. प्रकाश का ने किया है, का लोकार्पण किया जाएगा । तीसरे चरण में पाँच कविताओं का मंचन श्री रमण कुमार के मार्गदर्शन में ‘मंथन’ नाम से प्रस्तुत किया जाएगा । आयोजन का चौथा एवं अंतिम चरण ‘जय जोहार फॉउण्डेशन’ की ओर से सुप्रसिद्ध कथाकार स्व० हरिमोहन झा की रचना ‘ग्रेजुएट पुतोहु’ का मंचन सुश्री ज्योति झा के निर्देशन में होगा । इस कहानी को प्रस्तुति आलेख के रूप में डॉ. प्रकाश झा ने तैयार किया है ।

दिनांक 11 अगस्त को कार्यक्रम की शुरुआत मिथिला की सुप्रसिद्ध लोक नृत्य ‘झिझिया’ से होगा । इस प्रस्तुति को ‘अष्टदल’ दिल्ली के बच्चों के द्वारा सुश्री अनुराधा कुमारी की देख देख में तैयार किया गया है । इसके तुरंत बाद मिथिला की बेटी ‘सीता’ के जीवन पर आधारित नाट्य प्रस्तुति ‘जनकनंदिनी’का मंचन होगा । यह नाटक मूलरूप से सीता के मनःस्थिति एवं उसके सम्पूर्ण जीवन पर केन्द्रित है । काव्यातम् रूप से लिखे इस आलेख में नृत्य, गायन और अभिनय तीनों का संगम देखने को मिलेगा । नाट्य प्रस्तुत ‘जनकनंदिनी’ को ‘द साउण्ड ऑफ साइलेंस’ से इंगित किया गया है । इस मार्मिक नाट्यालेख को रचा एवं निर्देशित किया है डॉ. प्रकाश झा ने । प्रस्तुति ‘मैलोरंग रेपर्टरी’ के पाँच महिला कलाकारों को लेकर तैयार किया गया है ।

कुल मिलाकर दिल्ली एवं एन. सी. आर. में रहने वाले मैथिली भाषी एवं कला प्रेमियों के लिए यह सप्ताहंत सुखमय गुजरने वाला है ।

धर्म सम्राट कृपात्री जी की जयंती पर पूरे देश में गऊवंश हत्या बंदी कानून बनाने की मांग : गोयल

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नई दिल्ली। 7 नंबर शंकराचार्य मार्ग मे भारतवर्षीय धर्म संघ में मनाई गई जयन्ती के शुभ अवसर पर धर्म संघ के राष्ट्रिय अध्यक्ष एवं ज्योतिष पीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी माधवाश्रम जी महाराज के परम शिष्य व युनाईटेड हिन्दू फ्रंट के संरक्षक मंडल सदस्य जगद् गुरु स्वामी देवादित्यनंद सरस्वती जी महाराज ने कहा कि स्वामी करपात्री महाराज जैसे परम संत बार बार अवतरित नही हुआ करते। (1907 – 1982) भारत के वो सन्त, स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनेता एवं सच्चे गो भक्त थे। उनका मूल नाम हरि नारायण ओझा था। दीक्षा के उपरान्त उनका नाम ’हरिहरानन्द सरस्वती’ था किन्तु वे ‘करपात्री’ नाम से ही प्रसिद्ध थे क्योंकि वे अपने अंजुलि का उपयोग खाने के बर्तन की तरह करते थे (कर = हाथ, पात्र = बर्तन, करपात्री = हाथ ही बर्तन हैं जिसके)। उन्होंने भारत में राम राज्य परिषद नामक राजनैतिक दल भी बनाया था। धर्मशास्त्रों में इनकी अद्वितीय एवं अतुलनीय विद्वता को देखते हुए इन्हें ‘धर्मसम्राट’ की उपाधि प्रदान की गई।

यूनाईटेड हिन्दू फ्रंट के अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष, वरिष्ठ भाजपा नेता श्री जय भगवान गोयल ने कहा कि आज हम धर्मसम्राट कृपात्री जी महाराज को उनके प्रकटोत्सव पर उन्हें नमन् करते हैं जिन्हांने 1966 में लाखों गो भक्तों के साथ संसद का घेराव करते हुए पूरे देश में गोवंश हत्या बंदी कानून बनाने की पुरजोर मांग की थी और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री इंदिरा गांधी ने निहत्थे गो भक्तों पर गोलियां चलवाकर के हजारों गो भक्तों की निर्मम हत्या गोपाष्टमी के दिन करवाई थी, इसी कारण से इंदिरा गांधी की हत्या भी गोपाष्टमी के दिन ही हुई थी। आज हम सभी संतों के सानिध्य में भारत सरकार से यह मांग करते हैं कि पूरे देश में जल्द से जल्द गो वंश हत्याबंदी कानून बनाया जाए।

धर्म संघ के राष्ट्रिय प्रवक्ता प्रमोद माहेश्वरी ने बताया कार्यक्रम में भाग लेने वालों में मुख्य रूप से, स्वामी सर्वेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज काशी, वृंदावन धर्म संघ से स्वामी बवेले जी महाराज, स्वामी परानंद तीर्थ जी, विद्या सागर, राम राज्य परिषद के देवेंद्र चतुर्वेदी, अरुण पाण्डे आदि ने भाग लिया कार्यक्रम के अंत में प्रसाद वितरण किया गया।

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