इस ‘कांग्रेसी’ पत्रकार का है, विवादों से पुराना नाता

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दिल्ली। अजीत अंजुम, जो खुद को एक स्वतंत्र पत्रकार बताते हैं, लेकिन उनकी छवि हमेशा से विवादों से घिरी रही है। वे न्यूज़ 24 और इंडिया टीवी जैसे चैनलों से जुड़े रहे, लेकिन बार-बार आरोप लगते रहे कि वे राजनीतिक पक्षपात करते हैं, खासकर कांग्रेस और विपक्षी दलों के पक्ष में। कई सोशल मीडिया पोस्ट और रिपोर्ट्स में उन्हें ‘कांग्रेस का दलाल’ कहा जाता है, जो फेक न्यूज़ फैलाकर भाजपा सरकार को बदनाम करने का काम करते हैं। उदाहरण के लिए, एक पोस्ट में उन्हें ध्रुव राठी, रवीश कुमार जैसे लोगों के साथ फेक न्यूज़ फैक्ट्री का हिस्सा बताया गया है, और सुझाव दिया गया कि ऐसे लोगों पर कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।

उनकी सबसे ताजा विवादास्पद घटना बिहार से जुड़ी है, जहां जुलाई 2025 में उनके खिलाफ बेगूसराय में एफआईआर दर्ज हुई। आरोप है कि उन्होंने मतदाता सूची संशोधन (SIR) प्रक्रिया में दखल दिया, सरकारी काम में बाधा डाली, और साम्प्रदायिक विद्वेष फैलाने की कोशिश की। कहा गया कि वे BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) के काम में अनधिकृत रूप से घुसे और विपक्षी एजेंडा थोपने की कोशिश की। पुलिस का दावा है कि अंजुम ने गलत सूचना फैलाई, जिससे चुनावी प्रक्रिया पर सवाल उठे। यहां तक कि चुनाव आयोग ने ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही, और अंजुम को स्टेज्ड ऑडियंस के साथ वीडियो बनाने का आरोपी बताया गया। वे खुद को हीरो बताते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि यह उनकी पुरानी आदत है – 2019 में मुजफ्फरपुर अस्पताल के ICU में घुसकर मरीजों और डॉक्टरों को परेशान करने के लिए उन्हें TV9 से निकाला गया था।

अंजुम पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप भी लगे हैं। अप्रैल 2024 में एक ट्वीट में उन्हें सहकर्मियों का यौन शोषण करने वाला, पैसे लेकर खबरें चलाने या रोकने वाला, और कांग्रेस-Samajwadi Party से मोटी रकम लेने वाला बताया गया। कहा जाता है कि वे न्यूज़ 24 और इंडिया टीवी से इसलिए निकाले गए क्योंकि उनकी नैतिकता संदिग्ध थी। क्वोरा जैसे प्लेटफॉर्म्स पर यूजर्स उन्हें कांग्रेस के प्रति पक्षपाती बताते हैं, और उन्हें ‘प्रो-कांग्रेस यूट्यूबर’ कहता है जो भाजपा की आलोचना करके विपक्ष को फायदा पहुंचाते हैं।

उनकी ग्राउंड रिपोर्टिंग को कुछ लोग बहादुरी बताते हैं, लेकिन ज्यादातर मामलों में यह पक्षपाती और सनसनीखेज साबित हुई है। जैसे, बिहार में वे BLO से बात करके विपक्षी नैरेटिव फैला रहे थे, लेकिन असल में सरकारी काम में बाधा डाल रहे थे। अप्रैल 2024 में चरित्र हत्या की साजिश का दावा करके उन्होंने लीगल नोटिस भेजा, लेकिन खुद पर लगे आरोपों का कभी ठोस जवाब नहीं दिया। कुल मिलाकर, अंजुम की पत्रकारिता कम, राजनीतिक एजेंडा ज्यादा नजर आता है – फेक न्यूज़, पक्षपात, और विवादों से भरा करियर, जो भारतीय मीडिया की विश्वसनीयता को चोट पहुंचाता है। ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए, जो सच्चाई के नाम पर अपना खेल खेलते हैं।

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