जावेद खनानी और उसके जुड़वां भाई अल्ताफ खनानी ने 1980 के दशक में कराची में Khanani & Kalia International (KKI) की स्थापना की। शुरुआत में यह एक सामान्य मुद्रा विनिमय कंपनी थी, लेकिन जल्द ही यह वैश्विक हवाला नेटवर्क का केंद्र बन गई। अमेरिकी ट्रेजरी डिपार्टमेंट ने 2015 में इसे “ट्रांसनेशनल क्रिमिनल ऑर्गेनाइजेशन” घोषित किया। रिपोर्ट्स के अनुसार, KKI ने मेक्सिकन ड्रग कार्टेल्स, अफगान हेरोइन तस्करों, अल-कायदा, हिजबुल्लाह और दाऊद इब्राहिम के D-कंपनी के लिए अरबों डॉलर लॉन्डर किए। सबसे खतरनाक हिस्सा था नकली भारतीय नोटों (FICN) का उत्पादन और सप्लाई।
भारतीय खुफिया एजेंसियों और अमेरिकी रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान की सरकारी प्रिंटिंग प्रेसें – जैसे क्वेटा और कराची की सिक्योरिटी प्रेस – ISI के इशारे पर उच्च गुणवत्ता वाली नकली भारतीय मुद्रा छापती थीं। ये नोट नेपाल, बांग्लादेश और खाड़ी देशों के रास्ते भारत में घुसाए जाते थे। इसका मकसद दोहरा था: भारत की अर्थव्यवस्था को कमजोर करना और आतंकी गतिविधियों के लिए फंडिंग। 2010-2015 के बीच भारत में सर्कुलेशन में FICN की अनुमानित वैल्यू हजारों करोड़ रुपये थी। जावेद खनानी इस नेटवर्क का मुख्य ऑपरेटर था, जो दाऊद के लिए नकली नोट भारत पहुंचाता और हवाला से पैसे ट्रांसफर करता।
8 नवंबर 2016 की रात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 500 और 1000 रुपये के नोटों को अमान्य घोषित किया, तो यह सिर्फ काले धन पर वार नहीं था – यह पाकिस्तान प्रायोजित आर्थिक युद्ध पर सीधा हमला था। नोटबंदी के तुरंत बाद पाकिस्तान में छपी नकली मुद्रा बेकार हो गई। रिपोर्ट्स के अनुसार, ISI के पास भारत में सर्कुलेट हो रही मुद्रा से 150% ज्यादा नकली नोटों का स्टॉक था, जो रातोंरात कागज के टुकड़े बन गया। अनुमान है कि जावेद खनानी ने दाऊद के नेटवर्क के जरिए पहले ही 40,000 करोड़ रुपये की नकली मुद्रा भारत में डाल दी थी, और उसके पास 20,000 करोड़ की अतिरिक्त स्टॉक थी। यह सब व्यर्थ हो गया।
नोटबंदी का असर तत्काल दिखा। कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाएं 60% कम हो गईं, क्योंकि आतंकी संगठनों के पास पैसे खत्म हो गए। हवाला ऑपरेटर्स की कॉल ट्रैफिक 50% गिरी। पाकिस्तान में दो मुख्य FICN प्रेसें बंद हो गईं। अमेरिकी और भारतीय रिपोर्ट्स में इसे “आर्थिक काउंटरस्ट्राइक” कहा गया।

इस झटके से जावेद खनानी टूट गया। उसके भाई अल्ताफ को 2015 में अमेरिका ने गिरफ्तार किया और 68 महीने की सजा दी। जावेद पर दाऊद और अन्य क्लाइंट्स का दबाव बढ़ गया। 4 दिसंबर 2016 को कराची के एक अंडर-कंस्ट्रक्शन बिल्डिंग (साइना टावर या इसी तरह की इमारत) से वह गिरा। पाकिस्तानी पुलिस ने इसे आत्महत्या बताया – कराची के एडिशनल IG मुश्ताक महेर ने कहा कि वह बिजली के तारों में फंसकर नीचे गिरा। परिवार ने एक्सीडेंट बताया, लेकिन समय की संयोगता ने कई सवाल उठाए। कुछ रिपोर्ट्स में इसे ‘लिक्विडेशन’ कहा गया – नेटवर्क के रहस्यों को दफन करने का तरीका।
भारत में भी इस नेटवर्क की गूंज सुनाई दी। नोटबंदी के दौरान मुंबई के एक परिवार – अब्दुल रज्जाक मोहम्मद सईद और उनके परिजनों – ने 2 लाख करोड़ रुपये की अघोषित आय दिखाई। यह राशि पूरे इनकम डिस्क्लोजर स्कीम की कुल घोषणा से तीन गुना थी। आयकर विभाग ने इसे संदिग्ध मानकर अस्वीकार कर दिया और जब्त कर लिया। जांच में पता चला कि परिवार का पता फर्जी था और PAN अजमेर से मुंबई ट्रांसफर हुए थे। कुछ अनौपचारिक रिपोर्ट्स में इसे दाऊद के नेटवर्क से जोड़ा गया, जहां खनानी जैसे ऑपरेटर्स काले धन को वैध दिखाने की कोशिश कर रहे थे। जांच जारी है, लेकिन यह मामला नोटबंदी के उस बड़े प्रभाव को दिखाता है जो काले धन और नकली मुद्रा के सिंडिकेट पर पड़ा।
पाकिस्तानी एजेंसियां जावेद की मौत की जांच से बचती रहीं, क्योंकि पूरा खुलासा होने पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की और बदनामी होती। FATF की ग्रे लिस्ट में पहले से फंसा पाकिस्तान इस आर्थिक युद्ध के सबूतों से बचना चाहता था।
नोटबंदी के नौ साल बाद भी इसके प्रभाव बाकी हैं। नए नोटों की सिक्योरिटी फीचर्स इतनी उन्नत हैं कि पाकिस्तान अब उच्च गुणवत्ता वाली नकली मुद्रा नहीं छाप पाता। आतंकी फंडिंग सूखी, हवाला कमजोर हुआ। फिल्म धुरंधर में जावेद खनानी को कॉमिक विलेन दिखाया गया, लेकिन असलियत में वह एक छिपा हुआ बैंक था – ISI का शैडो बैंकर।
प्रधानंत्री मोदी ने तब कहा था, “थोड़ा धैर्य रखें… 30 दिसंबर दूर नहीं… केंचुए मरे हैं, अब बड़े अजगरों का नंबर है।” आज देखें तो नोटबंदी ने न सिर्फ काले धन पर चोट की, बल्कि सीमा पार के दुश्मनों की आर्थिक रीढ़ तोड़ दी। यह कहानी बताती है कि कभी-कभी सबसे बड़ा युद्ध बैंक / नोटों से लड़ना पड़ता है।



