कहानी — अंकल-आंटी की शादी

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कैलाशचंद्र

ये एक अभियान है जिसमें बेटी का ब्याह और बहू की पढ़ाई महत्वपूर्ण है। “समय से विवाह होगा तो पांच पीढ़ियों का सुख भोग सकते हो” यह वाक्य भारतीय पारिवारिक जीवन-दर्शन से जुड़ा है।

भारतीय समाज में विवाह केवल दो व्यक्तियों का संबंध नहीं होता, बल्कि दो परिवार- वंशों, दो कुलों और दो संस्कृतियों का संगम होता है। जिसमें यज्ञ होता है। “समय से विवाह” का अर्थ केवल उम्र की सीमा नहीं है, बल्कि मानसिक, सामाजिक, जैविक और पारिवारिक तैयारी के संतुलित समय से है।

एक ऐसा कथानक जहाँ शब्द मुस्कुराएँगे, संवाद चुभेंगे, और यथार्थ भीतर तक गूंजेगा।
शैली सरल, प्रवाहमान और अभिव्यंजक होगी- ठीक वैसे जैसे कोई समझदार कथाकार चाय की चुस्कियों के बीच समाज का आईना दिखा रहा हो।

शहर के बीचो बीच, एक चमकदार कैफे में बैठे थे — अमित और नेहा। दोनों मोबाइल के स्क्रीन में झुके हुए, पर एक-दूसरे से कुछ खास नहीं कह रहे थे।दोनों की उम्र लगभग तीस के आसपास। दोनों के चेहरे पर करियर की चमक थी, पर आंखों में हल्की थकान भी।

वेटर ने पूछा, “सर, ऑर्डर?”
अमित ने बिना ऊपर देखे कहा, “लो-फैट कैप्पुचिनो।”
नेहा ने मुस्कराकर कहा, “साथ में एक्स्ट्रा शुगर।”
अमित की भौंह थोड़ी चढ़ी — “शुगर? इतनी मिठास में कैलोरी है।”
नेहा बोली, “ज़िंदगी में अगर मिठास ही न हो तो कैलोरी का क्या करेंगे?”
दोनों हल्के से हँसे — फिर वही मौन।

💥कहानी यहीं से शुरू होती है :

अमित की माँ पिछले महीने फिर अस्पताल गई थीं। कहती थीं, “बेटा, शादी कर ले। अब बहू के हाथ की चाय पीने का मन करता है।”
अमित ने हंसकर कहा था, “माँ, अभी टाइम नहीं है। कंपनी में नया प्रोजेक्ट चल रहा है।”
माँ बोली थीं, “बेटा, जिंदगी कोई प्रोजेक्ट नहीं, एक साझेदारी है — जो समय पर शुरू हो तो रंग लाती है, वरना रिपोर्ट बनकर रह जाती है।”
उधर नेहा के पापा भी बार-बार समझाते थे,
“बेटी, अब उम्र हो रही है।”
नेहा मुस्कराकर कहती— “पापा, 30 तो नई 20 है।”
पापा कहते— “हां, पर हमारे जमाने में 20 में लोग बच्चे पालते थे, अब 30 में कुत्ते पालते हैं।”

💥पहले “लड़का-लड़की”, अब “अंकल-आंटी”
एक दिन ऑफिस की पार्टी में किसी ने अमित से मजाक में कहा, “सर, आपकी तो शादी हो जानी चाहिए अब।”

अमित ने जवाब दिया— “भाई, अब तो मुझे कोई ‘लड़की’ नहीं चाहिए, कोई HR compliant partner चाहिए।”
सभी हँस पड़े।
पर हँसी के पीछे एक खालीपन था— जैसे कोई अंदर से कुछ खो चुका हो।

नेहा ने एक दिन खुद से कहा— “अब मैं किसी रोमांटिक कहानी की नायिका नहीं रही।
अब जो भी मिलेगा, कहेगा– ‘आप बहुत मैच्योर हैं।’
और मैं मुस्करा दूँगी- क्योंकि मैच्योर का मतलब होता है ‘अब ज़्यादा उम्मीद मत रखो।’”

💥घर में ‘विवाह का अभियान’ :

अमित के पापा ने एक शाम अखबार रखकर कहा —
“देख बेटा, हमारे मोहल्ले के शर्मा जी के पोते की शादी तय हो गई।”
अमित बोला— “अरे पापा, वो तो मुझसे दस साल छोटा है!”
पापा ने अखबार मोड़ा— “हाँ बेटा, लेकिन उसने ‘टाइम पर’ शादी कर ली।”
माँ ने जोड़ा— “समय से विवाह होगा तो पांच पीढ़ियों का सुख भोग सकते हो।”
अमित हँस पड़ा— “माँ, आप तो ऐसे बोलती हैं जैसे शादी कोई लाइफ टाइम ऑफर हो।”
माँ बोली — “हाँ बेटा, अब तो तुम्हारे ऑफर की validity period खत्म होने वाली है।”

💥विवाह नहीं, वार्तालाप :

नेहा की सहेली रीमा ने पूछा —
“तू शादी के लिए किसी को देख रही है?”
नेहा बोली— “देख रही हूँ, लेकिन अब लोग रिश्ता नहीं, रिज्यूमे मांगते हैं।”
रीमा हँस पड़ी— “हाँ, अब रिश्ते में भी ‘package’ और ‘perks’ पूछे जाते हैं।”
नेहा ने धीरे से कहा- “कभी लगता है, हम सब अंकल-आंटी बन गए हैं।
वो जो ‘दिल से’ वाला दौर था, वो कहीं गूगल कैलेंडर में खो गया।”

💥समय गया, साथ नहीं मिला :

कुछ महीने बाद अमित की माँ नहीं रहीं।
अंतिम वाक्य यही था— “काश तेरी बारात देख लेती।”
उस दिन अमित ने पहली बार अपने मोबाइल का लॉक खोले बिना रोया।

नेहा ने उसे सांत्वना दी, और कहा—
“हम दोनों ने बहुत कुछ पाया, बस सही समय खो दिया।”
अमित बोला- “शायद यही फर्क है लड़का–लड़की और अंकल–आंटी में।
एक वक्त था जब हम हँसते थे, अब सिर्फ तर्क करते हैं।
पहले प्यार में जोश था, अब शादी में ‘जॉब सिक्योरिटी’ ढूंढते हैं।”

• कहानी का अंत :

दोनों ने अगले महीने शादी कर ली।
बिलकुल शांत, सरल, बिना शोर के।
किसी ने कहा— “अब तो अंकल–आंटी बन ही गए।”
नेहा मुस्कराई- “हाँ, लेकिन देर से ही सही, अब कम से कम एक-दूसरे के अंकल-आंटी तो हैं।”
अमित ने धीरे से कहा—
“काश, हमने ये कदम पाँच साल पहले उठाया होता। तब शायद आज हमारी बेटी स्कूल जा रही होती।”
नेहा बोली— “और तुम्हारी माँ खिड़की से मुस्करा रही होती।”

• समय, संबंध और सच्चाई :

समय से किया गया विवाह कोई पुरातन आग्रह नहीं, बल्कि जीवन का प्राकृतिक लयबद्ध निर्णय है। जो देर से लिया गया, वह प्रेम को नहीं रोकता, पर उसके सुगंध को थोड़ा मुरझा देता है।
अब जब समाज में “अंकल–आंटी की शादियाँ” बढ़ रही हैं।

तो याद रखिए— संबंध तब सबसे सुंदर होते हैं जब दिल जवान हो, बात बात पर उत्साह और उमंग हो और जिम्मेदारी भी साथ चले।वरना देर से मिली, बिना उमंगों के खुशी भी अक्सर बिना रंगों वाले जीवन जैसी ‘थकान’ लगने लगती है।🌹🙏

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