रंगनाथ
बुजुर्गों की आलोचना में लिखने से बचता हूँ मगर कमर वहीद नकवी उदारमना हैं तो थोड़ी छूट लेते हुए उनपर लिख रहा हूँ। नकवी जी को याद दिलाना चाहूँगा कि एक छोटी सी पोस्ट में उन्होंने कई छल किये हैं। अफसोस है कि कजाखस्तान की वह लड़की कभी नहीं जान पाएगी कि उसके लिए “लिबरल” होने के जो मायने होंगे, उसके साथ नकवी जी का खुद का डिजिटल न्यूज चैनल कभी नहीं था। मूलतः वह उन लिबरल चाहतों के खिलाफ ही रहा है जिसकी चाहत वह कजाख युवती अजहर करती होगी।
नकवी जी निजी जीवन में चाहे जितने भी उदार हों मगर वे जिस डिजिटल चैनल की बात कर रहे हैं उसकी अजहर जैसी बच्चियों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर कवरेज अगर अजहर देख ले तो वह समझ जाएगी कि नकवी जी ने उसके साथ छल किया है।
कजाख युवती से छल करने के बाद नकवी जी उस प्रसंग का इस्तेमाल हिन्दी समाज को छलने के लिए कर रहे हैं कि उनके जैसे “लिबरल” की डिमांड कजाखस्तान में भी है और मेरा नया चैनल “लिबरल” है। नकवी जी, बुरा न मानिएगा मगर आपका नया चैनल बस एक दल के खिलाफ की जाने वाली सामूहिक दलाली का पुलिंदा है। अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनने से तोता मोर नहीं बन जाता।
भारत के ज्ञात इतिहास के आदिकाल से उदारता यहाँ एक मूल्य की तरह स्थापित है। वह नकवी जी के चैनल के जन्म से पहले भी थी और बाद में भी रहेगी। मगर कजाख युवती अजहर जिन कट्टपंथी ताकतों से पीड़ित हो सकती है, नकवी जी का नया चैनल हमेशा उन कट्टरवादियों के साथ खड़ा रहता है। उस चैनल के पत्रकार आधुनिक शिक्षा से प्राप्त औजारों का इस्तेमाल रिग्रेसिव प्रैक्टिसों को जस्टिफाई करने के लिए करते हैं जिससे अजहर के जीवन का लिबरल स्पेस खत्म हो सकता है।
नकवी जी की जगह मैं होता तो कजाख युवती अजहर को बताता कि तुम्हें जिन उदार मूल्यों की परवाह है उनके लिए लिखने-बोलने को भारत में कम्युनल कहा जाता है। जिस रिग्रिसेव प्रैक्टिस के खिलाफ कई ईरानी लड़कियों की हत्या कर दी गयी और सैकड़ों जेल में ठूंस दी गयी, उसी रिग्रेसिव प्रैक्टिस को भारत के फेक लिबरल “च्वाइस” कहते हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाकर इस बारे में सफेद झूठ बोलते हैं। भारत के फेक लिबरल ने यह बात सिरे से गायब कर दी कि “च्वाइस” वयस्क की होती है, छोटी बच्चियों की नहीं। नकवी जी जैसे लोगों ने यह बात सिरे से गायब कर दी कि अमेरिका-ब्रिटेन से शुरू हुआ ‘च्वाइस’ आन्दोलन मूलतः उन रिग्रेसिव ताकतों का मिशन था जो अब पड़ोस में कट्टरता का नंगा नाच कर रही हैं।
दूसरी तस्वीर में आप देख सकते हैं कि कजाखस्तान में कुछ लिबरल लोग अभी बचे हैं जिन्होंने स्कूली बच्चियों पर रिग्रेसिव प्रैक्टिस थोपने पर प्रतिबन्ध लगाया। नकवी जी, आपके नए चैनल जैसे फेक लिबरल गिरोह की कृपा से अब हम जैसे भी इस मुद्दे पर बोलने को समय की बर्बादी समझने लगे हैं। फिर से कहूँगा आप निजी जीवन में चाहे जितने उदार हों, मगर आपका चैनल उस कजाख युवती की चाहतों वाला लिबरल कतई नहीं है। उसके चेहरे पर आया सन्तोष वही सन्तोष था जो कसाई के घर चारा पाने के बाद बकरे के मुख पर आता होगा।
नकवी जी, मैंने आपकी प्रोफाइल पर सर्च किया और वहाँ भी उन मुद्दों पर केवल एक लेख पाया जिसे पढ़कर कजाखस्तान की अजहर को थोड़ी उम्मीद जग सकती है मगर वह लेख भी समुदाय विशेष का सिंहावलोकन है, जिससे आपकी निजी उदारता प्रमाणित होती है मगर आपके उस लेख के पाठक-वर्ग का डेमोग्राफिक विश्लेषण अजहर को बेहद निराश कर सकता है। जिन कट्टरवादी ताकतों से अजहर की लिबरल चाहतों की भ्रूणहत्या हो सकती है उनसे आपका कोई संवाद नहीं है।
नकवी जी, बुरा न मानें गर कहूँ कि आप “लिबरल” नहीं है बल्कि भारतीय उदारता के नाशुक्र लाभार्थी हैं। आप उतने और वहीं तक लिबरल हैं जहाँ आप और आपका परिवार सुखी सम्पन्न जीवन जी सके। उसकी सीमा के आगे जाकर आपने भारत की अजहर बेटियों के लिए लिबरल समाज तैयार करने की कोई पत्रकारिता की है तो कम से कम वह आपके नए चैनल पर नजर नहीं आती।