भारतीय स्वतंत्रता संग्राम विविधता से भरा है । क्राँतिकारी और अहिसंक आँदोलन के साथ अन्य धाराओं में एक ऐसी धारा भी रही जिसने प्रत्यक्ष आँदोलनों में सहभागिता के साथ ऐसी साहित्य रचना भी की जिसने जन सामान्य को झकझौरा और एक पूरी पीढ़ी को आँदोलन के लिये आगे आई । रामवृक्ष बेनीपुरी ऐसी ही प्रतिभा थे जिन्होंने सतत साहित्य रचना की और असहयोग आंदोलन से लेकर भारत छोड़ो आँदोलन तक हर संघर्ष में हिस्सा लिया और जेल गये ।
ऐसे ओजस्वी साहित्यकार और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म 23 दिसम्बर 1899 को बिहार प्राँत के मुज़फ़्फ़रपुर जिला अंतर्गत ग्राम बेनीपुरी में हुआ था । पिता फूलवंत सिंह जी एक साधारण किसान और माता तुलसी देवी साधारण गृहिणी थीं । इनके माता-पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था। पालन पोषण मौसी ने किया था। मौसी का परिवार शिक्षा से जुड़ा था उन्होंने शिक्षा पर ध्यान दिया और आरंभिक शिक्षा केलिये बेनीपुर के स्थानीय विद्यालय में ही भर्ती कर दिया । आरंभिक शिक्षा के मैट्रिक करने ननिहाल पहुँचे । यह वह समय था जब देश में स्वाधीनता आँदोलन के मानो बादल घुमढ़ रहे थे । युवा रामवृक्ष भी दूर न रह सके और 1920 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में प्रारंभ हुए असहयोग आंदोलन से जुड़ गये । गिरफ्तार हुये जेल भेजे गये और जेल से लौटकर मुजफ्फर महाविद्यालय से आगे पढ़ाई की और हिंदी साहित्य से ‘विशारद ‘ की परीक्षा उत्तीर्ण की।
साहित्य और पत्रकारिता से उनकी रुचि बचपन से थी । वे किशोर वय से ही लेखन करते थे पर उनका लेखन ओजस्वी और समाज की कुरीतियों के निवारण संबंधी होता था इसलिए स्थानीय समाचार पत्रों में स्थान नहीं मिल पाता था । उन्होंने 1929 से पत्रकारिता आरंभ की ‘युवक’ नामक समाचारपत्र से जुड़ गये । वे इसके न केवल संपादक थे अपितु प्रकाशन में भी सहभागी थे । उन्होंने अपने नाम रामवृक्ष के आगे अपने गाँव का नाम बेनीपुरी जोड़ा और वे इसी नाम से प्रसिद्ध हुये । बेनीपुरी जी ने इस समाचार पत्र “युवक” के माध्यम से युवाओं में ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों की ओर ध्यान खींचा तथ राष्ट्रवाद जगाने का अभियान छेड़ा। इसी बीच उनका संपर्क सुप्रसिद्ध समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण से बना 1931 में ‘समाजवादी दल’ की स्थापना हुई । इसके संस्थापकों में जयप्रकाश नारायण, फूलन प्रसाद वर्मा के साथ रामवृक्ष बेनीपुरी भी थे । उन्होंने समाज में कुरीतियों के विरुद्ध भी अनेक आँदोलन छेड़े। अपने लेखन और आदोलनों के चलते अनेक बार बंदी बनाये गये । विभिन्न आँदोलनों में उन्होंने अपने जीवन के कुल आठ वर्ष जेल में बिताये । लेकिन उन्होने अपनी जेल अवधि का उपयोग लिखने में किया । वे जब भी जेल से बाहर आते उनके हाथ में कोई नया ग्रंथ होता जो आगे चलकर साहित्य की अमर कृतियाँ बनीं।
उनकी गिरफ्तारी और रिहाई की एक घटना बहुत चर्चित रही । यह घटना 1942 के अंग्रेजो भारत छोड़ो आँदोलन की है । वे इस आँदोलन में जयप्रकाश नारायण जी के साथ गिरफ्तार हुये और हजारीबाग जेल में रखे गये । पर एक पूरे जत्थे ने भागने की योजना बनाई । रामवृक्ष जी इस योजना के सहभागी बने उनकी साहित्य प्रतिभा से जेल कर्मचारी प्रभावित थे ही । इसी का लाभ उठाकर जयप्रकाश नारायण जी, रामवृक्ष जी सहित पूरा जत्था जेल से भाग निकला । इस घटना की गूँज पूरे बिहार में हुई ।
रामवृक्ष जी महान् विचारक, चिन्तक, क्राँतिकारी, साहित्यकार और पत्रकार थे । उनकी हर रचना में देश प्रेम और समाज को विसंगतियों से मुक्ति का संदेश होता था । उनके दो प्रमुख उपन्यास “पतितों के देश में”और “आम्रपाली” बहुत मशहूर हुये तो “माटी की मूरतें” कहानी संग्रह तथा चिता के फूल, लाल तारा, कैदी की पत्नी, गेहूँ और गुलाब, जंजीरें और दीवारें
नाटक – सीता का मन, संघमित्रा, अमर ज्योति, तथागत, शकुंतला, रामराज्य, नेत्रदान, गाँवों के देवता, नया समाज, विजेता, बैजू मामा आदि आलेख आज साहित्य की अमर कृतियाँ हैं। इसमें “कैदी की पत्नि” रचना में उन्होने अपनी पत्नि रानी देवी की उस व्यथा का ही वर्णन किया । जब रामवृक्ष जी जेल जाते थे तब पत्नि की आँसू झरते थे । वही पीड़ा उस रचना में थी । उन्होंने उपन्यास, जीवनियाँ, कहानी संग्रह, संस्मरण आदि लगभग 80 साहित्यिक पुस्तकों की रचना की।
स्वतंत्रता संग्राम और साहित्य रचना के साथ वे सक्रिय राजनीति में भी आये । उन्होने जयप्रकाश नारायण जी कहने पर 1957 में हजारीबाग विधान सभा से चुनाव भी लड़ा और विजयी हुये । निरंतर संघर्ष और साहित्य रचना के साथ 9 सितम्बर 1968 को वे इस संसार से विदा हुये । उनके सम्मान में भारत सरकार ने वर्ष 1999 में ‘डाक टिकट जारी किया और बिहार सरकार ने ‘वार्षिक अखिल भारतीय रामवृक्ष बेनीपुरी पुरस्कार’ आरंभ किया ।