आगरा । इतिहासकार बताते हैं कि मुगल बादशाह शाह जहां ने यमुना नदी में जल प्रवाह, पानी की क्वालिटी और क्वांटिटी राउंड the year, देखकर ही इस स्थल का ताज महल निर्माण के लिए चयन किया था। ऐसे में पानी का संचय कैसे इमारत के लिए खतरा हो सकता है?
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आगरा की यमुना नदी, जो कभी ताजमहल के सौंदर्य का आभूषण थी, आज साल के आठ महीने एक बदबूदार नाले में तब्दील हो जाती है। ताज के नीचे सूखी नदी की धारा और उसमें तैरता कचरा न केवल पर्यटकों को निराश करता है, बल्कि शहर की ऐतिहासिक धरोहर और लाखों निवासियों के भविष्य को खतरे में डाल रहा है। नगला पैमा रबर चेक डैम परियोजना, जो चार दशकों से फाइलों में अटकी पड़ी है, इस संकट का समाधान हो सकती है। लेकिन सवाल वही है—क्या सरकार की सुस्ती और नौकरशाही का टालमटोल इसे हकीकत बनने देगा?
ताजमहल की नींव पर मंडराता खतरा
ताजमहल की नींव साल की लकड़ी पर टिकी है, जो स्थायी नमी के बिना कमजोर पड़ रही है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यमुना में जल प्रवाह की कमी से नींव में दरारें और क्षरण का खतरा बढ़ रहा है। बृज खंडेलवाल ने अपने एक लेख में लिखा, “The Taj Mahal was built with the assurance of the Yamuna’s perennial flow. Today, its dry bed is a betrayal of Shah Jahan’s vision.” (The Pioneer, 2023)। अगर यमुना में पानी नहीं लौटा, तो यह विश्व धरोहर अपनी चमक के साथ-साथ अपनी नींव भी खो सकती है।
रबर चेक डैम: आगरा की उम्मीद
नगला पैमा में प्रस्तावित रबर चेक डैम सिर्फ एक बांध नहीं, बल्कि आगरा की जीवनरेखा है। यह परियोजना तीन प्रमुख समस्याओं का समाधान कर सकती है:
डैम से यमुना में सालभर जल प्रवाह सुनिश्चित होगा, जो ताज की नींव को नमी प्रदान करेगा। 3.5 लाख क्यूसेक जल संग्रहण क्षमता वाला यह डैम शहर के लिए वैकल्पिक जल स्रोत बन सकता है, जिससे भूजल स्तर सुधरेगा और गर्मियों में पानी की किल्लत खत्म होगी। साफ यमुना और ताज का प्रतिबिंब पर्यटकों को आकर्षित करेगा। नौकायन और अन्य जल-आधारित गतिविधियां स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देंगी। इस विषय पर खंडेलवाल ने लिखा, “A flowing Yamuna can transform Agra into a tourism powerhouse, with boating and scenic views enhancing the Taj’s allure.” (Hindustan Times, 2024)।
चार दशकों का टालमटोल
1986 से शुरू हुई इस परियोजना की कहानी सरकारी उदासीनता और नौकरशाही की भूलभुलैया का जीता-जागता सबूत है।
1986: तत्कालीन मुख्यमंत्री एन.डी. तिवारी ने मनोहरपुर में बैराज का शिलान्यास किया।
1993: केंद्रीय जल आयोग ने 134.8 करोड़ रुपये स्वीकृत किए, जो उपयोग न होने पर वापस चले गए।
2016: सपा सरकार ने रबर डैम का प्रस्ताव बनाया, अधिकारियों को विदेश भेजा, लेकिन कोई प्रगति नहीं हुई।
2017: योगी सरकार ने नगला पैमा में शिलान्यास किया।
2022: नीरी ने सशर्त पर्यावरणीय मंजूरी दी।
2025: 60 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत हुआ, लेकिन संसद में हाल ही में बताया गया कि अभी और अध्ययन बाकी हैं।
चार दशकों में कई सरकारें बदलीं, शिलान्यास हुए, फाइलें घूमीं, लेकिन डैम का निर्माण आज भी अधर में है। खंडेलवाल ने इसे “a monument to bureaucratic inertia” करार दिया (The Statesman, 2022)।
क्यों अटक रहा है प्रोजेक्ट?
नौकरशाही का जाल: केंद्रीय जल आयोग, अंतरदेशीय जलमार्ग प्राधिकरण और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने मंजूरी दे दी, लेकिन टीटीजेड, पर्यावरण मंत्रालय और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन से अंतिम हरी झंडी का इंतजार है।
नीतिगत भ्रम: बैराज से रबर डैम तक बार-बार बदलते प्रस्तावों ने प्रक्रिया को जटिल बनाया।
पर्यावरणीय आशंकाएं: कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि डैम से नदी में स्थायी जल प्रवाह ताज की नींव पर दबाव डाल सकता है। हालांकि, नीरी ने इन चिंताओं को शर्तों के साथ खारिज किया है।
2025: अब और देरी क्यों?
जब डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट, पर्यावरण मूल्यांकन, बजट और तकनीकी मंजूरी सब तैयार हैं, तो देरी का कारण क्या है? क्या यह राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है? केंद्र और राज्य के बीच समन्वय की नाकामी? या फिर भारत के बुनियादी ढांचा प्रोजेक्ट्स को दशकों तक लटकाने वाली वही पुरानी जड़ता?
स्थानीय निवासी, इतिहासकार, पर्यटन व्यवसायी और जल कार्यकर्ता इस प्रोजेक्ट के लिए बेचैन हैं। हर गर्मी में जब नल सूखते हैं और यमुना की दुर्गंध पर्यटकों को भगाती है, यह सवाल गूंजता है—क्या रबर डैम का सपना 2025 में हकीकत बनेगा?
आवाज उठाने का समय
नगला पैमा रबर चेक डैम अब और अध्ययनों की मोहताज नहीं। यह ताजमहल की सुरक्षा, आगरा की जल आपूर्ति और पर्यटन अर्थव्यवस्था का आधार है। सरकार को चाहिए कि नौकरशाही के जाल को काटकर तत्काल कार्रवाई करे। जैसा कि खंडेलवाल ने लिखा, “The Yamuna is not just a river; it is Agra’s lifeline. Delay in the dam is a delay in the city’s future.” (The Indian Express, 2025)।
अब समय है फैसले का, न कि बहानों का। अगर यह परियोजना अब भी फाइलों में दबकर दम तोड़ती है, तो यह न केवल आगरा की हार होगी, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर का भी अपमान होगा।