~ कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
बीते कुछ दिनों से छत्तीसगढ़ में सामाजिक वैमनस्य, घ्रणा और अलगाववाद के लगातार मामले सामने आ रहे हैं। राजधानी रायपुर के VIP चौक में स्थापित छत्तीसगढ़ महतारी की मूर्ति को एक मानसिक विक्षिप्त, शराबी ने तोड़ दिया। इसके बाद जमकर बवाल हुआ। सरकार और प्रशासन ने तुरंत सतर्कता दिखाते हुए आरोपी को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन एक राजनीतिक दल के नेता ने इस घटना का विरोध जताते हुए — पंडित दीनदयाल उपाध्याय , श्यामा प्रसाद मुखर्जी, अग्रसेन महाराज, भगवान झूलेलाल आदि को लेकर विवादित और आपत्तिजनक बातें कही। इसके बाद छत्तीसगढ़ में सामाजिक तनाव बढ़ने लगा। क्रिया की प्रतिक्रिया हुई और संबंधित नेता के खिलाफ भी FIR दर्ज हो गई। लेकिन मामला यहीं नहीं रुका — रायगढ़ में सिंधी समाज के एक व्यक्ति ने शराब के नशे में इसी बीच गुरु घासीदास को लेकर अक्षम्य-अभद्र टिप्पणी की। सिंधी समाज ने बैठक कर उस व्यक्ति को तुरंत समाज से बहिष्कृत किया और प्रशासन से कठोर कार्रवाई की मांग की। एक्शन हुआ आरोपी गिरफ्तार हो गया। इसी बीच रायगढ़ में ही 30 अक्टूबर 2025 की देर रात असामाजिक तत्वों ने राममंदिर में तोड़फोड़ की। भगवान राम की मूर्ति को नाली में फेंक दी।…
ये जितने भी घटनाक्रम हुए इन्हें नहीं होना चाहिए था। ये सब अक्षम्य हैं। ऐसे कुकृत्यों को छत्तीसगढ़ की माटी स्वीकार नहीं कर सकती है। क्योंकि सर्वसमावेशी छत्तीसगढ़ की ये मूल भावना नहीं है। किंतु आप अगर इन घटनाक्रमों के मूल में देखेंगे और गहराई से सोचेंगे तो आपको जो ‘कॉमन’ बात देखने को मिलेगी। वो है विभाजन , वैमनस्य, अलगाववाद , क्षेत्रवाद जैसी संकीर्ण मानसिकता और आग में घी डालकर अपनी राजनीतिक ज़मीन मजबूत करने की धारणा। क्या ये सारी चीज़ें छत्तीसगढ़ की अस्मिता पर आघात नहीं कर रही हैं?
सोचिए ! वो छत्तीसगढ़ जो भगवान राम का ननिहाल है। राम जहां भांचा राम के तौर पर पूजे जाते हैं। दंडकारण्य का क्षेत्र है। बस्तर का दशहरा है। राजिम का कुंभ है। मांडूक्य ऋषि और शृंङ्गी ऋषि की तपोभूमि है। गुरु घासीदास के संदेशों का पुण्य प्रवाह है। रामनामी समाज की ‘राममय’ भावना है। कबीर पंथियों का उपदेश है। आस्था का शदाणी दरबार है। भगवान पार्श्वनाथ का शांति संदेश है। सिख गुरुद्वारों से एकत्व की गुरुबानी गूंजती है। छत्तीसगढ़ जहां के कोने-कोने में जनजातीय समाज के स्व की अनुगूंज है। छत्तीसगढ़ जहां ऋषि-मुनियों से लेकर समृद्ध सांस्कृतिक परिवेश का वातावरण है। जहां के सहज-सरल और आत्मीयता से भरे समाज में कोई भी आसानी से घुल मिल जाता है। यहां की कला, परंपराएं, शैली, खान-पान और वेश-भूषा की विविधता देखने को मिलती है। जो उत्सवों और दैनिक जीवन में समरसता के प्रतिबिंब के तौर पर दिखाई देती है। वो छत्तीसगढ़ जहां अलग-अलग क्षेत्रों में विविध मान्यताएं और परंपराएं मनाई जाती हैं। लेकिन सबमें एकता की धुन सुनाई देती है। सब समरस होकर जीवन की उमंगें बिखेरते हैं।
इसी छत्तीसगढ़ में आखिर! ये कौन लोग और कौन संगठन हैं ? जो अपने ‘वाद’ के लिए छत्तीसगढ़ में वैमनस्य फैलाने में जुटे हुए हैं? ये अचानक से ‘तुम्हारे महापुरुष-मेरे महापुरुष’ करने वाले लोग कहां से आ रहे हैं? ये स्थानीय बनाम बाहरी के विभाजनकारी दृश्य कहां से उभरने लगे? विशाल हिंदू समाज को जातियों में, क्षेत्रवाद में बांटने वाले लोग कहां से आ रहे हैं? क्या हमारे आराध्य, महापुरुष केवल जातियों, समूहों के महापुरुष हैं? याकि संपूर्ण समाज के आदर और श्रद्धा के केंद्र। क्या हम इतनी संकीर्णता का शिकार हो रहे हैं कि — अब हम महापुरुषों का भी बंटवारा कर रहे हैं। क्या हम जाति-समुदाय के आधार पर महापुरुषों को देखेंगे? क्या हमारे इन महापुरुषों ने यही सिखाया था? ज़रा ! ढूंढ़कर एक ऐसी पंक्ति या कथन लाकर दिखा दीजिए जब हमारे इन महापुरुषों ने किसी भी प्रकार के बंटवारे की बात कही हो। उनके विचार, कार्य और दर्शन हमेशा से समाज को जोड़ने वाला रहा है। फिर ऐसे में कौन लोग हैं जो इनकी आड़ में सामाजिक ताने-बाने को क्षत-विक्षत करने का मंसूबा पाले हुए हैं? आख़िर उनका उद्देश्य क्या है?
सवाल ये भी पूछिए कि -जो लोग समाज में विभाजन फैला रहे हैं क्या उनका उद्देश्य शुद्ध और सात्विक है? क्या वो वास्तव में छत्तीसगढ़ का भला चाहते हैं याकि समाज में विभाजन के बीज बो रहे हैं? जब हम ख़ुद को भारत माता की संतान कहते हैं तो फिर हमारे अंदर किसी भी तरह के अलगाव वाले ‘वाद’ का ज़हर कहां से आ रहा है? क्या इसके पीछे कोई संगठित तंत्र काम कर रहा है? जो विराट समाज में भेद और वैमनस्य पैदा करना चाहता है? क्या कोई रणनीति है जो ये चाहती है कि — हम सब आपस में लड़ते हुए अपनी हानि कर बैठें जिससे प्रगति से पीछे हो जाएं। क्या हम इन बिंदुओं पर कभी सोचते हैं?
क्या हमारी भाषा, संस्कृति, बोली, मूल्य, संस्कार और पूर्वजों ने कभी अलगाव का भाव दिया? सत्य तो ये है कि हम सब अपने तमाम मतभेदों के बाद भी हमेशा एक रहे हैं। हर जाति, समाज, समुदाय का सम्मान करना। एक-दूसरे के सुख-दुख का साझीदार बनना। यही छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परंपरा है। यही भारतभूमि का बोध है।आदिकाल से भारत में विभिन्न राज्य सत्ताएं रही हैं। लेकिन राष्ट्रीयता, एकात्मता की भावना एक रही है। कभी दक्षिण के राज्यों में ‘भाषा’ और हिंदुत्व विरोध के नाम पर वैमनस्य, कभी महाराष्ट्र में ‘मराठी’ अस्मिता के नाम पर विभाजन…और अब छत्तीसगढ़ में ‘वाद’ की संक्रामक बीमारी कहां से आ रही है? क्या इन सबके पीछे कोई ख़ास पैटर्न है? क्या इन विभाजनकारी कृत्यों से कभी किसी का भला हुआ है? क्या छत्तीसगढ़ की माटी इन कृत्यों को स्वीकार करेगी? वैसे जब-जब हमने अपनी पहचान को ‘राष्ट्रीयता’ से अलग किया है। उस समय दुराग्रही राजनीति ने समूचे समाज को भारी नुक़सान पहुंचाया है। एक व्यक्ति, परिवार और समाज के नाते हमें यह ध्यान रखना होगा कि — जाति, प्रांत, बोली-भाषा, समुदाय आदि के नाम पर जितने भी बंटवारे किए जाते हैं। वो हमारी एक राष्ट्रीय पहचान-हिंदुत्व की पहचान पर कुठाराघात करना होता है। ताकि हम आपस में संघर्षों में उलझे रहें। जोकि अस्वीकार्य है।
आप सोचिए कि जब हमने अपने आदर्श और महापुरुष चुने तो किन्हें चुना? उन्हें न! — जो त्यागी, तपस्वी थे। जो समाज के लिए जिए और समाज के लिए मर गए। हमने आदर्श उन्हें चुना जिन्होंने अभावों के बीच भी समरसता के भाव प्रकट किए। जात-पात, ऊंच-नीच की भावना को त्यागने और एकजुटता का संदेश दिया। ऐसे में क्या हम उपद्रवियों के झांसे में आ जाएंगे? क्या हम अपनी मूल विरासत को भूल जाएंगे? ये सोचिए..
हिंदू समाज के समक्ष वैसे भी संकट कम नहीं हैं। जिहादियों और मिशनरियों के क्रूर षड्यंत्रों में हिंदू समाज पिस रहा है। सुदूर वनांचलों, गांवों-कस्बों और शहरों में लव जिहाद, कन्वर्जन का आतंक बढ़ता जा रहा है।उस बीच ये नए -नए वितंडा हमें और बांट रहे हैं। ताकि हम एकजुट न हो पाएं। एक-दूसरे के साथ खड़े न हों। हर व्यक्ति एक-दूसरे को शंका की दृष्टि से देखे। अगर ऐसा हुआ तो इसके ज़िम्मेदार हम सब होंगे। आप ही बताइए क्या हम ये सब चाहते हैं? क्या हम ऐसे आगे बढ़ेंगे? क्या हम ऐसे प्रगति करेंगे?अब आप ही तय कीजिए कि हम अपनी छत्तीसगढ़ महतारी की वंदना में एकता के पुष्प अर्पित करना चाहते हैं। याकि ऐसे विभाजनकारी विवादों में फंसकर छत्तीसगढ़ महतारी की पीड़ा बढ़ाना चाहते हैं। तय आप कीजिए…
जय जोहार..
( लेखक साहित्यकार, स्तंभकार एवं पत्रकार हैं)



