आईटीबीपी में पदोन्नत हुए कमलेश कमल, हिंदी भाषा-विज्ञान पर शोध से राष्ट्रीय पहचान

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नई दिल्ली  भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (#ITBP) के वरिष्ठ अधिकारी और हिंदी भाषा-विज्ञान के प्रतिष्ठित विद्वान् कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। वे वर्तमान में आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं और बल के प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

आईटीबीपी में अहम भूमिका, हिंदी के प्रति समर्पण :–

बिहार के पूर्णिया जिले के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के क्षेत्र में अपने गहन शोध और सटीक प्रयोगों के लिए पूरे देश में विख्यात हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षाविद् हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा, केंद्रीय विद्यालय में हिंदी शिक्षिका के रूप में हिंदी-सेवा कर रही हैं।

कमलेश कमल भारतीय शिक्षा बोर्ड के भाषा सलाहकार भी हैं और हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दे चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी नवीनतम कृति ‘शब्द-संधान’ को भी देशभर में अपार सराहना मिल रही है।

ब्यूरोक्रेसी और साहित्य में राष्ट्रीय पहचान :–

यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक और भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे देश के सबसे बड़े समाचार पत्र दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ शीर्षक से एक स्थायी स्तंभ लिखते हैं और बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपरक लेखन कर रहे हैं।

सम्मान एवं योगदान:–

गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023)
विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023)
2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित
देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन
यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन

उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य की जागरूकता को निरंतर बढ़ा रहे हैं। आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी भाषा के प्रति उनके योगदान पर बिहार सहित पूरे देश के हिंदीप्रेमियों में हर्ष है। उनकी इस सफलता ने यह सिद्ध किया है कि वर्दी के साथ केवल बंदूक नहीं, बल्कि कलम का भी सुमेल हो सकता है।

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