अगले तीन वर्षों में नक्‍सलवाद मुक्‍त होगा देश : अमित शाह

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गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि अगले तीन वर्षों में देश नक्‍सलवाद से मुक्‍त हो जाएगा। असम के तेजपुर में आज सशस्‍त्र सीमा बल के 60वें स्‍थापना दिवस पर उन्‍होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के नेतृत्‍व में अगले तीन वर्षों में देश नक्‍सलवाद के प्रभाव से पूरी तरह मुक्‍त हो जाएगा।

उन्‍होंने देश में नक्‍सलवाद का प्रभाव कम करने में केन्‍द्रीय रिजर्व पुलिस बल और सीमा सुरक्षा बल के साथ-साथ सशस्‍त्र सीमा बल की भूमिका की भी सराहना की। शाह ने कहा कि एसएसबी न केवल अर्न्‍तराष्‍ट्रीय सीमाओं की रक्षा कर रहा है, बल्कि देश के सीमावर्ती क्षेत्रों की संस्‍कृति और विरासत के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उन्‍होंने कहा कि एसएसबी सीमाओं की रक्षा करते हुए इसमें स्‍थानीय लोगों की भागीदारी भी सुनिश्चित कर रहा है।

गृह मंत्री ने सीमावर्ती क्षेत्रों में मादक पदार्थों और हथियारों को बरामद करने में एसएसबी के सुरक्षाकर्मियों की भूमिका को भी सराहा। मोदी सरकार के प्रयासों का उल्लेख करते हुए श्री शाह ने कहा कि केन्‍द्रीय सशस्‍त्र पुलिस बलों में पिछले नौ वर्षों में पौने दो लाख नई भर्ती की गई हैं।

उत्तर प्रदेश महोत्सव में याद की गई स्मृतिशेष विभूतियाँ

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सैकड़ों दर्शकों के बीच गूंजे काव्य के स्वर

कोंच ( जालौन) सूबे की राजधानी लखनऊ में उत्तर प्रदेश महोत्सव के मंच पर कोंच इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के संयोजन में आयोजित कार्यक्रम में समाज के लिए योगदान देने वाली विभूतियों को याद किया गया और उनकी स्मृति में लोगो को सम्मानित किया गया।

देर रात तक फेस्टिवल के संयोजन में चले अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह में वरिष्ठ पत्रकार, रंगकर्मी एवं रामलीला विशेषज्ञ पं श्री रमेश तिवारी वरिष्ठ साहित्यकार रामरूप पंकज वरिष्ठ पत्रकार कृष्णगोपाल रिछारिया, वरिष्ठ समाजसेवी किशोरीशरण सक्सेना, रिटा. डीजीपी गिरीश बिहारी एवं वरिष्ठ समाजसेवी राजीव अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार राजीव तलवाड़ को याद करते हुए उनकी स्मृति में विभिन्न क्षेत्रों की विभूतियों को सम्मानित किया गया।

कोंच इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कवि भास्कर सिंह माणिक गीतकार एवं साहित्यकार दिनेश मानव ओज के सशक्त कवि चंद्रप्रकाश चंद्र कवियत्री साधना मिश्रा विंध्य कवि हरिप्रकाश हरि ने अपनी रचनाओं से कार्यक्रम को सुशोभित किया। कार्यक्रम में मुख्यअतिथि समाजसेवी एवं साहित्यकार श्रीमती सीमा वर्मा, विशिष्ठ अतिथि शिक्षाविद डॉ रुपेश सिंह समाजसेवी इंजी राजीव रेजा समाजसेवी एवं कांग्रेस नगर अध्यक्ष कोंच राघवेंद्र तिवारी आदि मंचासीन रहे। फिल्म फेस्टिवल के संयोजक पारसमणि अग्रवाल ने बताया कि कोंच को एक नई पहचान दिलाने के उद्देश्य से कोंच इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल लगातार प्रयासरत है इसी श्रखला में समाज में योगदान देने वाली विभूतियों को याद कर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किये गये। इस अवसर पर संतोष कुमार सक्सेना पत्रकार मुकेश मिश्रा कपिल सक्सेना अमित सक्सेना नितिन नदीम विजय गुप्ता नूपुर रोमा श्रीवास्तव स्वाति जैन मोहित नेहा नीरज आदि उपस्थित रहे।

संबंध मूल्य को स्थापित करता राजा राम का लोकजीवन

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डॉ.सौरभ मालवीय

सनातन धर्म के अनुयायी श्रीराम को भगवान मानते हैं तथा उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। वह भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं, जिन्होंने लंका नरेश रावण एवं अन्य राक्षसों का संहार करके मानव जाति को उनके अत्याचारों से मुक्त करवाने के लिए अयोध्या के राजा दशरथ के यहां राम के रूप में जन्म लिया था।

इसके इतर राम ने स्वयं को एक जननायक के रूप में स्थापित किया। उनका संपूर्ण जीवन इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मर्यादा के नूतन आयाम स्थापित किए। इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। उन्होंने अपने संपूर्ण जीवन में कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया, इसलिए भी उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है।

आदर्श पुत्र

श्रीराम एक आदर्श पुत्र थे। उन्होंने अपने पिता राजा दशरथ के वचन का पालन किया। उन्होंने राजा दशरथ द्वारा अपनी पत्नी कैकेयी को दिए वचन को पूर्ण करने के लिए राजपाट त्याग कर चौदह वर्ष का वनवास सहर्ष स्वीकार कर लिया। उन्होंने अपनी माता के वचन का सहृदय से पालन करके यह सिद्ध कर दिया कि उनके लिए पिता के वचन और माता की प्रसन्नता से बढ़कर कुछ भी नहीं है। उन्होंने वैभवशाली जीवन का त्याग करके वन में जीवन व्यतीत करना उचित समझा। उन्होंने अपने पिता की मनोव्यथा एवं उनकी विवशता को अनुभव किया तथा बिना किसी अंतर्द्वन्द्व के वनवास जाने का निर्णय ले लिया। यह निर्णय कोई सरल कार्य नहीं था। आज के युग में कोई अपनी एक इंच भूमि भी अपने भाई को नहीं देना चाहता। भूमि और संपत्ति को लेकर भाइयों के मध्य रक्तपात हो जाता है। ऐसे में त्रेता युग में जन्मे श्रीराम परिवार मूल्य बोध के लिए एक आदर्श स्थापित करते हैं।

चित्रकूट में जब भरत व उनके अन्य परिवारजन उन्हें पुनः अयोध्या वापस लौटने को कहते हैं, वह इसे अस्वीकार कर देते हैं। उनकी माता कैकेयी भी उनसे अपने वचनों को वापस लेने की बात कहती हैं, परन्तु वह अपने निर्णय पर अटल रहते हैं तथा उनके कथन को अस्वीकार कर देते हैं। वह अपनी माता से कहते हैं कि आपका वचन पिता से संबंधित था, मुझसे नहीं। मेरा संबंध तो पिता के वचन से है आपसे नहीं, इसलिए मैं उनके वचन की अवज्ञा नहीं कर सकता। मैं अपने पिता के वचन से बंधा हुआ हूं। तभी से यह कहा जा रहा है कि “रघुकुलरीत सदा चली आई, प्राण जाय पर वचन न जाय।“
वास्तव में राजा दशरथ अपने पुत्र से अत्यधिक स्नेह करते थे। पुत्र के वियोग में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए, परन्तु अपने वचन का पालन किया।

आदर्श भाई

श्रीराम एक आदर्श भाई भी थे। उनके लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के प्रति अथाह प्रेम, त्याग एवं समर्पण के कारण उन्हें आदर्श भाई माना जाता है। उन्होंने अपनी माता कैकेयी के आदेश पर अपना राज्य अपने छोटे भाई भरत को सौंप दिया और स्वयं अपनी पत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ वनवास के लिए प्रस्थान कर गए।

रामचरित मानस में भक्त शिरोमणि तुलसीदास कहते हैं-
सजि बन साजु समाजु सबु बनिता बंधु समेत।
बंदि बिप्र गुर चरन प्रभु चले करि सबहि अचेत।।

अर्थात वन के लिए आवश्यक वस्तुओं को साथ लेकर श्रीराम पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण सहित ब्राह्मण एवं गुरु के चरणों की वंदना करके सबको अचेत करके चले गए।

सद्भाव का संदेश

श्रीराम ने समाज के प्रत्येक वर्ग को आपस में जोड़कर रखने का संदेश दिया। उन्होंने प्रेम एवं भाईचारे का संदेश दिया। निषादों के राजा निषादराज श्रीराम के अभिन्न मित्र थे। वह ऋंगवेरपुर के राजा थे। उनका नाम गुह्यराज था। वह श्रीराम के बाल सखा थे। उन्होंने एक ही गुरुकुल में रहकर शिक्षा प्राप्त की थी। आदिवासी समाज के लोग आज भी निषादराज की पूजा करते हैं। उन्होंने वनवास काल में श्रीराम, सीता एवं लक्ष्मण को गंगा नदी पार करवाई थी।

संपूर्ण प्राणियों से प्रेम

श्रीराम मनुष्यों से ही नहीं, अपितु पशु-पक्षियों से भी हृदय से प्रेम करते थे। पशु-पक्षियों ने भी समय-समय पर उनकी सहायता की। इनकी सहायता से ही उन्हें सीता के हरण के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। श्रीराम का गिलहरी से संबंधित एक अत्यंत रोचक प्रसंग है।

जिस समय श्रीराम की सेना रामसेतु के निर्माण के कार्य में व्यस्त थी, उस समय लक्ष्मण ने उन्हें गिलहरी को निहारते हुए देखा। इस बारे में पूछने पर श्रीराम ने बताया कि एक गिलहरी बार-बार समुद्र के तट पर जाती है तथा रेत पर लोटपोट करके रेत को अपने शरीर पर चिपका लेती। जब रेत उसके शरीर पर चिपक जाती, तो वह सेतु पर जाकर सारा रेत झाड़ देती है। वह बहुत समय से ऐसा कर रही है। यह सुनकर लक्ष्मण ने कहा कि वह केवल क्रीड़ा का आनंद ले रही है। इस पर श्रीराम ने कहा कि लक्ष्मण से कहा कि मुझे ऐसा प्रतीत नहीं होता। उत्तम तो यही होगा कि हम इस संबंध में गिलहरी से ही पूछ लेते हैं। उन्होंने गिलहरी से पूछा कि तुम क्या कर रही हो? गिलहरी ने उत्तर दिया कि कुछ नहीं, केवल सेतु निर्माण के पुनीत कार्य में अपना थोड़ा सा योगदान दे रही हूं। उन्हें उत्तर देकर गिलहरी पुनः अपने कार्य के लिए चल पड़ी, तो लक्ष्मण ने उसे रोकते हुए पूछा कि तुम्हारे रेत के कुछ कणों से क्या होगा?

इस पर गिलहरी ने उत्तर दिया कि आप सत्य कह रहे हैं। मेरे रेत के कुछ कणों से कुछ नहीं होगा, परन्तु मैं अपने सामर्थ्य के अनुसार जो योगदान दे सकती हूं, दे रही हूं। मेरे कार्य का कोई मूल्यांकन नहीं, परन्तु इससे मेरे मन को संतुष्टि प्राप्त हो रही है कि मैं अपनी योग्यता एवं सामर्थ्य के अनुसार अपना योगदान दे रही हूं। मेरे लिए यही पर्याप्त है, क्योंकि यह राष्ट्र का कार्य है एवं धर्म का कार्य है।

गिलहरी का यह प्रसंग सदैव से ही प्रासंगिक रहा है, क्योंकि इससे यह प्रेरणा मिलती है कि प्रत्येक मनुष्य को अपने सामर्थ्य के अनुसार जनहित एवं राष्ट्र हित में कार्य करना चाहिए।

नेतृत्व क्षमता

श्रीराम एक लोक नायक थे। उनमें नेतृत्व की अपार क्षमता थी। उन्होंने समुद्र में पत्थरों से सेतु का निर्माण करवाया, जिसे राम सेतु कहा जाता है। सीताहरण के पश्चात उन्होंने वानरों की सेना के माध्यम से लंका पर चढ़ाई कर दी। एक ओर लंका नरेश रावण की बलशाली राक्षसों की शक्तिशाली सेना थी, तो दूसरी ओर निर्बल वानरों की छोटी सी सेना। किन्तु श्रीराम के पास सत्य की शक्ति थी और वानर सेना का उनके प्रति अटूट प्रेम, श्रद्धा एवं विश्वास था। इस सत्य एवं श्रद्धा के बल पर उन्होंने लंका पर विजय प्राप्त की। वे अपने मित्रों एवं साथियों को आदर एवं सम्मान देते थे। उन्होंने अपने मित्र निषादराज, सुग्रीव, हनुमान, केवट, जामवंत एवं विभीषण आदि को समय-समय पर नेतृत्व करने के अवसर प्रदान किए तथा उनकी हृदय से सराहना भी की।

मातृभूमि से प्रेम

लंका पर विजय प्राप्त करने के पश्चात श्रीराम ने लंका का राज्य रावण के भाई विभीषण को सौंप दिया तथा अयोध्या लौटने का निर्णय किया। इस पर लक्ष्मण ने कहा कि लंका में स्वर्गीय सुख है। लंका स्वर्णमयी है। अयोध्या में क्या रखा है? इस पर श्रीराम ने कहा-

अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।। (वाल्मीकि रामायण)

अर्थात यद्यपि यह लंका स्वर्ण से निर्मित है, फिर भी इसमें मेरी कोई रुचि नहीं है, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान है।

श्रीराम ने स्वयं को एक लोकनायक के रूप में ही प्रस्तुत किया। इसलिए वह कभी स्वाभाविक जीवन व्यतीत नहीं कर पाए। उनका बाल्यकाल शिक्षा ग्रहण करते हुए गुरुकुल में व्यतीत हुआ। गुरुकुल में वह राजकुमारों की भांति नहीं रहे, अपितु उन्हें अन्य बालकों की भांति ही अपने सारे कार्य स्वयं करने पड़ते थे। इसके अतिरिक्त में वह अपने सहपाठियों के साथ कंद-मूल एवं लकड़ियां एकत्रित करने वन भी जाते थे। इस प्रकार उनका बाल्यकाल सुख-समृद्धि में व्यतीत नहीं हुआ। युवा होने पर जब उन्हें राज्य का संपूर्ण दायित्व सौंपने का निर्णय लिया गया एवं उनके राज्यभिषेक की तैयारियां होने लगीं, तो उन्हें अकस्मात चौदह वर्ष के लिए वनवास जाना पड़ा। उन्होंने वनवास की समयावधि में भी अनेक कष्टों का सामना किया। जब रावण ने उनकी पत्नी सीता का हरण कर लिया, तो उन्हें पत्नी के वियोग में एवं उनकी खोज में वन-वन भटकना पड़ा। एक साहसी शत्रु से सामना करने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं था। उन्हें वानर राज सुग्रीव की सहायता प्राप्त हुई, परन्तु इससे पूर्व उन्हें बाली का वध करके सुग्रीव को राजा बनाना पड़ा। इस समयावधि में उन्हें अनेक कष्ट एवं आरोपों का सामना करना पड़ा।

एक राजा के रूप में भी श्रीराम ने स्वयं को लोकनायक ही सिद्ध किया। उन्होंने लोकनायक के रूप में शासन किया। वह राजा थे। वह चाहते तो निरंकुश होकर निर्णय ले सकते थे, परन्तु उन्होंने लोकनायक के रूप में आदर्श स्थापित किया। उनके राज्य में सबको अभिव्यक्ति का अधिकार था। जब धोबी ने माता सीता के चरित्र पर प्रश्न चिन्ह लगाया, तो श्रीराम ने सीता का त्याग कर दिया। महाकवि भवभूति उत्तररामचरित में कहते हैं-

स्नेहं दयां च सौख्यं च, यदि वा जानकीमपि।
आराधनाय लोकस्य मुञ्चतो, नास्ति में व्यथा।।

अर्थात देश व समाज की सेवा के लिए स्नेह, दया, मित्रता यहां तक कि धर्मपत्नी को छोड़ने में भी मुझे कोई पीड़ा नहीं होगी।

माता सीता एक बार पुनः वनवास के लिए चली गईं। इसके पश्चात श्रीराम ने भी राजसी जीवन का त्याग कर दिया। वह एक वनवासी की भांति जीवन व्यतीत करने लगे। वह भूमि पर चटाई बिछाकर सोते तथा कंद-मूल खाते। वह अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम करते थे, इसलिए उन्होंने दूसरा विवाह नहीं किया। उस समय राजा अनेक विवाह करते थे, परन्तु श्रीराम पत्नीव्रता रहे।

श्रीराम ने एक पुत्र के रूप में, भाई के रूप में, पति के रूप में, मित्र के रूप में तथा राजा के रूप में समाज के लिए आदर्श स्थापित किया। उन्होंने प्रेम, भाईचारे, त्याग एवं समर्पण का संदेश दिया। वर्तमान युग में जब स्वार्थ बढ़ गया है तथा संबंध स्वार्थ सिद्धि तक ही सीमित होकर रह गए हैं, ऐसे में लोकनायक राम एक आदर्श बनकर सामने आते हैं।

(लेखक – लखनऊ विश्वविद्यालय में एसोसीएट प्रोफेसर है)

वित्तीय वर्ष 2024 में भारत की आर्थिक विकास दर का सही आंकलन नहीं कर पा रहे हैं विदेशी वित्तीय संस्थान

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वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद के बारे में विदेशी वित्तीय संस्थान अभी भी व्यावहारिक रूख नहीं अपना पा रहे हैं। विभिन्न वित्तीय संस्थानों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत की आर्थिक विकास दर 6 से 6.5 प्रतिशत रह सकती है। जबकि वित्तीय वर्ष 2023-24 की प्रथम तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 7.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है और द्वितीय तिमाही में 7.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। आगामी दो तिमाही में भारत की आर्थिक विकास दर यदि 5.5 प्रतिशत भी रहती है तो यह पूरे वित्तीय वर्ष के लिये 6.5 प्रतिशत से ऊपर रहने वाली है। परंतु, केंद्र सरकार एवं कुछ राज्य सरकारों द्वारा किए जा रहे पूंजीगत खर्चों, ग्रामीण इलाकों के बढ़ रही उत्पादों की मांग, विभिन्न कम्पनियों की लगातार बढ़ रही लाभप्रदता, वस्तु एवं सेवा कर संग्रहण एवं प्रत्यक्ष कर संग्रहण में वृद्धि दर को देखते हुए इस बात की प्रबल सम्भावना है कि आगामी दो तिमाही में भारत की विकास दर निश्चित रूप से 5.5 प्रतिशत से अधिक रहने वाली है। इस प्रकार वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत की आर्थिक विकास दर 7 प्रतिशत से ऊपर रहने की प्रबल संभावनाएं बनती दिखाई दे रही हैं।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक के अनुमानों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 6.3 प्रतिशत की वृद्धि दर रह सकती है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इकरा के अनुसार यह 6.5 प्रतिशत, एशिया विकास बैंक एवं बार्कलेस एवं प्राइस वॉटर कूपर्स के अनुसार यह 6.7 प्रतिशत, डेलाईट इंडिया द्वारा यह 7 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। इसके विपरीत विभिन्न भारतीय वित्तीय संस्थान भारत की विकास दर के बारे में लगातार अपने अनुमानों को सुधारते हुए इसे पूरे वित्तीय वर्ष के लिए 7 प्रतिशत से अधिक बता रहे हैं। आर्थिक अनुसंधान विभाग, भारतीय स्टेट बैंक द्वारा वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत की आर्थिक विकास दर 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है, भारतीय रिजर्व बैंक ने भी इसके 7 प्रतिशत से अधिक रहने की सम्भावना जताई है तथा अभी हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकीय संस्थान द्वारा इसके 7.3 प्रतिशत रहने की सम्भावना जताई गई है।

दरअसल, अभी हाल ही के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था के बहुत तेजी से डिजिटलीकरण हुआ है। प्रत्यक्ष सुविधा हस्तांतरण योजना (डीबीटी) के अंतर्गत भारतीय नागरिकों के 50 करोड़ से अधिक जमा खाते विभिन्न बैकों में खोले गए हैं। इन जमा खातों के खुलने से भारत के इन नागरिकों का वित्तीय रिकार्ड बनता जा रहा है। उदाहरण के लिए, एक चाय वाला यदि दिन भर में चाय के 200 कप, 10 रुपए प्रति कप की दर से बेचता है तो वह दिन भर में 2000 रुपए की आय का अर्जन कर लेता है। भारत में लगातार बढ़ रहे डिजिटलीकरण के चलते वह दुकानदार अपने ग्राहकों से चाय के एवज में नकद रोकड़ राशि न लेकर अपने खाते में सीधे यह राशि जमा कराता है। उसके बैंक खाते में प्रति माह 60,000 रुपए की राशि जमा हो जाती है एवं पूरे वर्ष भर में 720,000 रुपए की उसके बैंक खाते में जमा हो जाती है। इससे, उस दुकानदार का क्रेडिट रिकार्ड बनता जा रहा है। एक चाय वाला दुकानदार यदि साल भर में 720,000 रुपए की बिक्री कर लेता है तो उसके इस रिकार्ड को बैंक द्वारा अच्छा रिकार्ड मानते हुए उसे ऋण प्रदान करने हेतु पात्र ग्राहक मानते हुए उसके व्यापार को और आगे बढ़ाने के उद्देश्य से आसानी से उस दुकानदार को ऋण प्रदान कर दिया जाता है। इस प्रकार, कई सूक्ष्म आकार के व्यवसायी लघु एवं मध्यम आकार के व्यवसायी बनते जा रहे हैं। छोटे छोटे व्यापारियों के व्यवसाय का आकार बढ़ने के कारण यह व्यवसायी रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित करने में सफल हो रहे हैं।

दूसरे, भारत में धार्मिक पर्यटन में जबरदस्त उच्छाल देखने में आ रहा है। वाराणसी में भगवान शिव का कोरिडोर बनने के बाद से वाराणसी में 7 करोड़ से अधिक श्रद्धालु प्रभु शिव के दर्शन करने हेतु पहुंचे हैं। इसी प्रकार उज्जैन में महाकाल लोक के बनने के बाद से उज्जैन नगर में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या कई गुणा बढ़ गई है। गुजरात में सरदार वल्लभ भाई पटेल की आदम कद भव्य प्रतिमा स्थापित होने के बाद से उस स्थल पर प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में पर्यटक पहुंच रहे हैं। इसी प्रकार, हरिद्वार, वृंदावन, तिरुपति बालाजी, वैष्णो देवी आदि धार्मिक स्थलों के दर्शन करने हेतु करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु प्रतिवर्ष इन स्थलों पर धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से पहुंचते हैं। अभी हाल ही में अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह एवं लक्षद्वीप को भी पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जा रहा है। इससे न केवल भारत से बल्कि विदेशों से भी पर्यटकों की संख्या में अपार वृद्धि होने जा रही है। किसी भी देश में पर्यटन के बढ़ने से छोटे छोटे व्यवसाय, होटेल एवं परिवहन आदि जैसे क्षेत्रों में कार्य करने वाले व्यापारियों के व्यवसाय में अपार वृद्धि होती है एवं इन क्षेत्रों में रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित होते हैं। इससे भी देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि होती है।

तीसरे, यह भी केवल भारत की ही विशेषता है कि विभिन त्यौहारों एवं शादी जैसे समारोहों पर भारतीय नागरिक दिल खोलकर पैसा खर्च करते हैं। इससे त्यौहारों एवं शादी के मौसम में व्यापार के विभिन्न क्षेत्रों में व्यापार में अतुलनीय वृद्धि दृष्टिगोचर होती है। जैसे दीपावली त्यौहार के समय भारत में नागरिकों के बीच विभिन्न नए उत्पादों की खरीद के लिए जैसे आपस में होड़ सी लग जाती है। भारत में लाखों करोड़ रुपए का व्यापार दीपावली त्यौहार के समय में होता है। इसी प्रकार की स्थिति शादियों के मौसम में भी पाई जाती है।

संभवत: विदेशी वित्तीय संस्थान भारत में हो रहे इस तरह के उक्त वर्णित परिवर्तनों को समझ नहीं पा रहे हैं एवं केवल पारंपरिक विधि से ही सकल घरेलू उत्पाद को आंकने का प्रयास कर रहे हैं। इसलिए भारत की विकास दर के संबंच में विभिन्न विदेशी संस्थानों के अनुमान गलत साबित हो रहे हैं।

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