जातिवादी राजनीति का प्यादा: आशुतोष और सारिका विवाद में राजद की रणनीति और चुप्पी

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पटना। बिहार की राजनीति में जातिवाद का जहर हमेशा से चर्चा का केंद्र रहा है। हाल ही में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की प्रवक्ता सारिका पासवान और राजद द्वारा तैयार किए गए भूमिहार नेता आशुतोष के बीच सोशल मीडिया पर हुई तीखी बहस ने इस मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया।

आशुतोष को राजद के प्यादे के रूप में देखा जा रहा है, जिसे तेजस्वी यादव अपनी रणनीति के तहत इस्तेमाल कर रहे हैं। बिहार की जनता इसे अच्छी तरह समझती है कि यह विवाद 2025 के चुनावों में बहुजन वोटों को एकजुट करने की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।

दूसरी तरफ सारिका के मामले में उनके निजी जीवन की बात भी लोगों के सामने आई है। जहाँ उनके पति के साथ विवाद चल रहा है। बात-बात में जाति तलाशने वाली सारिका के निजी जीवन को इस विवाद में घसीटना चाहिए या नहीं, यह एक प्रश्न हो सकता है? लेकिन फिर प्रश्न यह भी है कि सारिका ने अपने जीवन में इन मूल्यों की कभी परवाह की है?

बिहारी समाज को जाति के आधार पर बाँटने वाले बयानों में इस बात की परवाह की है कि इससे समाज पर क्या असर पड़ेगा? इस पारिवारिक कलह में दावा किया गया कि सारिका को उनके पति ने घर से निकाल दिया।

यह सवाल उठता है कि यदि सारिका के पति भूमिहार होते, तो क्या अब तक यह मामला राजद के नेताओं द्वारा राष्ट्रीय मुद्दा नहीं बना दिया गया होता? अभी चूँकि जाति वाली राजनीति में यह मामला फिट नहीं बैठ रहा, तो इसे पारिवारिक विवाद का हवाला देकर दबाने की कोशिश हो रही है। राजद को स्पष्ट करना चाहिए कि अपनी महिला नेता के घरेलू हिंसा की कथित पीड़िता होने पर उनका क्या स्टैंड है? पार्टी ने इस पूरे मामले पर चुप्पी क्यों साध रखी है?

यह विवाद समाज में जातीय ध्रुवीकरण और राजनीतिक रणनीतियों की गहरी जड़ों को उजागर करता है। क्या हमारी राजनीति और समाज वास्तव में प्रगतिशील दिशा में बढ़ रहे हैं, या फिर हम अभी भी जाति की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं? यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब राजद और बिहारी समाज दोनों को देना होगा।

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