हिन्दुओं के धार्मिक आयोजनों पर भी रोक लगी

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Caption: News18 Hindi

भोपाल। लगभग सभी विदेशी सत्ताओं ने भारतीय संस्कृति को नष्ट कर अपने रंग में रूपांतरित करने का अभियान छेड़ा । सबका अपना अपना तरीका रहा। अंग्रेजीकाल में भ्रम फैलाकर तो सल्तनतकाल में ताकत और तलवार के जोर पर। मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपनी सत्ता और शक्ति से पूरे भारत से सनातन धर्म को समाप्त करने का अभियान चलाया और भारत के सभी मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दिया। यह आदेश 9 अप्रैल 1669 को निकाला गया था।

भारत के इतिहास में औरंगजेब की गणना सबसे क्रूर शासकों में होती है । उसकी क्रूरता का अनुमान इसी से है कि उसने अपने पिता को कैद में डाला और भाइयों की हत्या करके गद्दी पर अधिकार किया था । वह केवल क्रूर ही नहीं था। उसकी क्रूरता यहीं तक नहीं रूकी थी। औरंगजेब का सबसे बड़ा भाई दारा शिकोह पिता के लिये अति प्रिय था। औरंगजेब ने दारा शिकोह का सिर काटकर पिता को तोहफे में भेजा था। उसने अपने एक बेटी को जेल में डाल दिया था और एक बेटे की मौत का फरमान जारी किया था। औरंगजेब केवल क्रूर ही नहीं बहुत चालक और कूटनीतिक भी था । उसने अपनी क्रूरता और चालाकी को ढंकने केलिये कुछ धर्माचार्यों और लेखकों की एक टोली जमा कर रखी थी । भला कौनसा पंथ पिता को कैद में डालने और भाइयों की हत्या करने वाले को अच्छा कहेगा । लेकिन औरंगजेब की इस चाटुकार टोली ने उसके हर क्रूर कामों पर पर्दा डाला । दुनियाँ के सभी पंथ मानवता की बात करते हैं। अपनी विशेषताओं से समाज को प्रभावित करके अपनी राह में शामिल करते हैं। किन्तु औरंगजेब का अभियान इंसानियत पर नहीं, तलवार के जोर पर था। उसने पूरे भारत को रूपांतरित करने का अभियान चलाया । औरंगजेब ने न केवल मतान्तरण न करने वाले हिन्दुओं पर जजिया बढ़ाया और सख्ती से बसूली के आदेश दिये अपितु अपने साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले सभी 21 सूबों में मंदिरों को तोड़ने का आदेश भी जारी किया । हिन्दुओं को सार्वजनिक तौर पर सभी तीज त्यौहार मनाने पर रोक लगा दी । 9 अप्रैल 1669 को जारी हुये इस आदेश का उल्लेख औरंगजेब की जीवनी पर आधारित पुस्तक ‘मआसिर-ए-आलमगीरी’ में है। इस पुस्तक के लेखक औरंगजेब के दरबारी साकी मुस्ताइद खान हैं । इसके अतिरिक्त इस आदेश का उल्लेख वाराणसी गजेटियर के पेज नंबर- 57 पर भी है । यह गजेटियर 1967 में प्रकाशित हुआ था ।

औरंगजेब के इस आदेश के बाद पूरे भारत में मंदिरों को तोड़ने का अभियान चला । कुल कितने मंदिर तोड़े गये इसकी संख्या कहीं नहीं मिलती । सेना जिस बड़े और प्रसिद्ध मंदिर को ध्वस्त करती तो उसकी सूचना दरबार में भेजी जाती। इन सूचनाओं का उल्लेख औरंगजेब की जीवनी में मिलता है । औरंगजेब के शासन में उन स्थानों को भी धूल धूसरित किया गया जो पहले किसी शासक ने तोड़े तो थे । लेकिन स्थानीय श्रद्धालुओं ने इन खंडहरों को थोड़ा सुधार कर भजन पूजन आरंभ कर दी थी । इनमें अयोध्या, मथुरा, काशी और सोमनाथ मंदिर भी थे। औरंगजेब के प्रपितामह अकबर ने अयोध्या में चबूतरा बनाकर भजन पूजन की अनुमति दे दी थी लेकिन औरंगजेब ने उस चबूतरे को भी ध्वस्त करके मस्जिद परिसर में शामिल करने का आदेश दिया। सोमनाथ मंदिर का विध्वंश 1025 में मेहमूद गजनवी ने किया था । मथुरा आदि अन्य स्थानों में भी पूर्व आक्रांताओं द्वारा ध्वस्त मंदिर स्थलों में थोड़ा-बहुत सुधार करके भजन प्रार्थना आदि होने लगे थे। लेकिन औरंगजेब की सेना ने सनातन के इन सब खंडहर को भी दोबारा तोप से उड़ाया। वहाँ जितने श्रद्धालु मिले वे या तो मार डाले गये अथवा मतान्तरण करने की शर्त पर ही जीवित छोड़े गये ।

औरंगजेब के इस आदेश से जिन मंदिरों को पुनः तोड़ा गया उनमें सोमनाथ के अतिरिक्त काशी विश्वनाथ मंदिर, मथुरा में केशवदेव मंदिर, अयोध्या में रामलला मंदिर, अहमदाबाद का चिंतामणि मंदिर, बीजापुर का मंदिर, वड़नगर के हथेश्वर मंदिर, उदयपुर में झीलों के किनारे बने 3 मंदिर, विदिशा का बीजामंडल, उज्जैन के सभी मंदिर, सवाई माधोपुर में मलारना मंदिर आदि थे । औरंगजेब के इस आदेश से आदेश से मथुरा का वह गोविन्द देव मंदिर भी तोड़ दिया गया जो 1590 में राजा मानसिंह द्वारा बादशाह अकबर की अनुमति से बनवाया था। औरंगजेब के आदेश से मंदिरों का विध्वंस करने के साथ वे सभी विद्यालय भी नष्ट कर दिये गये जिनमें भारतीय पद्धति से शिक्षा दी जाती थी। ग्रंथालय जला दिये गये और शिलालेख तोड़ दिये गये थे । ताकि भारत की आने वाली पीढ़ियाँ अपने गौरवमयी इतिहास और परंपराओं से अवगत ही न हो सकें।

औरंगजेब के आदेश पर ध्वस्त किये गये अधिकांश मंदिर स्थलों पर मस्जिदों का निर्माण कराया । अयोध्या में जन्मस्थान पर बनी मस्जिद के विस्तार के साथ हनुमान गढ़ी पर भी एक मस्जिद का निर्माण कराया गया । इसके अतिरिक्त स्वर्गद्वीर मंदिर और ठाकुर मंदिर स्थल पर मस्जिद निर्माण के आदेश दे दिये गये ।

यद्यपि अकबर के शासन काल में भी मंदिरों का विध्वंस हुआ था किंतु कहीं कहीं पूर्व में विध्वंस किये गये मंदिरों के खंडहरों में पूजन पाठ की अनुमति दे दी गई थी । लेकिन औरंगजेब ने सार्वजनिक स्थलों पर सनातन परंपराओं के पूजन पाठ पर पूरी तरह रोक लगा दी थी।

औरंगजेब के पूरे शासन काल में इस आदेश का पूरी सख्ती से पालन किया गया । बाद के शासनकाल में आदेश तो यथावत रहा पर इसके क्रियान्वयन में कुछ शिथिलता रही।

औरंगजेब ने भारत पर लगभग उन्नचास वर्ष तक शासन किया। उसका पूरा शासनकाल विध्वंस और क्रूरता से भरा रहा। वह जिस स्थान पर गया वहाँ उसने क्रूरता का कैसा कहर बरपाया इसका विवरण स्वयं उसकी जीवनी में है। जिसका अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं में भी अनुवाद उपलब्ध है।

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