अतुल कोठारी
तिरुवनंतपुरम : शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के समर्पित कार्यकर्ताओं का हार्दिक अभिनंदन, जिन्होंने अपने सामूहिक प्रयास और अथक पुरुषार्थ से न्यास की कार्यपद्धति को सजीव रूप प्रदान किया। आप सभी ने सर्वप्रथम ज्ञानोत्सव का आयोजन कर देश के विभिन्न राज्यों में शिक्षा की स्थिति का सूक्ष्म आकलन किया। इस सकारात्मक ऊर्जा के साथ आपने देश के चारों कोनों में शैक्षिक महाकुंभ का सफल आयोजन किया। यह शैक्षिक यात्रा आपके मानस में भारत की शिक्षा व्यवस्था का समग्र परिदृश्य अंकित करने में सहायक सिद्ध हुई।
इन यात्राओं के उपरांत, आपने इस अनुभव के सार को देशभर में प्रसारित करने के लिए प्रयागराज में ज्ञान महाकुंभ का मंथन स्वरूप आयोजन किया। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह समावेशी ज्ञान प्रतिमान आदि शंकराचार्य जी के जीवंत प्रयोगों से प्रेरित है। विश्व में ज्ञान के प्रसार का ऐसा अप्रतिम उदाहरण दुर्लभ है।
इसके पश्चात, आपने उस पवित्र स्थल पर ज्ञान सभा का आयोजन किया, जो आदि शंकराचार्य जी की जन्मस्थली है। वहां आपने शैक्षिक मंथन के माध्यम से उनके चरणों का स्मरण किया। उनके पदचिह्नों पर चलकर, उनके संघर्ष के एक अंश को जीवंत कर आपने उनके चरण-स्पर्श का सार्थक प्रयास किया।
न्यास की कार्यपद्धति इसी भावना का अनुसरण करती है। जब हम महापुरुषों के पदचिह्नों पर चलते हैं, उनके संघर्ष का एक छोटा हिस्सा जीते हैं, और फिर उनके चरणों का स्पर्श करते हैं, तभी हमारा यह प्रयास सार्थक होता है। परम पूज्य सरसंघचालक जी ने भी अपने वक्तव्य में स्पंदन सिद्धांत के माध्यम से इस भावना का समर्थन किया है। यही भारतीयता का मूल है—पहले अनुसरण, फिर संघर्ष, और अंत में चरण-स्पर्श। न्यास के कार्यकर्ताओं ने इस क्रम का अनुकरणीय पालन किया है।
मैं आप सभी कार्यकर्ताओं का पुनः हार्दिक अभिनंदन करता हूँ। आपके सामूहिक पुरुषार्थ ने मुझे भी इस पवित्र क्रम का हिस्सा बनने का अवसर प्रदान किया। सादर प्रणाम।