समीर कौशिक
रांची। खबर है कि झारखंड में कांग्रेस समर्थित सोरेन हेमन्त सोरेन सरकार ने 18 भाजपा विधायकों को सस्पेंड कर विधानसभा से बाहर फिकवाया है फोटो से भी प्रतित हो रहा है । ये ही इनका लोकतंत्र है संविधान बच गया इस से अब लोकतंत्र खतरे में भी नही दिख रहा है शायद ये आपातकाल इमरजेंसी से भी बुरा हो रहा है कि जनप्रतिनिधियों को फिंकवाया जा रहा है
अरविंद केजरीवाल ने इस राजनीति की शुरुआत की थी जनप्रतिनिधियों को सदन से बाहर फिंकवाने की अब ये वायरस फैल रहा है जो कि लोकतंत्र के डीएनए के लिए उचित नही है ये जनप्रतिनिधियों को नही अपितु उन मतों को और मतदाताओं को उनकी भावनाओँ को सदन के बाहर फेंका जा रहा है जिन्होंने इन्हें जिताया है जिनकी वोटों से ये सदन में आये हैं सन्देश साफ है कि जो इन्हें वोट नही करेगा उसे ये कैसे बाहर फेंक देंगे सोचना होगा कि क्या वास्तव में दिन रात लोकतंत्र बचाओ के अनारा दने वाले लोग लोकतन्त्र बचारहे हैं या अपना ख़ौफ़तन्त्र फैला रहे हैं ऐसा ही कुछ बाबू जगजीवन राम जी के साथ कांग्रेस द्वारा किया गया था उन्हें बैठक से बाहर फिंकवाया गया था क्या अब इंडी ठगबंधन के नेता इन सदन से बाहर फिंकवाये गए जनप्रतिनिधियों की जाती पूछेंगे क्या अब वो इनके वोटरों की जाती पूछेंगे यदि एक भी दलित आदिवासी पिछड़े अतिपिछड़े ने इनको वोट दिया है तो इसका अर्थ स्पष्ट है कि उनकी भावनाओँ को भी सदन के बाहर कर दिया गया है
आज और ये असम्भव ही है कि ये जनप्रतिधि झारखंड में रहकर बिना दलित आदिवासी पिछड़ा अतिपिछड़ा आदि आदि के मत पाए बिना सदन में आ गए हों प्रतिशत कुछ भी चाहे इनके प्रति इन मतों का और ये भी सम्भव है कि इनमें से स्वयं भी कुछ आदिवासी पिछड़े दलित अतिपिछड़े आदि आदि होंगे तो क्या इंडी ठगबंधन वाले लोग अब इन भावनाओँ को इन लोगों को सदन में नही बैठने देंगे बस इसलिए कि ये इनकी राजनैतिक पार्टी या विचारधारा से नही हैं अपने सांसदो की बर्खास्तगी पर संसद में छाती कूटने वाले गांधी की प्रतिमा पर घड़ियाली आंसू बहाने वाली राजनैतिक मगरों को अब ये नही दिखा क्या क्या अब जो लोग संविधान संविधान चिल्लाते हैं संविधान को पोटली बना कर फोटो खिंचाने के लिए संग लिए घूमते हैं उन्हें उसी संविधान की धज्जियाँ उड़ती नही दिख रही या जो वो करें वो सब प्राकृतिक रूप से संवैधानिक बन जाता है और कमाल की बातये कि देश मे इतनी बड़ी घटना घटी और इसके लिए कंही कोई आवाज उठा नही रहा क्या ये तानाशाही सरकारें इतनी हावी हो गई हैं लोकतंत्र पर या इनका ख़ौफ़तन्त्र इतना मजबूत है झराखंड से दिल्ली तक सन्नाटा पसरा हुआ है ।
जो लोग अधिकारियों की जाती पूछ रहे है पत्रकारोँ की जाती पूछ रहे हैं कर्मचारियों की जाती पूछ रहे हैं , बजट में जाति देख रहे है गजट में जाति देख रहे हैं क्या अपनी सरकारोँ द्वारा अब वो इन बाहर फ़िकवाएँ गाये जनप्रतिनिधियों की जाती बताएंगे , क्या वो बताएंगे कि उनके यंहा जंहा चाहे झारखंड हो या हिमाचल या कर्नाटक मुख्य सचिव किस जाति से हैं मुख्यमंत्री किस जाति से हैं विधानसभा अध्य्क्ष किस जाति से हैं । क्या उन्होंने अपने यंहा किस जाति के सलाहकारों को नियुक्ति दी हुई है । ये क्या जिस तरह की बाते वो करते हैं वैसा कोई प्रतिमान उन्होंने स्वयं बनाया है अभी तक क्योंकी उन्होंने तो सबसे परहले एक पिछड़े का हक मारा सरदार पटेल के रूप में जब उन्हें कंग्रेस के अद्यक्ष के पद त्यागपत्र दिलवाकर प्रधानमंत्री नही बनने दिया गया , बाबा साहेब के साथ किस प्रकार का व्यवहार इन्होंनो किया आप सब जानते हैं उन्हें जीतने तक नही दिया जाता तथाकथित देश के चाचा के द्वारा आज ये दलित हितैषी बनते हैं राजेन्द्र बाबू जैसे लोग उस समय ना होते तो शायद डॉ आंबेडकर सँविधान समिति के सदस्य और मसौदा समिति के अध्य्क्ष भी ना बन पाते और ये लोग आज दलित हितैषी होने का प्रपंच देश मे रच रहे हैं । यदि ये दलित पिछड़ा आदिवासी हितैषी हैं तो देश आजादी के 75 वर्षों के बाद भी आज इन्हें मूलभूत सुविधाएं क्यों नही दी पाया ये प्रश्न इन्हीं से होना चहिये ।
परन्तु आज पक्ष भी इनसे प्रश्न नहींकर रहा असमंजस की बात तो यह है कि क्या पक्ष भी इनके इस छलावे में फंसता नजर आ रहा है क्या ये लोग इन पर भी हावी हो गए हैं । देश को चिंतन करना होगा कि यदि ये लोग पिछले 65 वर्षों में कुछ नहींदी पाए तो 10 वर्ष वाले से हिसाब मांगने की इनकी क्या नैतिकता है । तथाकथित स्वतंत्रता के 75 वर्षों बाद भी यदि इन्हें अपनी सरकारोँ में सदनों से विपक्षियों को फिंकवाने तक के दिन ला दिए हैं तो इन्होंने देश को क्या दिशा दशा दी है ये चिंत्तन करना हो किस ओर देश को मोड़ा जा रहा आ जब ये लोग सत्ता में जंहा पर भी है वँहा पर खुली अराजकता है पर कोई बोलने वाला नही है बंगाल हो चाहे केरला चाहे झारखण्ड परन्तु मैं एक बात की सराहना करूँगा की बात सही यदि एकता है तो सङ्ख्या बल कोई महत्व नही रखता शक्ति कोई महत्व नही रखती ।
आज विपक्षियों में हर जगह एकता है इसीलिए भाजपा सरकारे या भाजपा कार्यकर्ता इसीलिए इन इंडी ठगबन्धन वालों के सामने ठगे ठगे से दिख रहे हैं ये चित्र देख कर भावआवेश तो बहुत कुछ है क्योंकि ये सिर्फ कोई विधायक नही फेके गए ये बाबा साहब डॉ भीम राव रामजी अम्बेडकर की आत्मा को सदन के बाहर आज इन्होंने फिंकवा दिया है उनके लोकतंत्र को बाहर फिकवा दिया उनके संविधान को फिकवा दिया क्योंकि वँहा जाने का अधिकार उन्ही के द्वारा बनाये गए नियमों से इन्हें मिला है उन्ही की व्यवस्था से मिला है किसए बात पर नाराजगी सदस्यता की नीरसत्ता सब समझ आता है परन्तु सदन से फिकवना तो उनके संविधान में नही है अथार्त ये में इसीलिए कह रहा हु की आज बाबा साहेब की आत्मा को इन्होंने लोकतंत्र के मंदिरो से बहार फेकना शुरु कर दिया है कल बाबा साहेब के विचारों को करेंगे और फिर उनके अनुयायियों को मैं दावे से ये बात कह रहा हु प्रमाण के साथ आप इनका इतिहास देख सकते हैं आज मजबूरी में इन्होंने दलित पिछड़ा आदिवासी का राग अलापना पड़ रहा है परन्तु खेद और दुख का विषय तो ये है कि स्वयं को बाबा साहेब के उत्तराधिकारी समाजवाद का उत्तराधिकारी काशीराम लोहिया जेपी का उत्तराधिकारी कहने वाले भी इन्हीं की गोदी में हैं और इनका रिमोर्ट चीन और इटली जैसे देशे में है ।
यदि देश इन्हें नही समझा तो फिर समझ भी नही पायेगा । इस दिन को लोकतंत्र में कलादिवस घोषित किया जाना चहिये जिस दिन बाबा साहेब की आत्मा को इन्होंने लोकतंत्र के मंदिर से बाहर फैंकना आरंभ किया है । ये कुछ नही कर रहे हैं देश मे लेनिन और मार्क्स की परिपाठी खड़ा करने के कुथिस्त प्रयास कर रहे हैं जो कि होने नही दिया जाएगा । धन्यवाद