5 अगस्त 2025 को, अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन लिमिटेड (APSEZ) ने घोषणा की कि गौतम अडानी ने कार्यकारी अध्यक्ष (एग्जीक्यूटिव चेयरमैन) के पद से इस्तीफा दे दिया है और अब वे गैर-कार्यकारी अध्यक्ष (नॉन-एग्जीक्यूटिव चेयरमैन) की भूमिका निभाएंगे। इस खबर ने न केवल व्यापारिक हलकों में हलचल मचाई, बल्कि कुछ लोग इसे नरेंद्र मोदी सरकार के लिए खतरे की घंटी के रूप में प्रचारित करने लगे। यह लेख गौतम अडानी के इस कदम, उनके संघर्ष, कारोबार और इस इस्तीफे के पीछे के तथ्यों को विस्तार से बताएगा।गौतम अडानी: एक साधारण शुरुआत से वैश्विक साम्राज्य तकगौतम अडानी का जन्म 1962 में गुजरात के अहमदाबाद में एक साधारण जैन परिवार में हुआ था। स्कूल के बाद उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई बीच में छोड़ दी और 19 साल की उम्र में मुंबई में हीरे के व्यापार में कदम रखा। 1988 में उन्होंने अडानी एंटरप्राइजेज की स्थापना की, जो शुरू में कृषि उत्पादों के निर्यात से शुरू हुई। उनके दूरदर्शी नेतृत्व और जोखिम उठाने की क्षमता ने उन्हें भारत के सबसे बड़े बुनियादी ढांचा समूह का नेतृत्व करने वाला बनाया। आज अडानी समूह का कारोबार बंदरगाह, ऊर्जा, रसद, रक्षा, डेटा सेंटर, और हरित हाइड्रोजन जैसे क्षेत्रों में फैला हुआ है। अडानी पोर्ट्स, जिसका बाजार पूंजीकरण 2.93 लाख करोड़ रुपये से अधिक है, भारत का सबसे बड़ा निजी बंदरगाह संचालक है, जो देश के 28% बंदरगाह कार्गो को संभालता है।
2025 की पहली तिमाही में अडानी पोर्ट्स ने 6.5% की वृद्धि के साथ 3,311 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ और 31% की वृद्धि के साथ 9,126 करोड़ रुपये की आय दर्ज की। यह प्रदर्शन दर्शाता है कि कंपनी मजबूत स्थिति में है। फिर भी, गौतम अडानी के कार्यकारी अध्यक्ष पद से हटने की खबर को कुछ लोग गलत संदर्भ में पेश कर रहे हैं।इस्तीफा: एक रणनीतिक कदम, न कि पतन का संकेतगौतम अडानी का कार्यकारी अध्यक्ष पद से हटना कोई अचानक या संकटग्रस्त निर्णय नहीं है। यह कदम कंपनी अधिनियम (सेक्शन 203, उप-धारा 3) के प्रावधानों के अनुपालन के लिए उठाया गया है, जो यह कहता है कि कोई भी व्यक्ति एक साथ दो कंपनियों में कार्यकारी भूमिका (जैसे कार्यकारी अध्यक्ष या प्रबंध निदेशक) नहीं निभा सकता। अडानी पोर्ट्स में पहले से ही दो कार्यकारी निदेशक हैं—प्रबंध निदेशक करण अडानी और पूर्णकालिक निदेशक व सीईओ अश्वनी गुप्ता। ऐसे में, गौतम अडानी का गैर-कार्यकारी अध्यक्ष बनना एक कानूनी और रणनीतिक कदम है, जिससे वे अडानी समूह की अन्य कंपनियों, विशेष रूप से अडानी एंटरप्राइजेज, पर अधिक ध्यान दे सकें।
अडानी एंटरप्राइजेज समूह की प्रमुख कंपनी है, जो हवाई अड्डों, डेटा सेंटर, और तांबे जैसे नए कारोबारों का आधार है। इसके अलावा, कंपनी ने मनीष केजरीवाल को गैर-कार्यकारी स्वतंत्र निदेशक के रूप में नियुक्त किया है, जो केदारा कैपिटल के संस्थापक हैं। यह नियुक्ति कंपनी के कॉरपोरेट गवर्नेंस को और मजबूत करने की दिशा में एक कदम है। गौतम अडानी का गैर-कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में बने रहना दर्शाता है कि वे कंपनी की रणनीतिक दिशा में अब भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, लेकिन दैनिक कार्यों से मुक्त होकर समूह की अन्य इकाइयों पर ध्यान दे सकेंगे।अफवाहों का बाजार और मोदी सरकार पर हमलाअडानी के इस कदम को कुछ लोग, विशेष रूप से विपक्षी नेता और सोशल मीडिया पर सक्रिय कुछ समूह, नरेंद्र मोदी सरकार के पतन से जोड़कर देख रहे हैं। यह कोई नई बात नहीं है। पिछले 11 सालों से, जब से नरेंद्र मोदी ने 2014 में भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला, कुछ लोग और समूह लगातार यह प्रचार करते रहे हैं कि उनकी सरकार अस्थिर है और जल्द ही गिर जाएगी। कांग्रेसी नेता पवन खेड़ा जैसे लोग समय-समय पर दावे करते रहे हैं कि “मोदी सरकार दो महीने में गिर जाएगी” या “छह महीने में इसका अंत होगा।” ये दावे न केवल आधारहीन हैं, बल्कि बार-बार गलत साबित हुए हैं।
मोदी सरकार ने 2014, 2019, और 2024 के लोकसभा चुनावों में स्पष्ट बहुमत हासिल किया। आर्थिक सुधारों, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, और स्वच्छ भारत जैसे कार्यक्रमों ने देश को नई दिशा दी। भारत की अर्थव्यवस्था आज दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, और 2030 तक इसके तीसरे स्थान पर पहुंचने की संभावना है। ऐसे में, अडानी के एक रणनीतिक कदम को सरकार के पतन से जोड़ना न केवल हास्यास्पद है, बल्कि यह दर्शाता है कि कुछ लोग तथ्यों से ज्यादा अफवाहों पर भरोसा करते हैं।अफवाह फैलाने वालों को करारा जवाबये वही लोग हैं जो पिछले एक दशक से सोशल मीडिया और यूट्यूब पर रोजाना नई कहानियां गढ़ते हैं। कभी वे दावा करते हैं कि अडानी और मोदी के बीच “साठगांठ” है, तो कभी कहते हैं कि अडानी का कोई भी कदम सरकार की अस्थिरता का संकेत है। इनका एकमात्र उद्देश्य भ्रम फैलाना और जनता को गुमराह करना है। हिंदनबर्ग रिसर्च जैसे विदेशी संगठनों की रिपोर्ट्स को आधार बनाकर ये लोग अडानी समूह और मोदी सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार करते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि अडानी समूह ने बार-बार इन आरोपों को खारिज किया है और कानूनी कार्रवाई की बात कही है।उदाहरण के लिए, हिंदनबर्ग ने 2023 में अडानी समूह पर धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे, जिसके बाद समूह के शेयरों में गिरावट आई थी। लेकिन अडानी समूह ने न केवल उस संकट से उबरकर अपनी स्थिति मजबूत की, बल्कि गौतम अडानी 2025 में फोर्ब्स की सूची में भारत के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति बन गए, जिनकी संपत्ति 60.3 बिलियन डॉलर है। यह दर्शाता है कि अडानी का कारोबार और नेतृत्व कितना मजबूत है। फिर भी, कुछ लोग उनके एक रणनीतिक कदम को उनके “अंत” के रूप में प्रचारित कर रहे हैं। यह उनकी नासमझी और पक्षपातपूर्ण सोच का परिचायक है।मोदी सरकार पर क्या फर्क पड़ता है?अडानी का इस्तीफा एक कॉरपोरेट निर्णय है, जिसका सरकार की स्थिरता से कोई लेना-देना नहीं है। मोदी सरकार की नीतियां और नेतृत्व देश की प्रगति पर केंद्रित हैं। अडानी समूह भारत के बुनियादी ढांचे, ऊर्जा, और रसद क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है, और यह योगदान गौतम अडानी की भूमिका बदलने से रुकने वाला नहीं है। उनके बेटे करण अडानी पहले से ही अडानी पोर्ट्स के प्रबंध निदेशक हैं और कंपनी के दैनिक कार्यों को संभाल रहे हैं। यह एक सुनियोजित उत्तराधिकार योजना का हिस्सा है, न कि किसी संकट का संकेत।
दूसरी ओर, जो लोग इसे मोदी सरकार के लिए खतरे की घंटी बता रहे हैं, वे वही लोग हैं जो 2014 से हर छोटी-बड़ी घटना को सरकार के खिलाफ इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं। चाहे वह नोटबंदी हो, जीएसटी हो, या कोविड-19 का प्रबंधन, हर बार इन्होंने कहा कि “मोदी सरकार गई।” लेकिन हर बार जनता ने इनके दावों को नकारा और मोदी सरकार को और मजबूत समर्थन दिया।अफवाहों का अंत, तथ्यों की जीतगौतम अडानी का कार्यकारी अध्यक्ष पद से हटना एक रणनीतिक और कानूनी कदम है, जो उनके कारोबारी साम्राज्य को और मजबूत करने की दिशा में उठाया गया है। इसे मोदी सरकार के पतन से जोड़ना न केवल मूर्खता है, बल्कि यह उन लोगों की हताशा को दर्शाता है जो पिछले 11 सालों से सरकार के खिलाफ आधारहीन कहानियां गढ़ रहे हैं। अडानी समूह की वृद्धि और भारत की आर्थिक प्रगति दोनों ही अटल हैं। अफवाह फैलाने वालों को यह समझना होगा कि तथ्यों के सामने उनकी कहानियां ज्यादा दिन नहीं चलतीं। गौतम अडानी का भविष्य उज्ज्वल है, और मोदी सरकार का किला अडिग है। जो लोग इस तरह की अफवाहें फैलाते हैं, उन्हें जनता का जवाब वक्त के साथ मिलता रहेगा।