गौमुख ग्लेशियर के निकट दो लाख से अधिक देवदार के पेड़ों पर संकट-सुरेश भाई

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12 हजार करोड़ रुपये की 889 किमी लम्बी चार धाम सड़क चौड़ीकरण परियोजना के अन्तर्गत 10-24 मीटर तक सड़क चौड़ी करने से अब तक दो लाख से अधिक छोटे-बड़े पेड़-पौधों को काटा जा चुका है। यह केन्द्र सरकार की महत्वकांक्षी परियोजना है।

मध्य हिमालय में स्थित उत्तराखण्ड के गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ और पिथौरागढ़ तक जाने वाली सड़क को चौड़ा करने के लिये सन् 2016 से काम चल रहा है। सर्वविदित है कि यहाँ के ऊँचे-नीचे पर्वत, नदी -घाटियाँ बाढ़, भूस्खलन, भूकम्प के लिये अत्यंत संवेदनशील हैं। यहाँ की भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी, यमुना आदि नदियों का जल हिमनदों और इसमें मिलने वाली छोटी नदियों, झरनों पर आधारित है। इन्हीं नदियों के किनारों से होकर चार धाम के लिये पहले से ही 4-6 मीटर चौड़ी डामर वाली सड़क मौजूद हैं। अब इसे 10-24 मीटर तक चौड़ा करने से संवेदनशील खड़े पहाड़ों की चट्टानों को काटकर टनों मिट्टी मलवे के रूप में चौड़ीकरण के दौरान सीधे गंगा और इसकी सहायक नदियों में उड़ेला गया है। इस निर्माण कार्य में भारी विस्फोटों और जेसीबी मशीनों के प्रयोग से पहाड़ अस्थिर और संवेदनशील बन गये हैं। चार धाम सड़क मार्ग पर बने दर्जनों डेंजर जोन इसका उदाहरण हैं, जहाँ पर वर्षात् के समय आवाजाही संकट में पड़ जाती है। केदारनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग 2013 की आपदा के बाद सुरंग आधारित परियोजनाओं और सड़क चौड़ीकरण में प्रयोग किए गए विस्फोटों और काटे गए लाखों पेड़ों के बाद बहुत नासूर हो गया है।

इस भारी निर्माण के कारण पहाड़ों की उपजाऊ मिट्टी बर्बाद हुई है। अनेक जलस्रोत सूख गये हैं। जहाँ सड़कों के किनारे पर तीर्थयात्रियों को ठंडा जल मिल जाता था अब वहाँ सीमेंटेड दीवारें खड़ी हो गई हैं। यहाँ की अनेक छोटी-छोटी बस्तियां, ग्रामीण बाजार जहाँ पर लोगों की आजीविका के अनेक साधन जैसे होटल, ढाबे, दुकान आदि प्रभावित हुये हैं। कृषि भूमि और चारागाह समाप्त हुये हैं। इस बर्बादी का कारण है कि यहाँ की संवेदनशील हिमालयी भौगोलिक संरचना के अनुसार जहाँ केवल 7-8 मीटर चौड़ी सड़क बन सकती थी, वहाँ 10-24 मीटर तक चौड़ीकरण का कार्य किया जा रहा है। जिसने पहाड़ की जड़ें हिला कर रख दी हैं। चार धाम सड़क चौड़ीकरण का विरोध गढ़वाल और कुमांऊ दोनों क्षेत्र में हुआ है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाई पॉवर कमेटी का गठन भी किया गया था, जिसकी सिफारिशें हाशिये पर चली गई हैं।

ऑलवेदर के नाम से विख्यात इस चार धाम सड़क का कार्य अभी उत्तरकाशी से गंगोत्री के बीच लगभग 95 किमी में ही बाकी बचा हुआ है, जिसे गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग कहते हैं। जिसपर देवदार जैसे दुर्लभ प्रजाति के पेड़ों को काटा जाना है, जिन पर निशान लगे हुये हैं। वन विभाग ने लगभग 6500 बड़े पेड़ों पर निशान लगाये हैं, लेकिन इसके बीच में असंख्य छोटे-छोटे पेड़ों व जैव विविधता को गिनती से हटा दिया है, जिसके कारण यहाँ पर 2 लाख से अधिक देवदार और अन्य प्रजातियों के छोटे-बड़े पेड़ -पौधों को नुकसान पहुँचाने की तैयारी चल रही है। यहां सबसे अधिक देवदार के पेड़ सुक्खी बैंड से सीधे झाला, जांगला, गंगोत्री तक कटेंगे, जिसकी लम्बाई लगभग 20 किमी है।

इस जंगल को बचाने का विकल्प भी शासन- प्रशासन को रक्षा सूत्र आंदोलन की टीम द्वारा दिया गया है। यदि सरकार यहाँ के सामरिक महत्व के साथ संवेदनशील पर्यावरण की रक्षा के लिये भी ध्यान दें तो यहाँ पर देवदार के वनों को बचाने के लिये जसपुर से पुराली, हर्षिल, बगोरी, मुखवा (गंगा का गाँव) से जॉंगला तक नयी सड़क बनायी जा सकती है। जहॉ पर बहुत ही न्यूनतम पेड़ों की क्षति होगी। और नये गाँव भी सड़क से जुड़ जायेंगे। संसद में केबिनेट मन्त्री नितिन गडकरी जी ने कहा है कि वे मार्ग निर्माण में आने वाले पौधों को रिप्लाण्ट करेंगे जो देवदार के पेड़ों के लिए संभव नहीं है। यदि गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित झाला से जांगला तक सड़क की चौड़ाई 7 मीटर तक रखी जाए तो गंगोत्री जाने वाली गाड़ी धराली होते हुये जा सकती हैं, और वापस आने के लिये जांगला से मुखवा, हर्षिल, बगोरी, जसपुर से सुखी होते हुये उत्तरकाशी पहुॅचा जा सकता है। इस तरह गंगोत्री के बचे- खुचे इन हरे देवदार के छोडे-बडे लाखों पेड़ो को बचाया जा सकता है। क्योंकि घने जंगल के बीच 24-30 मीटर की चौडाई में पेड़ों की अन्धाधुन्ध कटाई करने से भागीरथी संवेदनशील जोन को असीमित नुकसान की संभावना है।

उत्तरकाशी के जिलाधिकारियों ने पिछले 8- 9 वर्षों से इस समस्या को भली भांति देखा है। लेकिन यह केन्द्र व राज्य सरकार की इच्छा पर ही निर्भर करता है। जबकि स्थानीय स्तर पर मुखवा गॉॅव की ग्राम प्रधान शिवकला देवी के अलावा अन्य लोगों ने भी गंगोत्री के देवदार के हरे पेड़ों को बचाने के लिये नितिन गडकरी जी को पत्र लिखा है। उत्तराखंड आंदोलन की नेता पुष्पा चौहान, नागेंद्र दत्त जगूड़ी, बसंती नेगी आदि लोग भी इसका विरोध करने के लिए सड़कों पर आए हैं। लोगों ने यहां पेड़ों को बचाने के लिए रक्षा सूत्र बांधे हैं।

उत्तरकाशी में ऑलवेदर चारधाम सड़क संधर्ष समिति द्वारा तेखला बाई पास से प्रस्तावित नयी सड़क के निर्माण का विरोध भी किया है। जो इसलिए जायज है कि पहले से ही निर्मित सड़क पर लोगों की अनेकों व्यावसायिक गतिविधियों है, जिन्हें बचाना पड़ रहा है।

यह क्षेत्र (भागीरथी जलागम) बहुत ही संवेदनशील है। जहॉ बाढ़, भूस्खलन, भूकम्प से भारी तबाही हो चुकी है। केंद्र की सरकार ने भी इसे इकोसेंसिटिव जोन के नाम से चिन्हित कर रखा है ।मनेरी भाली जल विद्युत परियोजना (90 मेगा) की टनल भी यहाँ से गुजर रही हैं जिसके ऊपर जामक आदि गाँव में सन् 1991 के भूकम्प से दर्जनों लोग मारे गये थे। इसलिए यहाँ पर बडे निर्माण कार्य जानलेवा साबित होंगें। इसलिये यह ध्यान रखा जाय कि यहाँ पर चल रहे बडे निर्माण कार्य सोच-समझकर करने की आवश्यकता है। निर्माण से निकल रहे मलवे के निस्तारण के लिये हरित निर्माण तकनीकि का उपयोग नहीं हो रहा है। वनों की अधिकतम क्षति रोकी जाय। लोगों की खेती-बाडी और आजीविका की वस्तुयें जैसे होटल, ढावे, दुकानों से चल रहे रोजगार समाप्त न हो। जिस सुखी गाँव ने 1962 के युद्ध के समय गंगोत्री तक सड़क मार्ग के लिए अपनी किसी योग्य जमीन सरकार को निशुल्क दान दी है, इस मौजूदा मार्ग से ऑलवेदर सड़क को यथावत रखते हुए गांव के नीचे से टनल का निर्माण न हो। क्योंकि यहां पर आशंका है कि जिस तरह से जोशीमठ में भू धंसाव हुआ है लोग उसे देख कर बहुत भयभीत भी हैं। 2010-13 तक लगातार यहां पर बहुत बड़े बाढ़ और भूस्खलन से अपार जन धन की हानि हुई है ।1991 में भूकंप से इस क्षेत्र के सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गंवायी है ।ऐसे क्षेत्र में बड़े निर्माण कार्य को सोच समझकर करना पड़ेगा। इसी राजमार्ग पर तेखला से सिरोर गॉव होते हुये हिना-मनेरी तक प्रस्तावित नयी सड़क यदि सुरंग बांध की टनल के ऊपर से बनती है तो यह क्षेत्र असुरक्षित हो सकता है। यहां हिमालय की बर्बादी को रोकने के लिए जरूरी है कि गंगा भागीरथी में असीमित मलवा न गिरें। इस प्रकार यहाँ के संवेदनशील पर्वतों को भारी छेड़छाड़ से बचाया जाए। मौजूदा सड़क मार्ग पर चल रहे रोजगार व व्यावसायिक गतिविधियों को मजबूती प्रदान की जाय। जिससे यहाँ के लोगों का पलायन रुकेगा और रोजगार भी चलेगा।
अंधाधुंध वनों के कटान से गंगा का उद्गम स्थल गोमुख ग्लेशियर पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। हिमालय में हो रही इस तरह की छेड़छाड़ के कारण ही भारी जल प्रलय देखा जा रहा है। जिसका प्रभाव गंगा के मैदान में करोड़ों लोगों की आबादी पर पड़ रहा है।

(आलेख वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत के सहयोग से प्राप्त हुआ)

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