हिन्दू समाज के परिष्कार के लिये हुई विहिप की स्थापना

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अम्बरीष

दिल्ली । विश्व हिन्दू परिषद अपनी जीवन यात्रा के 61 वर्ष पूर्ण कर रहा है। भगवान श्रीकृष्ण के प्राकट्य दिवस पर परिषद् की स्थापना एक दैवी संयोग ही है,श्रीकृष्ण के अवतार के कालखण्ड में देश की परिस्थिति और परिषद के स्थापना के समय देश की स्थिति में अनूठा साम्य दिखता है। 61 वर्ष की गौरवशाली यात्रा के कुछ अविस्मरणीय और अनूठे पड़ाव हैं,कुछ को पढ़ा है, कुछ को बड़ों से सुना है और कुछ का तो स्वयं मैं प्रत्यक्षदर्शी हूं। स्थापना काल के समय कैसा मनोहारी रहा होगा वह दृश्य ? स्वामी चिन्मयानन्द जी के आश्रम संदीपनी साधनालय मुंबई में,विश्व भर के हिन्दुओं की दिशा और दशा के चिंतन हेतु एकत्रित देश के लब्धप्रतिष्ठित महानुभाव स्वामी चिन्मयानन्द जी, संघ के द्वितीय सरसंघचालक पूज्य श्री गुरूजी, श्री के.एम्. मुनशी , मास्टर तारा सिंह,पूज्य कुशक बकुला, पूज्य सुशील मुनि सदृश मनीषी।

उनके द्वारा विराट हिन्दू समाज को जाति,मत,पंथ और भाषा से ऊपर उठ हिन्दू के नाते संगठित करने का संकल्प। प्रयाग के पावन संगम तट पर महाकुम्भ के अवसर पर आयोजित प्रथम विश्व हिन्दू सम्मलेन का ऐतिहासिक दृश्य हिन्दू समाज ने वर्षों बाद अपने सभी मत पन्थों के पूज्य धर्माचार्यों को एक मन्च पर देखा, यह सुयोग बन पाया पूज्य श्री गुरूजी की प्रेरणा और विश्व हिन्दू परिषद के प्रथम महामन्त्री दादा साहब आप्टे के अनथक श्रम से, स्मरण आ रहा है पूज्य संतो के मार्मिक भाषण के अंश,मैं इस विराट हिन्दू समाज का अंगभूत घटक हूं, मेरे पंथ के प्रथम पुरुष ने हिन्दू समाज के संगठन और परिष्कार के लिये ही इस पंथ की स्थापना की थी हम अनवरत इस पुनीत कार्य में लगे हैं और लगे रहेंगे। 1969 में उडुपी में हिन्दू सम्मलेन मन्च पर विराजमान पूज्य संतों द्वारा उदघोष “हिन्दवः सोदरा सर्वे न हिन्दू पतितो भवेत” अश्पृश्यता के विरुद्ध प्रस्ताव पारित ,हिन्दू के लिये ऐतिहासिक क्षण ।

-1979 प्रयागराज के संगम तट पर ही द्वितीय विश्व हिन्दू सम्मेलन तब तक परिषद् का विस्तार 7 समुद्र पार तक पहुँच चूका था देश विदेश के हिन्दू समाज और धर्म धाराओं का मिलन हुआ। 1981 में मिनाक्षीपुरम के दुर्भाग्यपूर्ण धर्मान्तरण के बाद गिरिवासी वनवासी बंधुओं के बीच सेवा कार्यों की श्रंखला खड़ी करने का संकल्प ,”धोखा लालच पेट्रो डालर नहीं चलेगा” का शंखनाद। बड़े परिमाण में सेवा कार्य आरम्भ का संकल्प लिया गया। 1983 में गंगा माता और भारतमाता रथारूढ़ हो एकात्मता यात्रा के रूप में गांव गली गलियारे में अपने भक्तों के बीच निकलीं,सभी भेद टूट गये पूरे देश के दिग-दिगन्त में गूँज उठा भारतमाता की जय गंगा माता जय का जयघोष। 1984 श्री अयोध्या जी में सरयू की पावन रेती पर पूज्य संतों के नेतृत्व में रामभक्तों ने संकल्प लिया रामलला की जन्मभूमि पर विदेशी आक्रमणकारी बाबर के नाम पर बनी ईमारत में ताले में बन्द रामजी के विग्रह को मुक्त कर भव्य राममन्दिर के निर्माण का,आकाश गुंजायमान हो गया “बच्चा बच्चा राम का जन्म भूमि के काम का” , “राम लला हम आयेंगे मंदिर यहीं बनायेंगे”, “राम ने उत्तर दक्षिण जोड़ा भेदभाव का बन्धन तोड़ा” और आरम्भ हो गया दुनिया का सहस्त्राब्दी का सबसे बड़ा जनांदोलन। यह आन्दोलन लाखों राममंदिर में कोई एक और राममन्दिर बनाने के लिये नहीं अपितु राष्ट्रीय स्वाभिमान के पुनर्प्रतिष्ठा के रुके हुये उस महाअनुष्ठान का अगला चरण था जिसका आरम्भ देश के प्रथम गृहमन्त्री सरदार पटेल ने सोमनाथ के मन्दिर के पुनर्प्रतिष्ठा से की थी।

6 दिसम्बर 1992 को हिन्दू शक्ति ने पराधीनता के प्रतीक ढाँचे को ढहा दिया। हिन्दू के इस विराट सामूहिक शक्ति प्रदर्शन का सुपरिणाम रामजी के मन्दिर निर्माण की बाधाएं दूर हुईं भव्य मंदिर तीव्र गति से पूर्णता की ओर अग्रसर है। हिन्दू समाज के सम्मान के प्रत्येक संघर्ष में परिषद का अनूठा योगदान है। अमरनाथ यात्रा का पुनर्जीवन,रामसेतु आन्दोलन,गऊ रक्षा समर्पित कार्यकर्ताओं और हिन्दू समाज की श्रद्धा के बल पर हिन्दू जागरण में परिषद ने अग्रणी भूमिका निभा रहा है। महर्षि देवल, परशुरामाचर्य,स्वामी रामानन्द तथा स्वामी दयानन्द की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए परिषद अपने स्थापना काल से ही धर्मान्तरित बंधुओं के घर वापसी के सत्कार्य में लगा है । मठ मंदिर,अर्चक पुरोहित ,तीर्थ और संस्कृत की पुनर्प्रतिष्ठा का कार्य भी परिषद् सफलता पूर्वक कर रहा है । गिरिवासी वनवासी अञ्चल में अपने बंधुओं के बीच सेवा कार्यों की श्रृंखला विविध उपक्रमों से परिषद समाज देवता की साधना में निरन्तर लगा हुआ है।
संगठन बढ़ा कार्य बढ़ा लेकिन 61वर्ष में हिन्दु समाज और देश के समक्ष चुनोतियाँ भी बढ़ी हैं।

गऊ माँ के देश में उसका बहता हुआ रक्त, अपने ही देश में शरणार्थी काश्मीरी हिन्दू, बांग्लादेशी घुसपैठिये,जेहादी आतंकवाद,लव जेहाद, नक्सलवाद, विदेशी धन से ईसाईकरण,हिन्दू समाज के विखंडन के षडयंत्र , सिमटती पतितपावनी गंगा तथा पर्यटन केंद्र में बदल रहे तीर्थस्थल राष्ट्रहित की भी कीमत पर तुष्टिकरण । इन चुनौतियों का सामना करने के लिये हमें अनथक श्रम कर गिरिवासीवनवासी,नगरवासी,ग्रामवासी हिन्दू समाज में से लक्षाधिक कार्यकर्त्ता खड़ा कर गांव गांव तक संगठन के तंत्र को फैला देने का संकल्प करना है और उसे पूर्णता की ओर पहुंचाना है।

हमारा लक्ष्य संगठित ,आग्रही, सक्रिय, जागरूक श्रद्धालु और आक्रामक हिन्दू । हम सफल ही होंगे हमारी ध्येयनिष्ठा और श्रम के साथ हमारे रामजी की कृपा हमारे साथ है।

(लेखक विश्व हिन्दू परिषद के प्रवक्ता हैं)

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