सोनाली मिश्रा
मुंबई: मशहूर संगीतकार इस्माइल दरबार ने अपनी बहू, अभिनेत्री गौहर खान के फिल्मों में अभिनय करने पर आपत्ति जताई है। विकी लालवानी को दिए साक्षात्कार में दरबार ने कहा कि उन्हें गौहर का शादी और मां बनने के बाद अभिनय करना पसंद नहीं है। उन्होंने अपनी दूसरी पत्नी आयशा का उदाहरण देते हुए कहा कि आयशा ने अपने बच्चे की खातिर काम छोड़ दिया, भले ही वह महीने में 5 लाख रुपये कमा रही थीं। दरबार ने यह भी कहा कि वह गौहर के किसी भी अभिनय दृश्य को नहीं देखते, क्योंकि इससे उन्हें असहजता होती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि गौहर के पति, उनके बेटे जैद ही उन्हें सलाह दे सकते हैं।
दरबार ने अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए कहा, “मैं एक रूढ़िवादी परिवार से आता हूं। अंतरंग दृश्य देखकर हम इधर-उधर चले जाते थे, और यह आज भी जारी है। गौहर अब हमारे परिवार का हिस्सा है, और उसकी इज्जत की जिम्मेदारी हमारी है।” उन्होंने खुलकर कहा कि वह ऐसे दृश्यों को बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे और जरूरत पड़ी तो इसका विरोध भी करेंगे।
इस बयान ने सोशल मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग में बहस छेड़ दी है। हालांकि, आश्चर्यजनक रूप से, फेमिनिस्ट और सामाजिक आंदोलनकारी इस मामले पर खामोश हैं। अगर यही बात किसी हिंदू परिवार से जुड़े व्यक्ति ने कही होती, तो शायद अब तक फेमिनिस्ट संगठन और साहित्यकार पितृसत्ता और मनुवाद के खिलाफ लेख और कविताएं लिख चुके होते। सोशल मीडिया पर तथाकथित प्रगतिशील बुद्धिजीवियों की यह चुप्पी सवाल उठाती है कि क्या उनकी आलोचना धर्म-विशेष तक सीमित है?
यह दोहरा रवैया तब और स्पष्ट होता है, जब मुस्लिम परिवारों से जुड़े पितृसत्तात्मक बयानों पर फेमिनिस्ट समूह चुप्पी साध लेते हैं। गौहर खान, जो एक स्वतंत्र और सफल अभिनेत्री हैं, के बारे में इस तरह की टिप्पणी न केवल उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर सवाल उठाती है, बल्कि समाज में महिलाओं की भूमिका पर भी बहस छेड़ती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि फेमिनिस्ट आवाजें तब ही उठती हैं, जब मुद्दा उनकी विचारधारा के अनुकूल हो।