घरवापसी हिन्दू समाज का नैसर्गिक स्वभाव, पुरखों के घर लौट चलो

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मुरारी शरण शुक्ल

दिल्ली । पतितपावन सीताराम कहने का अर्थ ही है कि पतितों को पावन करने की व्यवस्था सनातन परिपाटी में थी। अग्नि, जल, वायु वस्तुओं को पवित्र कर देते हैं, तो तप का मार्ग मनुष्य की कलुषता और दूषण को नष्ट कर देता है। धर्म का मार्ग शोधन की क्षमता से युक्त होता है, इसीलिए यह धर्म धारण करने में समक्ष होता है। प्राचीनकाल के मानव-शोधन के अनेक प्रसंग शास्त्रों में उपलब्ध हैं, किन्तु आधुनिक काल में प्रथम प्रसंग चाणक्य द्वारा अपनाया गया प्रतीत होता है। सेल्यूकस अपनी यवन सेना की पराजय के उपरान्त अरस्तू की मानस विषकन्या कार्नेलिया को निहित यवन जय के उद्देश्य से युद्धक भेंट के रूप में चन्द्रगुप्त को सौंपता है। चाणक्य कार्नेलिया समेत उसके साथ आई उसकी सभी सहेलियों और सेवकों का शुद्धीकरण करते हैं, फिर राज्य में स्वीकार करते हैं। उन्होंने अल्पप्रमाण में बौद्धों का भी शोधन किया, जो बाद के काल में कुमारिल भट्ट जैसों के लिए पथप्रदर्शक बना।

जिस दिन प्रथम हिन्दू मतान्तरित हुआ, उसी दिन से हिन्दू अपने मतान्तरित बन्धुओं को वापस हिन्दू धर्म में लाने को सतत प्रयत्नशील हैं। तब न आर्य समाज था, न हिन्दू महासभा थी, न आरएसएस था, न विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना हुई थी। जब कुमारिल भट्ट बौद्धों की हिन्दू धर्म में घर वापसी करा रहे थे, तब हिन्दू धर्म के उद्धार की पीड़ा से चीखती बनारस की बुजुर्ग महिला की हिन्दू बंधुओं के घर वापसी की करुण पुकार ही उनकी प्रेरणा थी। अर्थात् हमारा समाज तब भी घर वापसी को लेकर गम्भीर था। सामान्य नागरिक भी इन बातों को लेकर जागृत था। मार्ग ढूंढ रहा था।

आद्य शंकर के अभियानों के पीछे भी घर वापसी प्रमुख प्रेरणा थी। ईसा की द्वितीय, तृतीय शताब्दी से सन्तों द्वारा चलाए गए ग्रन्थ लेखन अभियान, ग्रन्थों का टीकाकरण अभियान, भक्ति जागरण अभियान मूलतः मतान्तरण रोकने और मतान्तरित हो चुके हिन्दुओं की घर वापसी के उपक्रम ही थे। ऋषि देवल सिन्ध में मुसलमान हो चुके हिन्दुओं की घर वापसी और मुसलामानों से अपवित्र हो चुके हिन्दुओं के शुद्धीकरण पर ग्रन्थ लिख रहे थे, तो हारीत मतान्तरण करने वालों को मुंहतोड़ प्रत्युत्तर देने के लिए बप्पा रावल को तैयार कर रहे थे। शस्त्र और शास्त्र, दोनों के मार्ग से निदान ढूंढा जा रहा था। यही सफलता दक्षिण में स्वामी विद्यारण्य भी प्राप्त करते हैं, जब मुसलमान हो चुके हरिहर और बुक्का को वापस हिन्दू बनाकर विजयनगर साम्राज्य की स्थापना करते हैं, जो यह कर्म उस सम्पूर्ण क्षेत्र में तीन सौ वर्षों तक मतान्तरण की संभावना समाप्त कर देता है।

मेघातिथि मनुस्मृति का भाष्य करते हुए आचार्य चाणक्य के विजय अभियानों के सूत्रों के तारतम्य मनु के प्रबन्धों से बैठाते हैं और घर वापसी का मार्ग हिन्दू समाज को बताते हैं। मलिन हो चुका हिन्दू, पतित हो चुका हिन्दू, अपवित्र हो चुका हिन्दू, म्लेच्छों के सन्सर्ग में आ चुका हिन्दू अनेक उपक्रमों से पवित्र हो सकता है। हिन्दू समाज ने पवित्रीकरण, शुद्धीकरण के अनेक मार्ग तलाश किए हैं, जिनके सहारे हिन्दुओं की घर वापसी सहज सम्भव है। हिन्दुओं की हर पूजा, कर्मकांड और साधना शुद्धीकरण के ही उपक्रम हैं, शुद्ध से शुद्धतम होते जाने के हेतु से। आधुनिक काल में स्वामी श्रद्धानन्द, सावरकर इत्यादि महापुरुषों ने भी इसका सत्यापन किया है। घर वापसी और शुद्धीकरण की तत्कालीन संकल्पना का ही प्रभाव था कि बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर अत्यन्त खिन्न होने के पश्चात् भी मुसलमान या ईसाई नहीं बने, बौद्ध धर्म अपनाया।

आयुर्वेद में मनुष्य की काया शुद्धि के न जाने कितने प्रकारों का वर्णन उपलब्ध है। आहार शुद्धि से काया शुद्धि तक की बात की गई है। कायाकल्प से लेकर कल्पवास तक का विवरण उपलब्ध है। उपवास और व्रत के अनेकानेक विवरण उपलब्ध हैं। चन्द्रायण व्रत से लेकर एकादशी तथा पूर्ण और अर्द्धदिवसीय उपवासों का भी विवरण उपलब्ध है। कफ, पित्त, वायु विकारों के शमन-शोधन, सप्तधातु और सप्तरसों के शोधन के प्रकार का भी विवरण है, तो नाड़ी शोधन की विधि का विवरण भी उपलब्ध है। मन की शुद्धि का विवरण तो शास्त्रों में भरा पड़ा है। मन की शुद्धि सभी पवित्रीकरण के प्रकारों में सर्वोत्तम माना गया है। कबीर ने भी संकेत किया है कि मन न रंगाये, रंगाये जोगी कपड़ा। पवित्रीकरण के बिना तो कोई यज्ञ या कर्मकांड आरम्भ ही नहीं होता। गंगाजल, पंचगव्य, शंखपानी, इत्यादि भी शुद्धीकरण के मार्ग हैं। तुलसी पत्ता भी संसर्ग मात्र से शुद्धि कर देता है। यज्ञ का धूम्र तो सहज शोधक है। तीर्थयात्रा और पवित्र नदियों में स्नान भी शुद्धीकरण के मार्ग हैं।

जल की शोधक क्षमता का वर्णन मिलता है। शंखपानी तो विवाह का महत्वपूर्ण शोधनकर्म है। उबटन और लेपन से भी शोधन होता है। अग्नि भी बहुत बड़ा शोधक है। अग्नि में दिव्य औषधियों को जलाकर उनका ताप और धूम्र लेने से भी सहज शोधन होता है। साधना के सभी प्रकार शोधन की ही विधियां हैं। वायु की शोधन क्षमता का व्यापक विमर्श साधना के क्रम में प्राणवायु के शोधन के अर्थ में किया जाता है। श्वास के साथ बीज मंत्रों का जप प्राण वायु को विस्तारित करता है, एक-एक चक्र खोलता है, कुंडलिनी जागृत करता है, ब्रह्मरंध्र का स्फोट करता है, सहस्त्रार भेदन करता है, तब कुछ भी शोधन शेष नहीं रहता। ध्वनि से भी शोधन होता है। शंकराचार्य ने बौद्ध धर्म में मतान्तरित हिन्दुओं को जिन विद्याओं की ओर प्रवृत्त होकर समाजिक कलुषित व दूषित होता हुआ देखा, तो शंखध्वनि से समाज के शुद्धीकरण का विधान प्रस्तुत किया। आद्य शंकर ने कहा कि जहां तक शंख ध्वनि जाएगी, वहां तक के हिन्दुओं का स्वतः शुद्धीकरण हो जाएगा। मंत्रध्वनि, शंखध्वनि, ढोल, नगाड़े, वाद्ययंत्रों व शास्त्रीय संगीत का स्वर, मंदिर के घन्टे का नाद, निनाद तथा प्रणव नाद में समान शोधन क्षमता है।

इतना सब कुछ जानने वाला हिन्दू समाज मतान्तरित बन्धुओं को कभी भी घर वापसी सहज रूप में कराने में सक्षम है। मनुष्य कभी अपवित्र होता नहीं और दुर्योगवश यदि अपवित्र हो ही गया, तो स्थाई अपवित्रता कभी आती नहीं। डीएनए तक के शोधन का विज्ञान भारत के शास्त्रों में उपलब्ध है। कोशिका-अणु-परमाणु स्तर तक का शोधन सम्भव है। ऐसे में हिन्दू बन्धु-भगिनी की घर वापसी किसी भी क्षण, कभी भी संभव है। हमने भूमि शोधन किया है, जल शुद्धि, वायु शुद्धि, प्रकृति शुद्धि, जीव शुद्धि, यहां तक कि ब्रह्म तक की शुद्धि का विधान हिन्दू जानता है।

आवश्यकता है ज्ञात बातों के तार जोड़ने की। उनके सम्यक सदुपयोग की। इन्हीं बातों को समझकर हिन्दू समाज ने आरम्भ से अब तक सदा शुद्धीकरण अभियान चलाया है और अपने हिन्दू बन्धुओं की घर वापसी का प्रयत्न किया है। प्रयत्न कालान्तर में विभ्रम के कारण धीमा हो गया था। किन्तु समय-समय पर सन्तों, विद्वानों ने मार्गदर्शन किया, घर वापसी सुनिश्चित की। आज आवश्यकता है व्यापक घर वापसी के अभियानों की। घर वापसी के सन्दर्भों की जागरूकता आवश्यक है। इसके मार्ग का व्यापक ज्ञान सर्व समाज को होना आवश्यक है। साधारणतः ये बातें सब ओर प्रसारित होने से समाज अपना हल स्वतः निकाल लेगा।

जो मुसलमान या ईसाई बन गए हैं, उनका शोधन कर उन्हें कभी भी हिन्दू समाज में वापस लाया जा सकता है। उनकी शुद्धि की प्रक्रिया बहुत सहज, सरल व सर्वसुलभ है। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के कालान्तर में मतान्तरित हो चुके ऐतिहासिक हिन्दू बंधुओं के व्यापक शुद्धीकरण की बात हिन्दू बन्धुओं को अब अवश्य सोचनी चाहिए।

पुरखों के बारे में जानने की जिज्ञासा आज पश्चिम एशिया और यूरोप के देशों में भी जागृत होने लगी है। उनकी यह जिज्ञासा उन्हें उनके सनातन मूल की ओर ले जा रही है। इससे कई देशों में ऑसम विदाउट अल्लाह और एथीस्ट होने, विदाउट फेथ, एक्स मुस्लिम इत्यादि के आन्दोलन चल पड़े हैं। नैसर्गिक धर्म का भान होते ही व्यक्ति सनातन धर्म की ओर मुड़ता है। बस आवश्यकता है सनातन मत के लोग अपनी धर्म धारणा के प्रति आग्रही बनें और अपनी विलक्षणताओं को जगत में प्रस्तुत करने की प्रयत्न श्रृंखला चलाएं। सबको सत्य-धर्म से अवगत कराकर आह्वान करें- आओ भारतवंशियों, पुरखों के घर लौट चलो। स्वधर्मे निधनं श्रेयः पर धर्मों भयावहः। पुरखों के धर्म में मरना भी श्रेष्ठकर्म है। अतः अपने पुरखों के धर्म में वापस आ जाओ।

(लेखक विश्व हिंदू के सहसम्पादक हैं)

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