जिहाद वॉच: आतंक की नई चुनौतियाँ और सतर्क भारत का उदय

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गोविन्दा मिश्रा

दिल्ली । भारत ने आतंकवाद की विभीषिकाएँ झेली हैं — संसद पर हमला, मुंबई की 26/11 की रात, पुलवामा का दर्द और असंख्य छोटे-बड़े धमाके जिन्होंने देश की आत्मा को झकझोरा। लेकिन आज का भारत इन चुनौतियों के सामने सिर झुकाने वाला नहीं, बल्कि जवाब देने वाला राष्ट्र बन चुका है। हाल की घटनाएँ, जैसे फरीदाबाद में 2,900 किलोग्राम विस्फोटक की बरामदगी या गुजरात की “राइसिन साजिश”, इस सच्चाई की पुष्टि करती हैं कि आतंक के तरीके बदल गए हैं — और भारत का रुख भी।

आतंक की नई परतें: जब सफ़ेद कोट बना हथियार

फरीदाबाद से बरामद विस्फोटक किसी साधारण अपराध का हिस्सा नहीं थे। यह साजिश देश के प्रतीक — लाल क़िले — पर हमला करने की मंशा से जुड़ी थी। पहले के आतंकवादी चेहरे पहचानने योग्य होते थे — फटा बैग, पुरानी बाइक, या सीमापार से आई बंदूक। लेकिन इस बार आतंक ने नया रूप धारण किया: सफ़ेद कोट, प्रयोगशालाएँ और तकनीकी उपकरण।
आतंकवाद अब सिर्फ बंदूक या बम नहीं, बल्कि विचारधारा और विज्ञान का विकृत संगम बन चुका है। “व्हाइट कॉलर जिहाद” — यानी शिक्षित आतंकवाद — एक वास्तविकता है। यह वह चेहरा है जहाँ डॉक्टर, इंजीनियर या वैज्ञानिक कट्टरपंथ की विचारधारा से प्रभावित होकर विनाश के औजार बना रहे हैं।

मोदी युग में खुफिया चौकसी और जवाबदेही

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत की खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों की संरचना पहले से कहीं अधिक सशक्त और स्वतंत्र हुई है। राजनीतिक हस्तक्षेप कम हुआ है, और निर्णय प्रक्रिया तेज़। यही कारण है कि कई बड़ी साजिशें उनके परिपक्व होने से पहले ही ढह गईं।
फरीदाबाद, मुरशीदाबाद और गुजरात की घटनाएँ इस नई रणनीति का प्रमाण हैं। पहले जहाँ प्रतिक्रियाएँ औपचारिक होती थीं, अब रोकथाम प्राथमिकता बन गई है। यह परिवर्तन केवल नीतिगत नहीं, बल्कि वैचारिक भी है — “पहले प्रहार करो, फिर पछताओ नहीं।”

कांग्रेस काल और असुरक्षा का दशक

यह भी एक ऐतिहासिक तथ्य है कि 2004 से 2014 के बीच भारत में आतंकवाद की घटनाएँ चरम पर थीं। दिल्ली, मुंबई, वाराणसी, पुणे, जयपुर — कोई शहर सुरक्षित नहीं रहा। लेकिन अधिक चिंता का विषय था, तब की सरकार की प्रतिक्रिया।
बाटला हाउस एनकाउंटर के बाद जो राजनीतिक बयान आए, उन्होंने सुरक्षा बलों के मनोबल को चोट पहुँचाई। जब किसी नेता की करुणा आतंकियों के प्रति अधिक दिखे और शहीद पुलिसकर्मी के प्रति कम, तो संदेश खतरनाक होता है।
इसी दौर में “हिंदू आतंकवाद” जैसी संज्ञा सामने आई — जिसने न केवल असली जिहादी नेटवर्क को छिपाया, बल्कि देशभक्तों की निष्ठा पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया।

तुष्टीकरण बनाम राष्ट्रहित: दो राजनीतिक दृष्टिकोण

कांग्रेस का दृष्टिकोण अक्सर तुष्टीकरण की नीति पर आधारित रहा — जिससे सीमापार और घरेलू आतंकी नेटवर्क को अप्रत्यक्ष सहूलियत मिली। वहीं भाजपा का दृष्टिकोण राष्ट्रहित के केंद्र में खड़ा रहा।
मुरशीदाबाद में बांग्लादेश सीमा के पास बरामद 150 बमों की घटना याद दिलाती है कि निष्क्रियता और वोट-बैंक की राजनीति आतंक को पनपने देती है। भाजपा की नीति स्पष्ट रही — सीमाओं की सुरक्षा और आंतरिक नेटवर्क पर कठोर नियंत्रण।

डिजिटल युग में आतंक का नया चेहरा

आज आतंकवादी संगठन बंद कमरों से नहीं, बल्कि एन्क्रिप्टेड चैट्स, डार्क वेब और डिजिटल वॉलेट्स के माध्यम से साजिश रच रहे हैं। यह “साइबर जिहाद” है — जो बिना बम के भी उतना ही घातक हो सकता है।
इस चुनौती से निपटने के लिए केवल संवेदनशीलता नहीं, बल्कि तकनीकी दक्षता चाहिए। यही वजह है कि वर्तमान सरकार ने डिजिटल इंटेलिजेंस नेटवर्क और साइबर सुरक्षा में बड़े निवेश किए हैं। ड्रोन निगरानी, डेटा एनालिटिक्स और एआई-सक्षम निगरानी प्रणाली अब भारत की आंतरिक सुरक्षा का हिस्सा हैं।

राष्ट्रवाद और सुरक्षा का पुनर्परिभाषित अर्थ

भारत में अब “राष्ट्रवाद” कोई राजनीतिक शब्द नहीं, बल्कि एक नागरिक जिम्मेदारी बन चुका है। मोदी युग का राष्ट्रवाद पुलिस, सेना या एजेंसियों तक सीमित नहीं — यह जनसहभागिता का रूप ले रहा है।
सुरक्षा अब केवल सीमाओं की रक्षा नहीं, बल्कि विचारों की रक्षा भी है। इस दृष्टिकोण ने आतंक के विरुद्ध राष्ट्रीय एकता को नई मजबूती दी है।

कठोर शासन बनाम कमजोर राजनीति

जहाँ पहले अफसर निर्णय लेने से डरते थे, अब वे राष्ट्रीय समर्थन के साथ काम कर रहे हैं। शासन की इस स्थिरता ने एजेंसियों को निडर बनाया है। यही अंतर है कमजोर राजनीति और मज़बूत शासन में।
कांग्रेस ने कायरता को धर्मनिरपेक्षता कहा, भाजपा ने साहस को देशभक्ति। परिणाम यह है कि आज भारत पहले से अधिक सुरक्षित महसूस करता है।

लाल क़िले से नई चेतावनी तक

लाल क़िले पर संभावित हमले की योजना केवल भौतिक नहीं, प्रतीकात्मक भी थी। यह भारत की आत्मा पर प्रहार का प्रयास था। लेकिन यह विफल हुआ — क्योंकि अब भारत में ऐसा नेतृत्व है जो किसी के आगे झुकता नहीं और किसी भी षड्यंत्र को पनपने नहीं देता।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में आतंक की साजिशें “परिपक्व” नहीं हो पातीं, वे ढह जाती हैं। यही है नया भारत — सतर्क, सशक्त और निर्णायक।

सतर्क राष्ट्र, सुरक्षित भविष्य

आतंक का स्वरूप बदल रहा है — अब यह सीमाओं से नहीं, विचारों और तकनीक से आ रहा है। लेकिन भारत भी बदल चुका है। राजनीतिक इच्छाशक्ति, तकनीकी कौशल और जनसहयोग के समन्वय से राष्ट्र ने एक नई सुरक्षा संरचना गढ़ी है।
यह भारत अब केवल अपने घाव नहीं गिनता, बल्कि हमलावर की दिशा में भी देखता है।
“जो भारत को धमकाएगा, उसे खोजकर समाप्त किया जाएगा” — यह केवल एक नीति नहीं, बल्कि नई राष्ट्रीय चेतना का उद्घोष है।

(लेखक गोविंदा मिश्रा दिल्ली में पठन, पाठन, लेखन में सक्रिय हैं)

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