राधिका खेड़ा का अपमान और कांग्रेस की राम विरोधी राजनीति

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आचार्य विष्णु हरि

राधिका खेडा कांग्रेस की कोई साधारण कार्यकर्ता नहीं थी, वह तो कांग्रेस की शीर्ष नेता रही है, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की रणनीतिक टीम में शामिल थी, साथ ही साथ कांग्रेस की राष्टीय प्रवक्ता थी, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि उसने अपने जीवन का कोई एक-दो साल नहीं बल्कि पूरे 22 साल कांग्रेस को दिया था

सनातन विरोध की परिधि में कांग्रेस के अंदर अपमानित होने वाली राधिका खेडा अकेली नहीं है, शाब्दिक छेड़खानी की शिकार होकर कांग्रेस से इस्तीफा देने वाली भी राधिका अकेली नहीं है। याद कीजिये प्रियंका दूबे को। राधिका की तरह प्रियंका दूबे भी कांग्रेस की राष्टीय प्रवक्ता थी। उत्तर प्रदेश के मथुरा में कांग्रेसियों ने प्रियंका दूबे के साथ शारीरिक छेड़खानी हुई थी, शिकायत के बावजूद भी छेडखानी करने वाले कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को सजा नहीं मिली। प्रियंका दूबे ने कांग्रेस छोडी थी। अभी प्रियंका दूबे शिवसेना की नेता हैं। आचार्य प्रमोद कृष्णन ने सनातन विरोधी राजनीति की बढती करतूत के विरोध में बयानबाजी कर कांग्रेस छोडी थी। इसी कडी में तत्कालीन कांग्रेस प्रवक्ता रोहन गुप्ता और अन्यों का नाम भी शामिल है।

राधिका खेडा कांग्रेस की कोई साधारण कार्यकर्ता नहीं थी, वह तो कांग्रेस की शीर्ष नेता रही है, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की रणनीतिक टीम में शामिल थी, साथ ही साथ कांग्रेस की राष्टीय प्रवक्ता थी, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि उसने अपने जीवन का कोई एक-दो साल नहीं बल्कि पूरे 22 साल कांग्रेस को दिया था, यानी की अपने जीवन की एक चैथाई हिस्सा कांग्रेस के लिए बलिदान कर दिया था। इतने बडे, समर्पित और अनुभवी नेता के साथ धर्म पर आधारित अपमान और पीडा के साथ ही साथ लगातार फब्तियां और शाब्दिक छेड़खानियों का शिकार बना कर रखना बहुत ही पीडा दायक, निंदनीय और अमानवीय है। कई प्रश्न खडे हो जाते हैं। सबसे बडा प्रश्न धार्मिक आजादी का है। किसी महिला या अन्य लैंगिक व्यक्ति की धार्मिक आजादी कोई पार्टी तय नहीं कर सकती है, धार्मिक आजादी को कोई पार्टी अपनी नीति और कार्यक्रम की परिधि में कैद नहीं कर सकती है। फिर राधिका खेडा की धार्मिक आजादी को कैद करने का अधिकार कांग्रेस के नेताओं को कैसे हो सकता है? राधिका खेडा ही क्यों बल्कि हर संवेदनशील व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार किसी धर्म को मान सकता है, उस धर्म के प्रतीकों के प्रति प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सम्मान दर्शा सकता है। यही काम राधिका खेडा ने किया था। पर कांग्र्रेस के भगवान राम विरोधी और सनातन विरोधी नेताओं को यह स्वीकार नहीं हुआ और वे राधिका खेडा का मजाक उड़ाते रहे और पार्टी कार्यालयों से गेट आउट कह कर भगाया जाने लगा। यह प्रक्रिया लगातार जारी रही। आखिर धीरज का बांध तो टूटना ही था। जब राधिका खेडा के धीरज का बांध टूटा तब कांग्रेस न केवल बेपर्द हो गयी बल्कि यह भी प्रमाणित हो गया कि कांग्रेस अभी भी नहीं चैती है और उसकी घृणा वैसी ही जारी है जैसी कि यूपीए वन और यूपीए टू के दौर में हुआ करती थी। पर ऐसी घटनाओं को लेकर कांग्रेस पार्टी के अंदर न्याय की उम्मीद थी। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे की चुप्पी तक नहीं टूटी है। लडकी हूं, लड सकती हूं, कहने वाली प्रियंका गांधी की भी खामोशी बहुत कुछ कहती है।

अब हम यहां विचार करते हैं कि राधिका खेडा का अपराध क्या था? उसका अपराध सिर्फ इतना भर ही था कि उसनें भगवान राम के प्रति आस्था दिखायी थी, सम्मान दिखाया था और दर्शन की थी। राधिका भगवान राम के दर्शन के लिए अयोध्या गयी थी। भगवान राम के दर्शन के बाद राधिका ने गर्व की अनुभूति की थी और कहा था कि दर्शन मात्र से उनकी जिंदगी धन्य हो गयी है, मानवीय संवेदनाएं उनके अंदर समृद्ध हुई हैं, क्योंकि भगवान राम मानवीय संवेदना के प्रतीक है, अनुकरणीय है। भगवान राम के प्रति राधिका की यह अनुभूति सोशल मीडिया पर खूब चर्चित हुई थी और सनातन विरोधियों ने इसकी खूब आलोचना की थी। खासकर जिहादियों ने सोशल मीडिया पर राधिका के प्रति खूब शाब्दिक अपमान किये थे और उन्हें दंगाई की पदवि भी दिया गया था। इतना ही नहीं बल्कि राधिका को मुस्लिम विरोधी भी साबित करने की कोशिश की गयी थी। लेकिन राधिका ने स्वयं को सिर्फ भगवान राम के दर्शन की परिधि में ही रखा था। राधिका का एक भी ऐसा बयान नहीं है, राधिका का एक भी ऐसा काम नहीं है, राधिका की एक भी ऐसी सक्रियता नहीं है जिससे यह लगे कि वह मुस्लिम विरोधी हैं या फिर दंगाई है। कांग्रेस में रहते हुए राधिका ने हमेशा कांग्रेस की कथित धर्मनिरपेक्षता का पालन किया था और भाजपा की तथ्यपरख आलोचना करने से भी कभी भी पीछे नहीं रही थी। सबसे बडी बात यह भी है कि कांग्रेस ने ऐसी कोई लक्ष्मण रेखा भी नहीं खींची थी कि राधिका खेडी जैसी कोई कांग्रेसी हस्तियां अयोध्या में भगवान राम का दर्शन करने न जायें?

वास्तव में कांग्रेस की हिडेन एजेंडा दोषी है। कांग्रेस का हिडेन एजेंडा क्या है? कांग्रेस का हिडेन एजेंडा हिन्दुत्व विरोध है, भगवान राम के प्रति अपमान और घृणा प्रदर्शित करना है। विश्व हिन्दू परिषद ने कांग्रेस के इतिहास को देखते हुए भी भगवान राम की मूर्ति स्थापना के समय कांग्रेस को आमंत्रित किया था, सोनिया गांधी और राहुल गांधी, प्रियंका गांधी ही नहीं बल्कि कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे को भी आमंत्रण भेजा था। लेकिन कांग्रेस ने राममंदिर मूर्ति स्थापना समारोह में जाने से इनकार कर दिया था। एक तरह से कांग्रेस का यह बहिष्कार ही था। कांग्रेस का कहना था कि इसका श्रेय नरेन्द्र मोदी और संघ के लोग क्यों ले रहे हैं, संघ और मोदी ने भगवान राम का चुनावी हथकंडा बना दिया। कांग्रेस की यह अवधारणा काफी झृणित थी और भगवान राम के प्रति अनादर भी था। संघ और मोदी को श्रेय तो जाता ही है। मोदी और संघ का राममंदिर आंदोलन कौन नहीं जानता है? कांग्रेस तो राममंदिर के विरोध में खडी थी। राममंदिर पर फैसला नहीं आये इसके लिए कांग्रेस ने कपिल सिब्बल सहित दर्जनों वकीलों को अप्रत्यक्ष तौर खडी कर रखी थी। कांग्रेस के बहिष्कार के बावजूद श्रीराम मंदिर की मूर्ति स्थापना शानदार और जींवत रूप से साकार हुआ, भगवान राम की मूर्ति स्थापना की परिधि में भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का डंका पूरे विश्व में बजा। दुनिया से करोडों लोग भगवान राम के दर्शन के लिए अयोध्या पहुंच रहे हैं। राधिका खेडा भी इसी परिधि में भगवान राम के दर्शन के लिए अयोध्या गयी थी।

राधिका के अपमान में कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व दोषी है क्या? यह कहना मुश्किल है कि राधिका के अपमान में कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व दोषी है। सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, राहुल गांधी या फिर मल्लिकार्जुन खडगे की कोई प्रत्यक्ष भूमिका शायद न हों। पर इस बात को हम इनकार नहीं कर सकते हैं कि केन्दी्रय नेतृत्व की उदासीनता और अप्रत्यक्ष समर्थन के बिना कांग्रेस के नेता इतने घृणित कार्य कैसे कर सकते हैं, इतने अमानवीय कार्य कैसे कर सकते हैं, एक संवेदनशील महिला को इस तरह से लगातार कैसे अपमानित कर सकते हैं? कांग्रेस के अंदर में सनातन विरोधी धाराएं बहती ही रहती है, कांग्रेस के उपर अभी कांग्रेस विरोधी शक्तियों का कब्जा हो गया है। ये शक्तियां मजहबी हैं और वामपंथी हैं। मजहबी और वामपंथी शक्तियां कांग्रेस की जडों में मठ्ठा डाल रही हैं, कांग्रेस को बेमौत मरने के लिए गढ्ढे खोद रही है। यही कारण है कि सनातन के पक्ष में बोलने से रोका जाता है, सनातन का पक्ष लेने पर दंगाई कह कर अपमानित किया जाता है। कभी कांग्रेस के लिए फायर ब्राॅड और हाई ब्रिड धार्मिक नेता आचार्य प्रमोद कृष्णन ने साफतौर पर कहा था कि कांग्रेस पर मुस्लिम समर्थकों और कम्युनिस्टों का कब्जा हो गया है ये कांग्रेस को सनातन से दूर ले जा रहे हैं। उन्हें भी कांग्रेस से बाहर जाने के लिए बाध्य किया गया। रोहन गुप्ता को भी इतना प्रताडित किया गया वह लोकसभा चुनाव का टिकट मिलने के बाद भी चुनाव लडने से इनकार कर दिया और साफतौर पर बयान दिया कि वे सनातन विरोधी राजनीति के लिए कांग्रेस का हथकंडा नहीं बन सकते है। किसी भी परिस्थिति में राधिका को अपमान का शिकार बनाने वाले कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और नेताओं को संरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए, ऐसे वर्ग के घृणित नेताओं को कांग्रेस अगर बाहर करती तो अच्छा था।

लख-लख बधाइयां प्रोफेसर संजय द्विवेदी !!

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अपनी पत्रकारीय मेधा और वैचारिक-दृष्टि के कारण  वर्षों तक सक्रिय पत्रकारिता में चमकने वाले मीडिया गुरु डॉ. संजय द्विवेदी को अब एक और महत्वपूर्ण दायित्व मिला है, जिसने मेरे जैसे अनेक लोगों को प्रसन्नता से भर दिया है । वेब पत्रकारों की सबसे बड़ी संस्था वेब जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया की स्वनियामक इकाई WJSA का अभी पुनर्गठन हुआ और प्रोफेसर (डा.) संजय द्विवेदी को इसका चेयरमैन बनाया गया है।
 प्रोफेसर द्विवेदी माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल के पूर्व कुलपति हैं। इसके अलावा वे सूचना प्रसारण मंत्रालय,भारत सरकार के अधीन संचालित भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC), नयी दिल्ली के महानिदेशक (डायरेक्टर जनरल) भी रहे हैं। आप दैनिक भास्कर, स्वदेश, नवभारत और हरिभूमि के संपादक भी रहे। आपने मीडिया और सामाजिक संदर्भों पर 32 पुस्तकें लिखी हैं। डॉ. संजय द्विवेदी के जीवन में संघर्ष भी काफी रहा। लेकिन  संघर्षों को हँसते हुए, पूरी हिम्मत के साथ पार करने की कला में माहिर होने के कारण सफलता इनके निरंतर कदम चूमती रही।  इनकी पत्रिका ‘मीडिया विमर्श ‘ ने मीडिया-जगत में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है।  इस पत्रिका के माध्यम से वे देश की किसी महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिका को अपने दादाजी पंडित बृजलाल द्विवेदी के नाम से सम्मान भी प्रदान करते हैं । समसामयिक विषयों पर चिंतनपरक लेखन करना डॉक्टर द्विवेदी की पहचान है।
मुझे विश्वास है अपने नए दायित्व को भी ये कुशलता पूर्वक निभाएंगे और इस संस्था को भी चमका देंगे।  बधाई और अनन्त शुभकामनाएं!

उदारवादियों की चुनिंदा संवेदनशीलता

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लोकतंत्र बचाने की बात हो या फिर संविधान बदलने की। यह सारी बातें पिछले चुनाव में भी की जा रही थी। मोदी आएगा तो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। संविधान बदल देंगे। चुनाव खत्म कर देंगे। पांच साल निकल गए। अब फिर वही अभियान फिर एक बार। लिंचिंग को बड़ा मुद्दा बनाया गया था उन दिनों। कांग्रेस पोषित पत्रकारों, उदारवादियों, प्रगतिशीलों और निष्पक्षों की चुनिंदा संवेदनशीलता को आइए समझते हैं। पांच साल पहले 2019 में मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं का हवाला देकर  कला, चिकित्सा, शिक्षा जगत की 49 हस्तियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है।  पत्र में देश में भीड़ द्वारा लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त की गई है। पीएम मोदी को लिखे लेटर में मणिरत्नम, अदूर गोपालकृष्णन, रामचंद्र गुहा, अनुराग कश्यप जैसी हस्तियों के हस्ताक्षर हैं. उन्होंने पीएम मोदी से एक ऐसा भारत बनाने की मांग की है, जहां असहमति को कुचला नहीं जाए।

फिर जागे लिबरल : ऐसा  क्यों कर रहें है तथाकथित लिबरल ?

  • कांग्रेस समर्थक वुद्धजीवीयों का एक वर्ग बीजेपी पर हिंदू बहुसंख्यकों की पार्टी का तमगा चस्पा  पहले से ही किये हैं
  • ये लोग  बीजेपी की बढ़ती ताकत को अपने विचारधारार और राजनैतिक सोच के खिलाफ मानते है ।
  • बीजेपी को देश के सेक्यलर ताने बाने के खिलाफ  दिखाने के लिए ये वर्ग भी  भी चुन- चुन कर उन्ही घटनाओं को देश- विदेश में उठाता है जिससे बीजेपी और पीएम मोदी कटघरे में खड़ा किये जा सकें

मॉबलिंचिंग ऐसी ही घटनाओं के एक सुनियोजित कैंपेन का नाम है ।

  • ये लिबरल लोग ,   मॉबलिंचिंग नैरेटिव से देश के युवा, आकांक्षी वर्ग को भी बीजेपी से दूर करने की कोशिश करने में लगातार लगे  है
  • और इससे  बीजेपी की विचारधार को देश की धार्मिक  एकता के खिलाफ  और देश विरोधी  करार दे सकें ।
  • विपक्ष दुनिया में बीजेपी को बदनाम करने के लिए अब फिर से  ऐसे तथा कथित लिबरल लोंगों को  हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है ।
  • 2002 के बाद से मोदी के सीएम रहते भी विपक्ष ने इसी  फेक नैरेटिव को खड़ा किया लेकिन मोदी करीब 13 साल तक सीएम रहे और 2014 में देश की जनता ने पीएम बनाया
  • 2013 -14 के  लोक सभा चुनाव प्रचार में  विपक्ष ने ये खतरा खड़ा किया था कि मोदी के आने के बाद मुसलमानों पर अत्याचार बढ़ जाएगा , संवैधानिक संस्थाएं बिखर जाएंगी , लोकतंत्र देश में नहीं बचेगा । पर जनता ने इसे बुरी तरह खारिज किया
  • बीते पांच साल तक  विपक्ष ने मॉब लिंचिंग, का  फेक कैंपेन चलाया  एवार्ड वापसी कैंपेन चलाया लेकिन 2019 में जनता ने प्रचंड जनादेश दिया

इसके पहले भी लिबरल लोगों का खास वर्ग ने कैंपेन चलाया है

150 से अधिक वैज्ञानिकों ने मतदाताओं से मॉब लिंचिंग के खिलाफ वोट देने की अपील की
(April 2019)

  • देश के 150 से अधिक वैज्ञानिकों ने मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या) से जुड़े लोगों को वोट न देने की अपील की है। इसके साथ ही असमानता, भेदभाव और डर के माहौल के खिलाफ वोट देने का निवेदन किया है।

थियेटर जगत के 600 कलाकारों ने की बीजेपी को वोट ना देने की अपील

(April 2019)

  • थियेटर जगत के 600 से ज्यादा कलाकारों ने 12 भाषाओं में बयान जारी करते हुए देश की जनता से अपील की है कि वे लोक सभा चुनाव 2019 में बीजेपी को वोट
    ना दें।

200 से अधिक लेखकों और 100 से अधिक फिल्म निर्देशक ने बीजेपी को वोट ना देने की अपील

  • देशभर के 200 से अधिक लेखकों ने भी नफरत की राजनीति के खिलाफ वोट करने की अपील की थी। अपील पर हस्ताक्षर करने वाले 210 लेखकों ने कहा था, ‘आगामी लोकसभा चुनाव में देश चौराहे पर खड़ा है।

तब कहां थे ये खास लिबरल लोग ?

  • यूपी के मुजफ्फर नगर का दंगा तब हुआ जब मोदी पीएम नहीं थे यानी यूपीए के समय हुआ तब ये कहां थे जबकि इनके  आरोप के उलट मोदी के पीएम रहते बीते  पांच साल में देश में एक भी दंगा नहीं हुआ
  • 23 मई के चुनाव नतीजों के बाद पश्चिम बंगाल में हुए  राजनीतिक हत्‍याओं पर इन लोगों ने क्यों नही कोई  खुला खत लिखा
  • मथुरा में 18 मई को कुछ मुसलमान  युवकों ने दुकानदार भारत और पंकज यादव से लस्सी के पैसे मांगने पर हमला कर दिया,बाद में एक युवक की मृत्यु हो गई।
    26 मई 2019

 त्रिपुरा में भाजपा कार्यकर्ता की हत्या

त्रिपुरा में चुनाव नतीजों के बाद से जारी हिंसा, BJP कार्यकर्ता की हत्या, अब तक 100 से ज्यादा घायल

  • 25 मई को त्रिपुरा में सत्तारूढ़ बीजेपी के समर्थक शिबू दास की पश्चिम त्रिपुरा जिले में हत्या कर दी गयी।
  • 24 मई को बीजेपी कार्यकर्ता बीजू भौमिक की त्रिपुरा के फतीकचेरा में  हत्या कर दी गई।

कुछ मामले और…

  • बिहार के औरंगाबाद में 25 जुलाई 2019 को रजिया, मदीना, कासिम, साहनी खातून ने पीट—पीटकर अशोक की हत्या कर दी लेकिन इस खबर का सज्ञान लेने की लिंचिंग के नाम पर सक्रिय अहिष्णुता-गिरोह ने जरूरत भी नहीं समझी।
  • हरियाणा के नूह जिले में 19 जुलाई 2019 को पेशे से अधिवक्ता नवीन यादव को घर जाते समय अख्तर, जैकम, साजिद,मकसूदन, रूकसाना, सरजीना शेकुल ने पीट-पीट कर मार डाला। इस पर जाति की राजनीति करने वाले तमाम सेकुलर गिरोह खामोश रहे क्योंकि मारने वाले मुसलमान थे और जिसकी लिंचिंग हुई वह यादव समाज से आता था।
  • महाराष्ट के पुणे में जुलाई 2019 में हितेश मूलचंदानी नाम के युवक को अगवा किया गया और बाद में उसका जला हुआ शरीर बरामद हुआ। हितेश की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई क्योंकि बार के बाहर उसने फिरोज खान को पेशाब करने से रोका था।

 अपराध में भी सांप्रदायिक चश्मा

  • यूपीए सरकार के दौरान भी पशु-चोरी और चोरी के मामलों में  भीड़ ने ऐसे वारदात के कई मामले किए। पर तब इन मामलों को सामान्य अपराध मान कर नजरअंदाज करने  वाली मीडिया का एक खास तबका  अब इसे  सांप्रदायिक मोड़ देने में क्यों जुट जाती है ?

मध्य प्रदेश  में गौ- रक्षकों के वारदात के लिए सीएम कमलनाथ की जगह पीएम मोदी जिम्मेदार कैसे ?

  • मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में लोकसभा चुनाव के वोटों की गिनती से ठीक एक दिन पहले गोमांस के शक में मुस्लिम युवक को पेड़ से बांधकर बुरी तरह से पीटने का मामला सामने आया है।– 22 मई 2019

फर्जी आरोप पर भी  हाय तौबा

गरुग्राम में मुस्लिम युवक से मारपीट का आरोप बेबुनियाद  निकले

  • हरियाणा के गुरुग्राम में जामा मस्जिद के पास 25 मई को कथित तौर पर मुस्लिम युवक की टोपी फेंकने और उससे जबरन ‘जय श्रीराम’ बुलवाने वाले आरोप फर्जी निकले । इस मामले की जांच के लिए पुलिस ने इलाके में लगे करीब 50 सीसीटीवी की फुटेज खंगाली, जिसमें सामने आया है कि मुस्लिम युवक से सिर्फ मारपीट हुई थी। न तो किसी ने उसकी टोपी फेंकी और न ही उसकी शर्ट फाड़ी गई। सीसीटीवी फुटेज के मुताबिक, मुस्लिम युवक को आरोपी ने नहीं, बल्कि एक दूसरे युवक ने रोका था। हालांकि, आरोपी के साथ उसकी कहासुनी जरूर हुई थी, जिसके बाद दोनों में हाथापाई भी हुई। उस वक्त मुस्लिम युवक की टोपी गिर गई थी, जिसे उसने खुद ही उठाकर जेब में रख लिया था। किसी अन्य युवक ने टोपी को हाथ तक नहीं लगाया था।

जय श्री रामन बोलने पर आतिब की पिटाई की खबर थी झूठी

  • मामला यूपी के कानपुर का है, नवजीवन ने 4 जुलाई को वेबसाइट पर खबर प्रकाशित की — तीनों युवक आतिब को जय श्री राम का नारा लगाने के लिए मजबूर करने लगे। आतिब ने जब इसका विरोध किया तो आरोपियों ने उसे पास के ही शुलभ शौचालय में बंधक बना लिया और ईंट पत्थरों से पीट—पीट कर उसे जख्मी कर दिया।  न्यूज़ रिपोर्ट में आरोपियों का नाम सुमित सिंह ,राजेश सिंह और शिवा कुमार बताया गया है. कुछ अन्य मीडिया हाउस ने भी इस मामले में कुछ इसी तरह की खबर चलाई थी।

अब खबर की सच्चाई पर बात करते हैं, इस मामले में सच यह है कि मोहम्मद आतिब को ‘जय श्री राम’ ना बोलने पर पीटने वाली खबर गलत थी. मोहम्मद आतिब को तीन लोगों ने पीटा जरुर था लेकिन उसका ‘जय श्री राम का नारा लगाने या न लगाने से कोई लेना—देना नहीं था. आतिब ने खुद इस बात से एक टीवी चैनल के पत्रकारों से बात करते हुए इंकार किया और कहा है कि उसे जिन लोगों ने मारा उन्होंने उसे कोई नारे लगाने को नहीं कहा था. मोहम्मद आतिब के अनुसार उनको इसलिए पीटा गया क्योंकि उन्होंने आरोपियों को अपने ऑटो में बिठाने से मना कर दिया था. आतिब के अनुसार— तीनों लोग नशे में थे और ऑटो पर न बिठाने के सवाल पर तीनों आरोपियों से उसकी कहा सुनी हो गई। जिसके बाद उसे को ईंट पत्थर से बुरी तरह पीटा गया. आतिब ने ये बात साफ़ कर दी की ‘जय श्री राम’ ना बोलने पर पीटने वाली बात झूठी है।

प्रिंसपल मिस्बाही ने फैलाया जय श्रीराम का झूठ

  • उन्नाव जिले में एक मदरसे के छात्रों से जबरदस्ती ‘जय श्री राम’ के नारे लगवाए जाने की खबर जुलाई के दूसरे सप्ताह में सामने आई। इस मामले में जब पुलिस ने पड़ताल की तो पाया कि मदरसे के छात्रों से मारपीट व जबरन जय श्री राम के नारे लगवाने की बात झूठी निकली। उन्नाव पुलिस के मुताबिक जिन्हें आरोपी बता कर रिपोर्ट दर्ज कराई गई वह घटनास्थल के आस—पास भी नहीं थे। नामित आरोपियों के मोबाइल के लोकेशन व दूसरे स्थान पर मौजूदगी की फुटेज की जांच करने के बाद पुलिस ने उन्हें क्लीनचिट दे दी। दोनों को कोतवाली से छोड़ दिया गया। वास्तव में मदरसा दारुल उलूम फैजेआम के प्रिंसिपल मौलाना निसार अहमद मिस्बाही ने 11 जुलाई को छात्रों के मजहबी नारे न लगाने पर मारपीट की रिपोर्ट झूठी रिपोर्ट दर्ज कराई थी।

ना बागपत में दाढ़ी नोची गई और ना जय श्रीराम कहलवाया गया

  • बागपत में मौलाना की जय श्री राम का नारा ना लगाने पर पिटाई के मामले में नया मोड़ आ गया है. पुलिस की जांच में सामने आया है कि मौलाना ने झूठा आरोप लगाया है. मौलाना की ना तो दाढ़ी नोची गई और ना ही जय श्री राम का नारा लगाने के लिए उन्हें कहा गया। मौलाना ने बाद में अपना बयान बदल लिया, जब मौलाना की पिटाई हुई तो इसकी सूचना मौलाना द्वारा जिसमें मौलाना ने कहा था कि 10 से ज्यादा लोगों ने ये उस पर छेड़छाड़ का आरोप लगाकर उसकी पिटाई की है. जिसके बाद सीओ बुढ़ाना ने मामला बागपत का बताकर उन्हें बागपत भेज दिया. बागपत में थाना दौघट पुलिस के सामने मौलाना ने बयान बदल दिए और कहा कि जय श्री राम का नारा न लगाने पर पिटाई की गई है. जिसका मुकदमा दर्ज किया गया है. सीओ के मुताबिक पहले मौलाना ने छेड़छाड़ की बात कहकर पिटाई की बात कही थी. हालांकि पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया था और जाँच में मुजफ्फरनगर जिले के बुढ़ाना कोतवाली क्षेत्र नगवा गाँव के युवको के पिटाई में शामिल होने बात सामने आई थी.

 

कुछ मामले और…

  • तेलंगाना के करीमनगर के एक मामले में 2 जून 2019, प्रेम प्रसंग के एक मामले में हुई मारपीट को जय श्री राम के नाम से जोड़ा गया।
  • यूपी के बरेली में 01 जून 2019 को चार युवकों को मंदिर में मांस खाने के आरोप में लोगों ने पीटा था। जिसके बाद सोशल मीडिया पर अभियान चलाया गया कि मुसलमानों को पीटा गया। जिसमें यह नहीं बताया गया कि मंदिर में वे मांस खा रहे थे। ना यह बताया गया कि जिन युवकों की पीटाई हुई उनमें दो हिन्दू युवक
    शामिल थे।
  • महाराष्ट्र औरंगाबाद में 20 जुलाई 2019 को इमरान नाम के युवक ने कहा कि उससे मारपीट करने के बाद उसे जय श्रीराम बोलने के लिए कहा गया। उस लड़ाई में इमरान को बचाने वाले व्यक्ति ने ही उसकी पोल खोल दी।
  • महाराष्ट्र के औरंगाबाद में ही 23 जुलाई 2019 को दूसरा मामला, जिसमें मारपीट की एक खबर सामने आई। जिसमें जय श्री राम बाद में जोड़ दिया गया। जिस शेख आमेर को कथित तौर पर जय श्रीराम ना बोलने के नाम पर पीटा गया, उस बयान से वह खुद पलट गया। बकौल शेख आमेर— यह झूठ उसने समाज में अपना कद बढ़ाने के लिए बोला था।
  • 20 जून 2019 को रोहिणी में मोहम्मद मोमिन ने आरोप लगाया कि जय श्री राम ना बोलने की वजह से उनकी पीटाई कर दी गई जबकि पुलिस तहकीकात में उनके आरोप में सच्चाई नहीं पाई गई।
  • पश्चिम बंगाल के कूच बिहार के एक मामला है, 29 जून 2019 को सोशल मीडिया पर एक शख्स से जबरन जय श्रीराम बुलवाने का वीडियो वायरल हुआ। लेकिन तहकीकात में पाया गया कि दोनों ही शख्स मुसलमान थे।

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भारत की आत्मा हैं

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जयपुर। राम केवल एक नाम भर नहीं , बल्कि वे जन-जन के कंठहार हैं, मन-प्राण हैं, जीवन-आधार हैं। राम भारत की चेतना हैं, प्राणशक्ति हैं।  उनसे भारत अर्थ पाता है। वे भारत के पर्याय और प्रतिरूप हैं और भारत उनका। उनके नाम-स्मरण एवं महिमा-गायन में कोटि-कोटि जनों को जीवन की सार्थकता का बोध होता है। भारत के कोटि-कोटि जन उनके दृष्टिकोण से जीवन के विभिन्न संदर्भों-पहलुओं-परिप्रेक्ष्यों-स्थितियों-परिस्थितियों-घटनाओं-प्रतिघटनाओं का आकलन-विश्लेषण करते हैं। भारत से राम और राम से भारत को कभी विलग नहीं किया जा सकता। क्योंकि राम भारत की आत्मा हैं। भला आत्मा और शरीर को कभी विलग किया जा सकता है। एक के अस्तित्व में ही दूसरे का अस्तित्व है। वे निर्विकल्प हैं, उनका कोई विकल्प नहीं। राम ही धर्म हैं, धर्म ही राम है। कहा भी गया है ”’रामो विग्रहवान् धर्मः।” हम भारतीयों के जीवन का आदर्शलोक राम-नाम के धागों से बुना है। हर व्यक्ति के जीवन में, हर कदम पर जो भी शुभ है, सुंदर है, सार्थक है, अनुकरणीय है, वह ‘राम’ हैं। इसलिए राम सबके हैं। राम सबमें हैं। उनके सुख में भारत के जन-जन का सुख आश्रय पाता है, उनके दुःख में भारत का कोटि-कोटि जन आँसुओं के सागर में डूबने लगता है। अश्रुओं की उस निर्मल-पवित्र धारा में न कोई ईर्ष्या शेष रहती है, न कोई अहंकार, न कोई लोभ, न कोई मोह, न कोई अपना, न पराया। सारा जग ही अपना जान पड़ता है। कितना अद्भुत है उनका जीवन-चरित, जिसे बार-बार सुनकर भी और सुनने की चाह बनी रहती है! इतना ही नहीं, उस चरित को पर्दे पर अभिनीत करने वाले, उस चरित को जीने वाले, लिखने वाले, उनकी कथा बाँचने वाले हमारी आत्यंतिक श्रद्धा के उच्चतम केंद्रबिंदु बन जाते हैं। उस महानायक से जुड़ते ही सर्वसाधारण के बीच से उठा-उभरा सामान्य व्यक्ति भी नायक-सा मान-सम्मान पाने लगता है। उनके सुख-दुःख, हार-जीत, मान-अपमान में हमें अपने सुख-दुःख, हार-जीत, मान-अपमान की अनुभूति होती है। उनकी प्रसन्नता में सारा जग हँसता प्रतीत होता है और उनके विषाद में सारा जग रोता। उस महामानव के प्रति यही हमारे चित्त की दशा-अवस्था है। यह अकारण नहीं कि करोड़ों लोग आज भी रामायण  सीरियल के पुनर्प्रसारण और नवीन संस्करण को देख-देख भाव-विह्वल हो जाते हैं। करोड़ों लोग आज भी श्रीरामचरितमानस का पारायण कर स्वयं को कृतकृत्य अनुभव करते हैं।
शताब्दियों की प्रतीक्षा के पश्चात पौष शुक्ल द्वादशी को अभिजीत मुहूर्त में श्री रामलला के अपनी जन्मभूमि पर बने दिव्य और भव्य घर में विराजमान होने के पावन एवं महत्त्वपूर्ण अवसर पर यह प्रश्न उचित ही होगा कि आख़िर किस षड्यंत्र के अंतर्गत कभी तुलसी, कभी रामचरितमानस तो कभी स्वयं राम पर ही भ्रम और संशय निर्मित करने के बहुविध प्रयत्न किए जाते रहे? कौन नहीं जानता परंपरा से ही भारत की संस्कृति के केंद्रबिंदु राम, उनका चरित्र और उस चरित्र के सर्जक साहित्यकार रहे हैं। इसलिए विभाजनकारी शक्तियाँ वेश व रूप बदल-बदलकर इन पर हमलावर रही हैं। अधिक दिन नहीं बीते, जब तमाम पुरातात्विक अवशेषों और प्रमाणों के बावजूद श्रीराम के होने के प्रमाण माँगे जाते थे। आखिर किस षड्यंत्र के अंतर्गत उनकी स्मृति तक को उनके जन्मस्थान से मिटाने-हटाने के असंख्य प्रयत्न किए जाते रहे? क्यों तमाम दलों एवं बुद्धिजीवियों को न केवल राम-मंदिर से, बल्कि राम-नाम के जयघोष से, चरित-चर्चा-कथा से, यहाँ तक कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 9 नवंबर 2019 को उसके पक्ष में सुनाए गए ऐतिहासिक एवं बहुप्रतीक्षित फैसले तक से भी किसी-न-किसी रूप में आपत्ति रही ? एक लंबे अरसे तक क्यों उन्हें एक आक्रांता की स्मृति में खड़े गुलामी के प्रतीक से इतना मोह रहा? क्या वे नहीं जानते कि मज़हब बदलने से पुरखे नहीं बदलते, न संस्कृति ही बदलती है? क्या यह सत्य नहीं कि जिन दलों-राजनीतिज्ञों ने दशकों तक जातीय, सांप्रदायिक एवं पृथकतावादी राजनीति एवं खंडित अस्मिताओं को पाल-पोस-उभारकर राजनीतिक रोटियाँ सेंकीं, केवल उन्हें ही भारत की सामूहिक एवं सांस्कृतिक चेतना व अस्मिता के प्रतीकपुरुष श्रीराम, श्री राम के मंदिर और गोस्वामी तुलसीदास से आपत्ति एवं शिकायत रही? विभाजनकारी शक्तियाँ भली-भाँति यह जानती हैं कि श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास के भावकेंद्र श्रीराम और रामचरितमानस के प्रति सर्वसाधारण के गहरे झुकाव, समर्पण व पवित्र भाव के रहते उनके द्वारा प्रयासपूर्वक रोपे गए विभाजन की विष-बेल के फलने-फूलने-पनपने की संभावना नगण्य या न्यूनतम रहेंगीं, इसलिए वे कोई-न-कोई बहाना बनाकर इन पर हमलावर रहती हैं। रामलला की प्राणप्रतिष्ठा के पश्चात जनमानस में आई राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक जागृत्ति से कदाचित अब ऐसे अप्रिय प्रसंगों का पटाक्षेप हो!
प्रश्न तो यह भी उचित होगा कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी जिस एक चरित्र को हम अपनी सामूहिक एवं गौरवशाली थाती के रूप में सहेजते-संभालते आए, आख़िर किन षड्यंत्रों के अंतर्गत बड़ी ढिठाई एवं निर्लज्जता से उसे काल्पनिक बताया जाता रहा? उसके अस्तित्व को लेकर शंका के बीज वर्तमान पीढ़ी के हृदय में किसने और क्यों बोए? जो एक चरित्र करोड़ों-करोड़ों लोगों के जीवन का आधार रहा हो, जिसमें करोड़ों-करोड़ों लोगों की साँसें बसी हों, जिससे कोटि-कोटि जन प्रेरणा पाते हों, जिसने हर काल और हर युग के लोगों को संघर्ष व सहनशीलता, धैर्य व संयम, विवेक व अनुशासन की प्रेरणा दी हो, जिसके जीवन-संघर्षों के सामने कोटि-कोटि जनों को अपना संघर्ष बहुत छोटा प्रतीत होता हो, जिसके दुःखों के पहाड़ के समक्ष अपना दुःख राई-रत्ती जान पड़ता हो, जिसके चरित्र की शीतल छाया में कोटि-कोटि जनों के ताप-शाप मिट जाते हों, जिसके व्यक्तित्व के दर्पण में व्यक्ति-व्यक्ति को जन्म से लेकर मृत्यु तक के अपने सभी श्रेष्ठ-सुंदर भाव-आचार-विचार-साहस-सौगंध-संस्कार-संकल्प का सहज प्रतिबिंब दिखाई देता हो, जिसका जीवन कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य, धर्म-अधर्म का सम्यक बोध कराता हो, जो मानव-मात्र को मर्यादा और लोक को ऊँचे आदर्शों के सूत्रों में बाँधता-पिरोता हो, जो हर युग और काल के मन-मानस को नए सिरे से मथता हो और विद्वान मनीषियों के हृदय में बारंबार नवीन एवं मौलिक रूप में आकार ग्रहण करता हो- ऐसे परम तेजस्वी, ओजस्वी, पराक्रमी, मानवीय श्रीराम को काल्पनिक बताना राष्ट्र की चिति, प्रकृति और संस्कृति का उपहास उड़ाना नहीं तो और क्या था? अच्छा तो यह होता कि स्वतंत्र भारत में भी श्रीराम-मंदिर के भव्य निर्माण में विलंब करने या जान-बूझकर अड़ंगा डालने वालों को कठघरे में खड़ा कर उनकी नीति और नीयत पर सवाल पूछे जाते!
पर समय और समाज आज इन प्रश्नों को छोड़कर बहुत आगे बढ़ चला है। लंबे संघर्ष के परिणामस्वरूप अंततः आस्था एवं विश्वास की विजय होनी थी, सो हुई। श्रीराम के भव्य, दिव्य एवं विशाल मंदिर में रामलला के विराजने के पश्चात जनमानस में जो हर्ष, उल्लास एवं उत्साह दिखाई दे रहा है, वह असाधारण, अद्वितीय एवं अलौकिक है। ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तर-दक्षिण-पूरब-पश्चिम से श्रद्धालुओं का जनसैलाब अयोध्या में उमड़ आया हो। मन, प्राण एवं चित्त को विह्वल करने वाले भावदृश्य प्रतिदिन अयोध्या से सामने आते हैं। भगवद्भक्ति में जीवन  की महत्ता एवं सार्थकता ढूँढ़ने व पाने वाले भारतवर्ष को यदि सही-सही अर्थों में समझना हो तो कुछ दिन अयोध्या में अवश्य व्यतीत करना चाहिए। और अयोध्या ही क्यों, आज तो पूरा भारत ही राममय हो उठा है। मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम केवल उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम को ही सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय एकता के सूत्र में नहीं बाँधते, अपितु वे संपूर्ण विश्व के सनातनियों को हृदय के तल पर जोड़ते हैं। और कोई तत्त्व-ज्ञान जानें या मानें अथवा नहीं, केवल राम-नाम के तत्त्व व महत्त्व को समझ जाएँ तो सनातन का सार समझ आ जाता है। राम-नाम इस देश को जोड़ने की कुंजी है। भक्ति और भाव के आनंदित कर देने वाले ऐसे दृश्यों की आंशिक झलक देश-दुनिया ने श्रीराम जन्मभूमि निधि समर्पण अभियान के दौरान भी देखी थी। तब जितना लक्ष्य रखा गया था, इस देश के श्रद्धालु समाज ने उससे कई गुना अधिक राशि ‘तेरा तुझको अर्पण’ के भाव से श्रीराम मंदिर निर्माण ट्रस्ट को समर्पित कर दी थी। प्रभु श्रीराम ने सर्वसाधारण यानी वनवासी-गिरिवासी, केवट-निषाद-कोल-भील-किरात से लेकर वानर-भालु-रीछ जैसे वन्यप्राणियों को भी उनकी असीमित-अपराजेय शक्ति की अनुभूति कराई थी। उन्होंने लोकशक्ति का संचय, संग्रह और संस्कार कर आसुरी व अहंकारी शक्तियों पर विजय पाई थी। श्रीराम के राघव स्वरूप विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा अपने भीतर और लोक में व्याप्त उन्हीं आंतरिक एवं सामूहिक शक्तियों को स्थापित एवं प्रतिष्ठित करने का अनूठा प्रयास व पर्व है। यह पर्व विभाजनकारी विष-बेल को सींचने-पोसने-पालने वाली आसुरी शक्तियों पर अपने सामूहिक धैर्य, विवेक, संयम, साहस और अनुशासन से विजय पाने के संकल्प का पर्व है। उत्सवधर्मिता हम भारतीयों की मूल पहचान है। प्रतिकूल-से-प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हम जीवन की अजेयता के, आस्था व विश्वास के गीत गाते रहे हैं, गाते रहेंगें। हमारी संस्कृति सृजनधर्मा है। हम सृजन के वाहक बन समय की हर चाप और चोट को सरगम में पिरोते रहेंगें। श्रीराम के प्रति अपनी सामूहिक आस्था एवं विश्वास के बल पर हम भविष्य में भी हर प्रकार की विभाजनकारी-उपद्रवी-आतंकी शक्तियों के साथ साहस-सावधानी-सतर्कता से जूझेंगें, लड़ेंगें, अंततः विजय पाएँगे और जीतकर भी विश्व-मानवता के प्रति विनयशील रहेंगें। अयोध्यापति श्रीराम हमें समाज के अंतिम व्यक्ति की चिंता और हर हाल में लोक-मर्यादा के पालन की सीख देते हैं। अतः उल्लास व उत्सव की इस बेला में अंतिम व्यक्ति की चिंता एवं मर्यादा की लक्ष्मणरेखा हमारी दृष्टि से ओझल न होने पाए!
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