बेतिया । चंपारण में महात्मा गांधी के पड़पोते तुषार गांधी को एक सभा से बाहर कर दिया गया, जब कार्यक्रम के दौरान उनके साथ आए वक्ता ने महागठबंधन को वोट देने की अपील की। इस बात ने आयोजकों में शामिल मुखिया विनय सिंह को निराश किया। उनके साथ मौजूद ग्रामीणों को भी यह बात पसंद नहीं आई। विनय सिंह ने तुषार गांधी को सभा के बीच में ही कहा — ”आप गांधी जी के नाम को ढो रहे हैं, यह गांधीवाद नहीं है। आपको शर्म आनी चाहिए। आप गांधी जी के वंशज नहीं हो सकते।”
महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी इन दिनों बिहार यात्रा पर हैं। अपनी बिहार यात्रा की शुरुआत उन्होंने भितिहरवा (चंपारण) से की है। वे पूर्वी चंपारण (मोतिहारी) पहुंचने के रास्ते में थे। स्वाभाविक रूप से इस यात्रा में वे उन जगहों से गुजरना चाहते थे, जहां चम्पारण सत्याग्रह के दौरान गांधी गए थे। इस क्रम में तुषार गांधी अपने साथियों के साथ तुरकौलिया पहुंचे। वहां से उन्हें जसौली पट्टी जाना था। तुरकौलिया वह जगह है जहां निलहे अंग्रेज जमींदार चंपारण के किसानों को खुलेआम एक नीम के पेड़ से टांग देते थे। नीम का वह पेड़ आज भी तुरकैलिया में खड़ा बताया जाता है।
तुषार गांधी ने वहां गांधी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। चम्पारण के समाज ने उनका स्वागत महात्मा गांधी के प्रपौत्र के रूप में किया। इसीलिए उनके संवाद की व्यवस्था ग्राम कचहरी परिसर में रखी गई थी। इस तरह सभी ग्राम कचहरी गए और संवाद शुरू हुआ लेकिन इस बात से चंपारण वाले बेहद निराश हुए कि जिसे उन्होंने मंच और सम्मान गांधी का प्रपौत्र समझ कर दिया था, वह तो चंपारण में इंडि गठबंधन का प्रचारक बन कर आया था। वह गांधी की बात नहीं बल्कि चुनाव प्रचार कर रहा था। गांधीजी के लिए असीम प्रेम लिए इकट्ठे हुए लोगों को तुषार ने अपना चुनावी दीमक वाला रूप दिखाकर निराश किया।
क्या था मामला
चंपारण के लोगों ने तुषार का स्वागत गांधीजी के प्रपौत्र के रूप में किया। आयोजक को यह बात पसंद नहीं आई कि वे गांधीजी के नाम पर आकर वहां तेजस्वी यादव और राहुल गांधी का प्रचार करने लगे। स्थानीय आयोजक का वीडियो वायरल है, जिसमें वे तुषार गांधी से कहते हुए दिखाई दे रहे हैं, नीतीश कुमार की सरकार बहुत अच्छी है और आप कह रहे हैं कि बहुत खराब है। मोदी सरकार बहुत अच्छी, उनकी सरकार में गरीबों का कल्याण हुआ है। स्थानीय आयोजक अपना अनुभव बता रहा है और उसने तुषार गांधी को गंदी राजनीति के लिए रगेद दिया। उनका सारा सम्मान गांधीजी के प्रपौत्र होने के लिए था। तेजस्वी यादव और राहुल गांधी का एजेन्ट बनकर आए व्यक्ति को चंपारण के लोग क्यों सम्मान देंगे? तुषार समाज से इस प्रतिक्रिया के लिए तैयार नहीं थे। उन्हें उलटे कदम बिना अपना झूठ फैलाए वापस लौटना पड़ा।
गांधी के प्रपौत्र का विरोध नहीं हुआ
यहां समझने वाली बात यह है कि चम्पारण में गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी का विरोध नहीं हुआ है। वहाँ महागठबंधन के लिए वोट माँग रहे तुषार गांधी का विरोध हुआ। ये मामला राजनीतिक विरोध का है, गांधी विरोध का नहीं। तुषार अगर महागठबंधन के लिए वोट माँगेंगे तो उनके गांधीवाद पर सवाल खड़ा तो होगा।
तुषार समर्थकों में तकलीफ किस बात की
बिहार राज्य चुनाव 2025: भारत निर्वाचन आयोग राज्य चुनावों से पहले बिहार मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण कर रहा है। इस मामले में तुषार जिन लोगों की पैरवी चंपारण में कर रहे थे, उनकी सारी चालें पीट चुकी हैं। उन्होंने न्यायालय से लेकर जनता की अदालत तक में मुंह की खाई है। अब तक अस्सी फीसदी फॉर्म भरे जा चुके हैं। ऐसी स्थिति में वे बौखला गए हैं।
चंपारण में तो एक साधारण गाँव के प्रधान ने गठबंधन की राजनीति की हवा निकाल कर रख दी है। गांधी के प्रपौत्र को वे बिहार चुनाव की शतरंज पर इंडि गठबंधन का प्यादा बनाकर पेश करना चाहते थे लेकिन गांधी के वेश में बिहार में घूम रहे राहुल और तेजस्वी के दूत को चंपारण के एक गांव के प्रधान ने पहचान लिया और उन्हें ससम्मान उलटे पांव लौटने को मजबूर कर दिया। इस फजीहत से तुषार गांधी कम और जिनके हाथों वे कटपुतली बने चंपारण में घूम रहे थे, वह गिरोह अधिक आहत है।
फजीहत का असर
तुषार गांधी को फजीहत होने के बाद अपना एजेंडा बिहार में साफ करना पड़ा। उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर लिख दिया है कि वे बिहार में राजनीतिक यात्रा पर हैं। जिसका नाम है, बदलो बिहार, बनाओं नई सरकार। थोड़ा और स्पष्ट करेंगे तो लिखना पड़ेगा कि तेजस्वी यादव की सरकार।
पार्टी वर्कर बनकर तुषार, आएं हैं बिहार
तुषार गांधी के संबंध में सोशल मीडिया पर लोग लिख और बोल रहे हैं कि वे बिहार में राजद और कांग्रेस के टूलकिट बनकर घूम रहे हैं। उनकी महिलाओं को लेकर सोच निन्दनीय है। जिसकी सोशल मीडिया पर खूब आलोचना हुई है। तुषार को समझना चाहिए कि गांधी का प्रपौत्र होने भर से कोई गांधीजी का किरदार हासिल नहीं कर लेता। यदि वे राजनीतिक दल के कल पूर्जे बनकर बिहार में घूमेंगे तो उन्हें एक्टिविस्ट नहीं पार्टी वर्कर समझ कर ही लोग मिलेंगे। उनकी बिहार की इस राजनीतिक यात्रा में उन्हें गांधीजी के प्रपौत्र होने की वजह से सम्मान मिलेगा यह मुश्किल है। राजद और कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता उन्हें अपनी पार्टी का आदमी होने की वजह से थोड़ा सम्मान दे दें तो बात अलग है।