शिमला । भारत में लोकतंत्र की मजबूती, और स्थायित्व की प्रमुख वजह हमारा हंसमुख स्वभाव है। हम न कानून को सीरियसली लेते हैं, न ही अपने देवताओं को, नेताओं को तो सर्कस का जोकर मानते हैं। बाबाओं, गुरुओं, प्रवचन कर्ताओं ने हमारी जिंदगी को हास्यात्मक कवच से सुदृढ़ कर दिया है जिसकी वजह से इमरजेंसी की तानाशाही फेल हो गई, कोविड महामारी कन्फ्यूज्ड हो गई , ट्रंप के टैरिफ दिशा भ्रमित हो गए। न सरकार को पता है, न आंदोलन जीवियों को कैसे अपना भारत उपलब्धियों की बुलंदी छू रहा है। सबसे बड़ा मजाक बिहार चुनाव परिणाम आपके सामने हैं। जीतने वाले खिलाड़ी भी de code नहीं कर पा रहे हैं प्रशांत किशोर ने ये कौन सा एल्गोरिथम लिखा!
भारत में हंसी कोई साधारण चीज़ नहीं—यह राष्ट्रीय स्तर का स्टेबिलाइज़र है, ट्रिपल-डोज़ का वैक्सीन है जो किफायती तनाव-नाशक है, और लोकतंत्र का असली ‘Z+ सुरक्षा कवच’ है। 1.4 अरब लोगों वाला देश, जिसमें लोग गोलगप्पे की तीखेपन पर भी भीषण युद्ध छेड़ सकते हैं, वहाँ हर चुनाव, घोटाला और घमासान के बाद देश शांत कैसे रहता है?
सिंपल: क्योंकि यहां लोग नेता को लाठी से नहीं, LOL से मारते हैं। कभी पीलू मोदी, कभी राज नारायण, लालू यादव या राहुल भैया।
हम दुनिया का पहला देश हैं जिसने खोजा कि “Kill them with humour”। ये वास्तव में हथियारबंद टकराव से ज़्यादा असरदार है। यहाँ नेता का मज़ाक उड़ाओ, और पब्लिक का गुस्सा भाप बनकर उड़ जाता है।नेता मीम में बदल जाए, तो जनता पत्थर से नहीं, गुलगुली से लोट पोट हो जाती है।
जिस दिन राहुल गांधी पहली बार “पप्पू” हुए, कांग्रेस ने समझ लिया कि ट्रेन जलाने से अच्छा है टेम्पलेट जलाओ। और जनता को भी पता चल गया: “इतनी आसानी से गुस्सा निकल जाए? ये तो थेरेपी से भी सस्ता है!”
मोदी जी के 10-लाख वाले सूट ने अर्थव्यवस्था को भले न बढ़ाया हो,लेकिन मीम इंडस्ट्री का Sensex आसमान छू गया। उनके समर्थकों ने दंगे नहीं किए, बल्कि उन्हें भारतीय Met Gala का “Best Dressed Leader” अवार्ड दे दिया। दूर-दूर तक Photoshop फैक्ट्रियाँ चलने लगीं, देश में GDP से ज़्यादा GIF बनने लगे।
उधर मफलर धारी केजरीवाल की खांसी अब दिल्ली का बैकग्राउंड म्यूज़िक है। लोग कहते हैं: “सर, आपका खांसना भी जनता से कनेक्शन बढ़ाता है, WiFi से तेज़।”
यह है असली सर्जिकल नहीं सेटआयरिकल स्ट्राइक, गुस्से पर! हमारे कार्टूनिस्ट, मीम-मास्टर्स और स्टैंड-अप आर्टिस्ट असल में लोकतंत्र के ICU डॉक्टर हैं। गुस्सा बढ़े तो तुरंत पंचलाइन की IV drip लगा देते हैं। दिमाग गरम हो तो ठंडा कम्प्रेस मीम लगा देते हैं।
और अगर जनता उबल रही हो, तो एक तगड़ा व्यंग्य का इंजेक्शन सीधे नस में। UN के शांति सैनिकों को बुलाने की ज़रूरत नहीं, एक सही समय पर डाला गया वॉट्सऐप फॉरवर्ड दंगे रोक सकता है।
अगर देश का तापमान सच में कम करना है, तो AC से नही, ह्यूमर से होगा। स्कूलों में “Advanced Sarcasm 101”, कॉलेजों में “लोकतांत्रिक Mimicry Lab”, और सरकारी बजट में “National Meme Mission” जरूरी है।
सरकार को अपने सटायरिकल कलाकारों को रणनीतिक संपत्ति की तरह बचाना चाहिए, जैसे एटॉमिक वैज्ञानिक होते हैं, वैसे ही ये “बम के बिना बम” वाले कलाकार होते हैं।
और हाँ, “hurt sentiments” वाला कानून थोड़ा आराम दे, वरना देश का सबसे उपयोगी उद्योग: हँसी-व्यंग्य, बार-बार बंद हो जाएगा।
भारत का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक करिश्मा : हम दुनिया को ये साबित कर चुके हैं कि यहाँ आप एक नेता को दिन में सौ बार roast कर सकते हैं, और दूसरे दिन भी देश सलामत उठता है। क्योंकि हमारा नियम सरल है,
जोक मारो, रोस्ट करो, फ्राई मत करो।
मेम बनाओ, मोर्चा नहीं।
The Humour Times, व्यंग्यकार, कार्टूनिस्ट और मीम आर्टिस्ट, न सिर्फ़ मनोरंजन करते हैं, वे लोकतंत्र का ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रखते हैं। टकराहट होने वाली हो, तो ये हंसी का हैंडब्रेक खींच देते हैं। और इसलिए लिख लो, छाप लो, फ्रेम कर लो, पंचलाइन तलवार से तेज़ होती है,व्यंग्य लाठी से भारी होता है,और ह्यूमर बम से ज्यादा धमाकेदार।



